विदेश से आती मौत

By: Mar 22nd, 2018 12:05 am

कब्र से निकला सच उतना ही भयावह है, जितना आतंक की गोली से मिली मौत का दर्द। इराक में अपहृत भारतीयों का दल मौत की सूली पर जिस प्रकार चढ़ा, उससे भी कहीं अधिक इंतजार की बेडि़यों ने कहर मचाया और घर पहुंचा सबसे खूंखार समाचार। विदेश में धन कमाने की अर्थियां जब निकलीं, तो कोहराम में हिमाचली परिवारों ने भी अपने चार कमाऊ पूत गिन लिए। विदेशी धन की खाई में छिपा बैठा आतंकवाद अगर मरघट की खबर है, तो जीवन की ऐसी विडंबना में शरीक होने से बचना होगा। खाड़ी देशों के सफर में रोजगार की मंजिलों के खतरे सदा रहे हैं, लेकिन बुरी खबरों के बीच पासपोर्ट कार्यालयों के बाहर हिमाचल भी खड़ा रहता है। हद तो यह कि ये भारतीय पिछले कुछ सालों से गुमशुदा होने की गुत्थी में तड़पते रहे और इधर देश के भीतर सरकार के पास खबर भी नहीं कि इस त्रासदी का यथार्थ क्या रहा। हिमाचली परिप्रेक्ष्य में समझें तो विदेश में नौकरी पाने की लालसा ने कई अनैतिक धंधेबाजों को पनपने का मौका दिया है। पिछले कई सालों से विदेश से आती मौत की वीभत्स खबरों ने हमें सतर्क किया, लेकिन ये सबक व्यवस्थागत खामियों को नहीं भर पाए। हिमाचल से इराक केवल चार लोग नहीं गए, बल्कि कुछ सपने थे, जो कफन में सिमट कर रह गए। घर की मजबूरियां और संभावनाओं के द्वार पर विदेश जाने का निमंत्रण, सहज अभिलाषा को प्रबल करता है। जिंदगी को सामर्थ्य से भरने की कोशिश जब विदेश का रुख करती है, तो खतरों के बीच कोई तो परिपाटी चाहिए। हर बार ऐसी अशुभ सूचनाओं की अर्थी पर जलते सपनों के महल, ख्वाहिशें और रिश्तों की टूटी बागडोर को हम अनदेखा कर देते हैं और फिर कोई संदीप, अमन, इंद्रजीत या हेमराज अपनी मुट्ठी में दुनिया को बंद करने निकल पड़ता है। आयातित कहर की डगर पर निकलने से पहले, सही परामर्श और सही बंदोबस्त को समझना होगा। इस दिशा में हिमाचल सरकार को भी सक्रियता के साथ अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना होगा। यह दीगर है कि विदेशों में रोजगार की संभावनाओं का दोहन पूरे देश की क्षमता में अनहोनी घटना नहीं, लेकिन पूरी कवायद को निरीक्षण-परीक्षण की कसौटी से गुजरना होगा। जाहिर है चार हिमाचलियों को जिस तरह आतंकियों ने मौत के घाट उतारा, उससे मानव इतिहास का एक पक्ष स्याह हो जाता है। पूरे घटनाक्रम में दबी आहें, उम्मीदें और राहें अपना जिक्र करती हैं, तो कलेजा मुंह को आता है। दर्द के अंतहीन सिलसिलों में रोजगार अगर इस तरह अभिशाप बनेगा, तो युवाओं की क्षमता व प्रतिभा को नए सिरे से समझना होगा। यहां रोजगार की परिभाषा का भी मसला है। हिमाचली परिदृश्य में स्थानीय स्वरोजगार को अछूत मानकर अगर विदेशी प्रलोभन में फंसने की प्रवृत्ति बढ़ती गई, तो हम किसी बडे़ खतरे के करीब जा रहे हैं। समय की आवश्यकता में रोजगार की अभिलाषा को, स्वरोजगार की हकीकत में बदलने की योजना चाहिए। शिक्षा के वर्तमान ढर्रे को स्वरोजगार से जोड़ने की कवायद और ढांचागत सुविधाओं का विस्तार होगा, तो युवा क्षमता यूं ही विदेशी सिक्कों से चिपके बारूद को हाथ नहीं लगाएगी। प्रदेश के युवा बेरोजगारों को सही परामर्श व सही दिशा देने के लिए स्वरोजगार नीति की जरूरत है। मोसुल में चार हिमाचलियों की हत्या का विषय भले ही राष्ट्रीय चिंता का सबब है, फिर भी जिन घरों के चिराग बुझे, उन हवाओं को भी समझना होगा। खाड़ी देशों में चांदी कूटने की जिद और जिरह के बीच कहीं ऐसे सेतु भी तलाशने होंगे, जो यह सुनिश्चित करें कि विदेश जाने की हसरतें कहीं अवैध तरीकों की गुनहगार न बन जाएं।


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