नूरपुर बस हादसे से सबक सीखने की जरूरत

By: Apr 14th, 2018 12:05 am

राकेश शर्मा

लेखक, कांगड़ा से हैं

अगर प्रशासन समय पर जागता और सड़क से गुजरने वालों की सुरक्षा के बारे में सोचता तो शायद ये नन्हे चिराग नहीं बुझते। हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है और इसकी सारी सड़कें और ज्यादातर हाइवे भी पहाडि़यों के ऊपर से होकर गुजरते हैं। कई सड़कों के तो दोनों तरफ  गहरी-गहरी खाइयां हैं, ऐसे में छोटी सी गलती भी गाडि़यां को गहरी खाई में धकेल देती है…

नूरपुर में दिल दहला देने वाली घटना ने हिमाचल को ही नहीं, बल्कि पूरे देश की जनता को झकझोर कर रख दिया है। जैसे ही नन्हे मुन्ने बच्चों की मौत की खबर फैली तो हर ब्यक्ति के चेहरे पर उदासी और उन मृत और बुरी तरह से घायल बच्चों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना के भाव मन में आने लगे। एक ही पंचायत से संबंध रखने वाले बच्चों की इतनी अधिक संख्या में मौत के कारण उस पंचायत में किस कद्र उदासी का माहौल होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। बच्चे हमेशा उल्लासपूर्ण वातावरण बनाए रखते हैं और अपनी हंसी और शरारतों से समाज को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं। समाज में फैली जातिगत और धार्मिक भेदभाव जैसी कुरीतियों से अनभिज्ञ नन्हे बच्चे केवल प्यार की भाषा समझते हैं और समाज में प्यार और भाईचारे के दूत के रूप में कार्य करते हैं। 9 अप्रैल का दिन बेहद दर्द देकर चला गया। आने वाले लंबे समय तक इस घटना को याद रखा जाएगा। नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ ही पेश आए इतने बड़े हादसे ने उन सभी अभिभावकों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं जिनके बच्चे प्रतिदिन 10-20 किलोमीटर का सफर स्कूल बसों के माध्यम से तय करके विद्यालय पहुंचते हैं और वापस आते हैं। ऐसे बड़े हादसों की खबरों के बाद उनका चिंता करना बिलकुल स्वाभाविक है। मृत बच्चों के सामूहिक अंतिम संस्कार के वे दृश्य तथा वे व्यथित माता-पिता, जिनके घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए, उनकी समाचार पत्रों में छपती तस्वीरों को देखकर मन भावुक हो उठता है। इस भयानक बस हादसे के बाद हादसे का पोस्मार्टम जारी है। इस हादसे में हुई मौतों के बाद कई तरह के नए निर्णय और अधिकारियों के द्वारा इस प्रकार की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए निर्देशों से भरे हुए पत्र अपने विभागों को जारी किए जा रहे हैं। परंतु यहां यह प्रश्न भी पैदा होता है कि ये नींद हादसों के बाद ही क्यों खुलती है। जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो बहुत ही मुस्तैदी के साथ प्रशासन अपने आप को एडि़यों के भार कर लेता है और फिर चिर निद्रा में चला जाता है। हादसे का एक मुख्य कारण खराब सड़क का होना भी बताया जा रहा है। कुछ दिन पहले उसी जगह पर एक ट्रक भी गिरा था और अब उसी ट्रक के ऊपर जाकर यह बस गिरी है। ऐसे दुर्घटना संभावित क्षेत्र पर पीडब्ल्यूडी को पैरापिट लगाने चाहिए थे, पर नहीं लगाए गए। अगर प्रशासन समय पर जागता और सड़क की और सड़क से गुजरने वालों की सुरक्षा के बारे में सोचता तो शायद ये नन्हे चिराग नहीं बुझते। हिमाचल एक पहाड़ी राज्य है और इसकी सारी सड़कें और ज्यादातर हाईवे भी पहाडि़यों के ऊपर से होकर गुजरते हैं। कई सड़कों के तो दोनों तरफ  गहरी-गहरी खाइयां हैं, ऐसे में एक छोटी सी गलती भी गाडि़यां को गहरी खाई में धकेल देती है।

छोटी दुर्घटना भी बड़े हादसे में तबदील हो जाती है जैसा कि नूरपुर में हुआ है। मैदानी इलाकों में होने वाले ज्यादातर हादसे तेज रफ्तार के कारण या धुंध आदि के कारण होते हैं परंतु ये कोई ओवरस्पीड की वजह से हुआ हादसा नहीं लग रहा है। सड़क पर पर्याप्त सुरक्षा मापदंड न होने के कारण ऐसा हुआ प्रतीत होता है। हिमाचल में यातायात के साधनों में सड़क माध्यम ही एक ऐसा माध्यम है जिस पर प्रदेश की ज्यादातर जनता निर्भर करती है। अन्य कोई भी साधन दैनिक कार्यों के निपटान हेतु प्रदेश की जनता को उपलब्ध नहीं है और न ही भविष्य में ऐसी कोई उम्मीद की जा सकती है। इसलिए प्रदेश में लगातार बढ़ते ट्रैफिक और आम जनमानस की आवश्यकता के अनुसार सड़कों का आधुनिकीकरण तथा आवश्यक सुरक्षा मापदंडों को लगाया जाना जरूरी है। हिमाचल प्रदेश में सड़कों की स्थिति बहुत दयनीय है। अगर समय रहते सड़कों की दुर्दशा को सुधारा नहीं गया तो ऐसे हादसों में तीव्रता से वृद्धि हो सकती है। प्रदेश के लिए स्वीकृत नेशनल हाइवे भी कहीं न कहीं राजनीति का शिकार हो चुके हैं। पिछले लगभग दो वर्षों से हाइवे का शोर तो बहुत सुना गया और उनका क्रेडिट लेने की कोशिश भी सभी के द्वारा की गई, परंतु धरातल पर कुछ भी अभी तक नहीं दिख रहा है। खराब सड़कों की हालत सुधारना इस समय की सबसे बड़ी मांग है। जगह-जगह सड़कों पर पड़े गड्ढे दुर्घटनाओं को न्योता दे रहे हैं। निजी विद्यालयों द्वारा बच्चों को लाने और ले जाने के लिए प्रयोग में लाई जा रही बसों पर सरकार अब शिकंजा कस रही है, परंतु क्या इस हादसे से पहले बसों के परमिट और ओवरलोडिंग की बात किसी के ध्यान में नहीं थी या जानबुझ कर आंखें बंद कर ली जाती हैं। सरकार अब इन विद्यालयों की कार्यप्रणाली को नियमों के अधीन लाने की बात कर रही है जो कि स्वागत योग्य है। इसके साथ-साथ सरकार को सड़कों की दुर्दशा पर समय रहते ध्यान देने की जरूरत है। दो महीनों के बाद बरसात के मौसम में सड़कों की दशा और भयानक रूप ले सकती है।  प्रतिदिन बहुत से छोटे-मोटे हादसे इन खराब सड़कों के कारण होते हैं जो कि मीडिया की नजर से बच जाते हैं। आम जनमानस के जान-माल की सुरक्षा सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश की खराब सड़कों की मरम्मत का कार्य सरकार के टॉप एजेंडे में होना चाहिए। सड़क सुरक्षा के प्रति सरकार लोगों को जागरूक करती रहती है और आम जनता सड़क सुरक्षा नियमों का सख्ती से पालन करे, इसके लिए पुलिस द्वारा स्थान-स्थान पर नाके लगाकर नियमों को तोड़ने वालों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई भी की जाती है। अगर सरकार इस तरह के हादसों पर नियंत्रण चाहती है तो गंभीरता जरूरी है।

जीवनसंगी की तलाश हैतो आज ही भारत  मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें– निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन करे!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App