तबादला माफिया से मुक्त हो तबादला नीति

By: Apr 2nd, 2018 12:05 am

डा. विनोद गुलियानी

लेखक, बैजनाथ से हैं

कर्मचारियों के लिए यदि तबादला नीति पारदर्शी, बिचौलियों व माफिया से मुक्त होगी, तो ही सबका साथ सबका विकास की सोच अपना क्रियात्मक रूप दिखाएगी। इससे कर्मचारी सचिवालय के गलियारों में चक्कर लगाने तथा विधायकों के आगे-पीछे घूमने की पीड़ा से भी निजात पा सकेंगे और हमारे सरकारी तंत्र रचनात्मक विकास पर अधिक ध्यान दे पाएंगे..

सत्ता परिवर्तन होते ही कर्मचारी वर्ग विधायकों, मंत्रियों व अफसरशाही को तबादलों की समस्या से इतना व्यस्त कर देता है, मानों इसी एक सूत्री कार्य के लिए ही जनता ने उन्हें सत्ता की बागडोर सौंपी हो। वे कर्मचारी भी सच्चे हैं, जो पूर्व राजनेताओं की ‘हां में हां’ न मिलाने का शिकार हो चुके हों। आज बदली परिस्थितियों में वे राहत की चाहत में डूबे हैं व इनसाफ पाने के लिए अति आतुर हैं। परंतु यह क्या? स्वार्थी कर्मचारियों ने अपने रसूख व चापलूसी के कारण पिछली  सरकार से अदला-बदली करवाकर अभयदान प्राप्त कर अपना भविष्य अग्रिम ही सुरक्षित कर लिया। इस षड्यंत्र में कहीं न कहीं अफसरशाही, ‘डीलिंग हैंड’ तथा बिचौलियों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। परिणामस्वरूप ऐसे गठजोड़ से बनाए तालमेल से ईमानदार, कर्मठ, उचित कर्मचारी व विशेषकर पिछली सरकार के दौरान सताए हुए कर्मचारी (सत्ता परिवर्तन के बावजूद) ठगा सा महसूस करने लगे हैं। स्पष्ट पारदर्शी तबादला नीति न होने के कारण षड्यंत्रकारी न्यायालय से स्टे बड़े आराम से प्राप्त कर अपने नापाक इरादों को भी अमलीजामा पहनाने में सफल हो जाते हैं। राजनीतिक रसूख और अफसरशाही से जुगाड़ कर जो भी कर्मचारी कई वर्षों से 10-20 किलोमीटर में ही विचरण कर रहे हों, उन्हें ट्रांसफर कर उचित कर्मचारियों को न्याय दिलाना जयराम सरकार का बहुत ही सराहनीय कदम होगा।

शिक्षा विभाग द्वारा इस ओर कदम बढ़ाना बहुत ही सराहनीय है। हिमाचल सरकार के अन्य विभागों से भी ठोस तबादला नीति बनाने की जनमानस को बहुत उम्मीदें हैं। इस ज्वलंत मुद्दे बारे बहुत से पहलुओं पर मंथन करने की आवश्यकता है। सर्वप्रथम 0 से 25 किलोमीटर तक कार्यरत कर्मचारी  के लिए तीन से दस वर्ष के लिए निर्धारित सीमा तय की जा सकती है। उदाहरण के लिए अगर आपसी तालमेल के चलते जो कर्मचारी दस किलोमीटर से भी कम दूरी के अंदर तबादला करवाते रहे हों तो उनके सेवाकाल को ‘क्लब’ करके तीन वर्ष से अधिक देना, उचित कर्मचारियों के साथ अन्याय है। इसी प्रकार 10-15 किलोमीटर के लिए चार वर्ष व 15-25 किलोमीटर के लिए पांच वर्ष रखा जा सकता है। अगर वहां आने का कोई इच्छुक न हो और अन्यथा भी आवश्यकता न हो, तो कर्मचारी पर अनावश्यक बदली की तलवार लटकाना उससे अन्याय होगा। बदले में कर्मचारी वर्ग से अपने कार्य क्षेत्र में निरंतर गुणात्मक सुधार लाते हुए जनमानस की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की भी उम्मीद रहेगी। कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनके बारे चिंतन की आवश्यकता है। जैसे गर्भवती महिला कर्मचारियों को मनपसंद स्थान मिलना ही चाहिए।

इसी प्रकार युगल, अपंग, घर में छोटा बच्चा या बुजुर्ग मां-बाप और उसके ऊपर उनका अस्वस्थता का मापदंड आदि समस्याओं को ध्यान में रखते हुए तबादला नीति बनानी चाहिए। (कपल) युगल आपस में 10-15 किलोमीटर से अधिक दूरी पर बिलकुल न हों। कपल केस में हिमाचल की सरकारी नौकरी को वरीयता तो हो ही, इससे भी अधिक महत्त्व यदि युगल में से एक भी प्रदेश सेवा के हित में उच्च शिक्षा ग्रहण करने गया हो, को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए तथा जीवनसाथी को पास-पास रखने का अति आवश्यक नियम बनाना चाहिए। तदोपरांत यदि संभव हो तो अर्द्धसरकारी या गैर सरकारी विभाग में कार्यरत जीवनसाथी को भी ध्यान में रखा जा सकता है। दूरदराज क्षेत्रों में अविवाहित इच्छुक परंतु केवल पुरुषों की ही नियुक्ति होनी चाहिए। वहां महिलाओं को उनकी सहमति बिना कदापि नहीं भेजना चाहिए। सेवानिवृत्ति के अंतिम तीन वर्षों में स्वेच्छा स्थान प्राप्त करने का नियम होना चाहिए। इसके लिए प्रार्थी को तीन-पांच स्थान देने चाहिएं तथा सरकार अपने विवेक से उनमें से स्थान चुने। एक स्टेशन की मनमर्जी में कर्मचारी सांठगांठ कर किसी शरीफ कर्मचारी को उठवाकर तंग भी न कर सकेगा। तबादला नीति में यदि कर्मचारी का नजदीकी रिश्तेदार यथा मां-बाप या पति-पत्नी में से कोई एक वास्तव में किसी जनहित सामाजिक कार्य में लगा हो, तो उसे भी स्वैच्छिक स्थान देने का प्रावधान होना चाहिए।

कर्मचारियों के लिए यदि तबादला नीति स्पष्ट, पारदर्शी, बिचौलियों व माफिया से मुक्त होगी, तो ही सबका साथ सबका विकास की सोच अपना क्रियात्मक रूप दिखाएगी। इससे कर्मचारी सचिवालय के गलियारों में चक्कर लगाने तथा विधायकों के आगे-पीछे घूमने की पीड़ा से भी निजात पा सकेंगे। इतना ही नहीं, इससे हमारे जनप्रतिनिधि व सरकारी तंत्र रचनात्मक विकास नीतियों पर अधिक ध्यान दे पाएंगे। परिणामस्वरूप विकास और जनहित कार्य अधिक होंगे, जिन पर जनमानस की निगाहें हमेशा टिकी रहती हैं। इतना ही नहीं, इससे बिचौलियों का धन बटोरने वाला धंधा स्वतः ही बंद हो जाएगा व तबादला माफिया से पीडि़तों को मुक्ति मिलेगी। स्पष्ट तबादला नीति जनता जनार्दन के लिए वरदान सिद्ध होगी तथा निःसंदेह इससे जनता का झुकाव सरकार की तरफ बढ़ सकता है। सरकार को इस बारे तुरंत कोई ठोस नीति बनाने का प्रयास करना चाहिए।


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