गीता रहस्य

By: Apr 28th, 2018 12:05 am

वेद के मनन से ज्ञात होता है कि यहां श्रीकृष्ण महाराज प्राणायाम के द्वारा आज्ञाचक्र पर प्राणों को ले जाकर स्थिर करके ईश्वर के नाम का चिंतन करने की बात कर रहे हैं, जो कि युजर्वेद मंत्र 7/4 में कही अष्टांग योग विद्या का छठा अंग ‘धारणा’ है जिसे यहां योग धारण कहा है। अतः साधक ब्रह्मज्ञानी, योगी के सान्निध्य में रहकर तथा योग की शिक्षा प्राप्त करते हुए यम, नियम, आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहार को कठोर अभ्यास से सिद्ध करके धारणा को  सिद्ध करे …

जैसे अथर्ववेद मंत्र में कहा, ‘पुंडरीकम् नवद्वारम’ अर्थात पुण्य कर्म करने के लिए नौ द्वारों वाला ‘त्रिभिः गुणेभिः आवृतम’ प्रकृति के तीन गुण, सत्व, रजस एवं तमस से रचित यह शरीर मिला है। ‘तस्मिन् यत आत्मन्वत्’ इस शरीर में जो आत्मा का भी ‘अभिष्ठाता यक्षम’ पूजनीय देव ईश्वर है। ‘तत् ब्रह्मविदः विदुः’ उस ईश्वर को, ब्रह्म को जानने वाले ही जानते हैं। इसी प्रकार के वेद मंत्रों से लेकर श्रीकृष्ण महाराज ने श्लोक में ‘सर्वद्वाराणि संयम्य’ ह्यपद को ऊपर वेदमंत्र में कहे इंद्रियों के नौ द्वारों को समझाने के लिए कहा है। इस वेद मंत्र में प्रकृति से रचित नौ द्वारों वाला शरीर जीवात्मा एवं परमात्मा तीनों का ही ज्ञान दिया है कि तीनों तत्त्व एक-दूसरे से भिन्न हैं। अतः जीव-जीव ही रहता है, जीव कदापि भी ब्रह्म नहीं हो सकता और न ही परमात्मा कभी जीव बन सकता है। पुनः सामवेद मंत्री 197 में कहा कि हे प्रभु! जैसे सभी नदियां चलकर समुद्र को प्राप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार ‘इंदवः त्वा आ विषंतु’ हमारे मन में उठने वाले संकल्प और विकल्प (मन की वृत्तियां) आप में लगें। इन्हीं भावों पर आधारित श्रीकृष्ण महाराज ने श्लोक में कहा कि ‘मनः हृदि निरुद्धप’ मन को अर्थात मन में उठने वाले संकल्प एवं विकल्पों को हृदय में निरुद्ध करें अर्थात रोकें और ‘आत्मनः प्राणम् मूधिर्त आधाय’ जीव (साधक) अपने प्राण को दोनों भवों के बीच जो, मूर्धा (आज्ञाचक्र) में स्थिर करके ‘ योगधारणाम् आस्थितः’ योगधारणा में स्थित होए। वेद के मनन से ज्ञात होता है कि यहां श्रीकृष्ण महाराज प्राणायाम के द्वारा आज्ञाचक्र पर प्राणों को ले जाकर स्थिर करके ईश्वर के नाम का चिंतन करने की बात कर रहे हैं, जो कि युजर्वेद मंत्र 7/4 में कही अष्टांग योग विद्या का छठा अंग ‘धारणा’ है जिसे यहां योग धारण कहा है।  अतः साधक ब्रह्मज्ञानी, योगी के सान्निध्य में रहकर तथा योग की शिक्षा प्राप्त करते हुए यम, नियम, आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहार को कठोर अभ्यास से सिद्ध करके धारणा को सिद्ध करे। धारणा का तात्पर्य ही श्रीकृष्ण यहां समझा रहे हैं कि मूर्धा(आज्ञाचक्र) में प्राणायाम के द्वारा प्राणों को साधक स्थित करके मूर्धा(आज्ञाचक्र) पर ही अपना ध्यान केंद्रित करके वेदों में कहे प्रभु के गुणों का चिंतन करे। अर्थात ॐ शब्द अथवा गायत्री मंत्र के पदों के अर्थों का चिंतन करे। इस साधना से एक समय ऐसा आएगा कि साधक का मन ॐ अथवा गायत्री मंत्र के चिंतन में ही लगा रहेगा। इसके अतिरिक्त कोई भी संसारी विचार मन में नहीं आएगा।

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App