शिक्षा में पनपते माफिया का घुन

By: Mar 31st, 2018 12:05 am

डा.के राकेश

लेखक, शिक्षाविद हैं

बोर्ड परीक्षा में कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए करोड़ों अन्य छात्रों का भविष्य दांव पर लगाने वालों को संभवतः मृत्यु दंड से भी कड़ा दंड मिलना चाहिए। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक भी केंद्रीय मंत्री, एक भी राज्य के मुख्यमंत्री ने इस घटना की न तो निंदा की, न ही परीक्षा रद्द होने पर छात्रों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की…

भारत जैसे देश में जहां 70 वर्ष की आजादी के बाद भी लाचार शिक्षा प्रणाली, लाचार व्यवस्था, मजबूर शिक्षार्थी, अभिभावक और लोलुप शिक्षण संस्थान, जिन के लिए शिक्षा मात्र पैसा कमाने का एक साधन मात्र है। जहां अकर्मण्य बोर्ड और भ्रष्ट अधिकारी, संवेदनहीन संसद और सरकार हो वहां पर पेपर लीक जैसे मामले होना सामान्य घटना है और मीडिया के लिए यह एक सुर्खी मात्र है, जो चैनल  या अखबार की टीआरपी बढ़ाने का साधन बना है। देश की संसद का सत्र चल रहा हो और जन, मन की आवाज उठाने वाले दोनों खामोश। देश के युवा और छात्रों के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं हो सकती। हाल ही में न सिर्फ एसएससी की महत्त्वपूर्ण परीक्षा का पेपर लीक हुआ।

उस पर अभी हंगामा, छींटाकशी और दोषारोपण जारी ही था कि सीबीएसई की 10वीं की गणित और 12वीं की इकोनॉमिक्स की परीक्षा का पर्चा लीक होने की खबर और लीक हुए पर्चों के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद देश में बवंडर खड़ा हो गया। हालांकि यह कोई नई घटना नहीं है, ऐसा पहली बार नहीं  हुआ है। बिहार, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश में बहुत बड़े घोटाले हो चुके हैं। व्यापम, पीएमटी, राज्यलोक सेवा आयोग की पीसीएस और न्यायिक सेवाओं के पर्चे लीक होना, अपनों के द्वारा अपनों की नियुक्ति, चहेतों को रेलवे, पीएसयू, बोर्डों व कारपोरेशनों में भर्ती करने के लिए पेपर लीक और ठीक करने की घटनाएं और मामले बदस्तूर जारी हैं। समस्या गंभीर है, निदान जरूरी है। इसलिए इस पर चर्चा, चिंता, चिंतन और समाधान और भी जरूरी है। विभिन्न परीक्षाओं में धांधली न हो, केवल योग्य और ईमानदार परीक्षार्थी ही उत्तीर्ण हों, इसके लिए परीक्षा बोर्ड और चयन आयोगों का गठन किया गया है। स्कूल स्तर की परीक्षा के लिए आइसीएसई, आईएससी, सीबीएसई बोर्ड के साथ-साथ राज्यों के अपने बोर्ड भी बनाए गए हैं। मगर कालांतर में इन बोर्डों के मुखिया या चेयरमैन, स्टाफ की नियुक्ति, योग्यता, निष्पक्षता को दरकिनार कर राजनीतिक आधार पर होने से इनकी कार्य प्रणाली में पक्षपात और भ्रष्टाचार का बोलबाला होने लगा। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश चयन आयोगों में एमसीआई के लोगों को न्यायालय द्वारा सजा सुनाए जाने के प्रकरणों ने इस आरोप को पुष्ट कर दिया। जिस देश में पढ़े-लिखे युवा बेरोजगार 12 करोड़ हों और नौकरियां सिर्फ हजारों में, वहां व्यवस्था की कमजोरियों का फायदा उठा कर नौकरी की चाह और परीक्षा में अच्छे नंबर लेने, प्रवेश परीक्षा में टॉप रैंक लेने की इच्छा रखने वाले छात्रों और अभिभावकों को लूटने का धंधा चलाने वाले माफिया का पनपना स्वाभाविक है।

शिक्षा के निजीकरण ने इस आग में घी की भूमिका निभाई। इस माफिया को जब राजनीतिक पराश्रय मिल जाए तो सोने पर सुहागा। लगभग 14 लाख बेकसूर हैं, जिन्होंने बोर्ड परीक्षा के मानसिक तनाव से अभी मुक्ति भी नहीं पाई थी कि पेपर लीक माफिया और भ्रष्ट तंत्र ने उनको फिर बड़े तनाव में डाल दिया और तंत्र के मुखिया एयर कंडीशंड कमरे से अपने तंत्र के बेकसूर होने और भविष्य में लीक प्रूफ  परीक्षा का खोखला दावा करते मीडिया चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज पर छाए रहे।

मगर मुखिया जी यह बताने में असमर्थ  रहे कि उन बेचारे 14 लाख बेकसूर छात्रों की मानसिक स्थिति के कारण होने वाली दुर्घटना या दोबारा परीक्षा में संयोगवश अच्छा प्रदर्शन न कर पाने की स्थिति में उनके आगामी प्रवेश न होने या अन्य नुकसान का जिम्मेदार कौन होगा और उसकी भरपाई सरकार और व्यवस्था कैसे करेगी। इस देश के लिए शर्म की बात क्या होगी कि जिन बोर्डों के अधिकारियों और राजनीतिक आधारित नियुक्ति प्राप्त लोगों पर वेतन और दौरों पर करदाताओं के करोड़ों रुपए लुटा दिए जाते हैं, वह लोग 1.5 करोड़ छात्रों को दिए जाने वाले प्रश्न पत्र तक खुद नहीं छपवा सकते। आउटसोर्स एजेंसी के भीतर गोपनीयता और विश्वसनीयता बनी रहेगी, इसकी जिम्मेदारी किसी की नहीं। बोर्ड परीक्षा में कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए करोड़ों अन्य छात्रों का भविष्य दांव पर लगाने वालों को संभवतः मृत्यु दंड से भी कड़ा दंड मिलना चाहिए।

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक भी केंद्रीय मंत्री, एक भी राज्य के मुख्यमंत्री ने इस घटना की न तो निंदा की, न ही परीक्षा रद्द होने और दोबारा परीक्षा देने वाले छात्रों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की। दोबारा परीक्षा के वक्त भी पर्चा लीक नहीं होगा, इसकी गारंटी भी कोई नहीं दे रहा। अब सवाल यह उठना लाजिमी है कि परीक्षा में नकल के गोरखधंधे के साथ पेपर लीक जैसे अक्षम्य अपराध के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाएं कि इनकी पुनरावृत्ति न हो। इस दिशा में महत्त्वपूर्ण है कि एक अध्यापक या शिक्षाविद एक विषय का पर्चा न डाल सके। अपितु 4-5 लोगों से प्रश्नपत्र बनवाकर सॉफ्ट कॉपी से मिलता-जुलता प्रश्नपत्र वांछित प्रश्न रैंडम आधार पर निकाल ले और अति गोपनीय तरीके से वरिष्ठ अधिकारी के सामने उसकी जिम्मेदारी पर प्रश्नपत्र छापें। बजट और करेंसी नोट की तरह की छपाई हो और छपाई से लगे किसी भी अधिकारी  को घर जाने की अनुमति न हो। कोई डिवाइस भी छापेखाने में न आ सके। इस कड़ी में परीक्षा भवन में प्रश्न हल करने के लिए छात्रों को पुस्तकें लाने की अनुमति हो, मगर प्रश्न पत्र एक सेंट्रल प्लेस के प्रकाशन से 60 मिनट पहले स्क्रीन पर आए और वहीं प्रिंट होकर वितरित हो। ऐसे प्रयोग बहुत सी विभागीय परीक्षा में हो रहे हैं, इन्हें विस्तार दिया जा सकता है। इस कड़ी में छपी हुई प्रश्नपत्र वाली उत्तर-पुस्तिकाएं निर्धारित उत्तर स्थान और शब्द संख्या हर विषय की परीक्षा में अ, ब, स, द या 1, 2, 3, 4 कोड वाले प्रश्नपत्र, जिसमें शार्ट आब्जेक्टिव व लंबे प्रश्न हों, भी पेपर लीक मामले में सहायक हैं।


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