रंग जुड़े हैं चक्र, आकार व राग से

By: Apr 21st, 2018 12:12 am

सतही तौर पर रंगों का संबंध देखने की इंद्रिय यानी आंखों से है। मगर प्रकृति में मौजूद रंगों को हम कैसे महसूस करते हैं? इसका आपकी इंद्रियों के साथ एक महत्त्वपूर्ण संबंध होता है। एक ही मूलभूत शक्ति ने धरती पर हर चीज की रचना की है…

बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें हर तरह के रंगों और उनके तरह-तरह के शेड्स के बीच अंतर का बोध होगा। यहां तक कि एक चित्रकार भी हो सकता है कि पेड़-पौधों का चित्र बनाते हुए, हरे रंग के पचास या सौ शेड्स कैनवास पर उतार दे, लेकिन अगर आप जंगल में जाकर देखें तो सिर्फ हरे रंग के ही हजारों शेड्स होते हैं। फिर भी, अगर आप किसी चित्रकार को काम करते देखें, तो वे रंगों के अलग-अलग शेड्स को किस तरह समझते हैं और जितना हो सके, उसे असली जैसा बनाने की कोशिश करते हैं, यह देखकर बहुत हैरानी होती है।

रंगों का संबंध अनाहत चक्र से

अकसर देखा जाता है कि एक विचारशील मन रंग की परवाह नहीं करता। अगर आप तार्किक तरीके से देखें, तो काला, सफेद और भूरे रंग के शेड्स कांट्रास्ट के लिए काफी होते हैं। उस नजरिए से सोचें, तो लगेगा कि स्रष्टा ने इतने सारे रंगों को बनाने का पागलपन क्यों किया। रंगों की सही पहचान के लिए, आपका अनाहत चक्र सक्रिय होना चाहिए। जैसे, अगर आपको शक्तिशाली आध्यात्मिक अनुभव हुआ हो, या आप किसी से प्रेम करने लगे हों, तो आपका अनाहत चक्र सक्रिय हो जाएगा। फलतः आप रंगों को अधिक स्पष्टता से देख सकते हैं। रंगों के मामले में पुरुषों और स्त्रियों में भी अंतर होता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि स्त्रियां रंगों को पुरुषों से बेहतर तरीके से देख पाती हैं।

रंगों का संबंध आकार से

सतही तौर पर रंगों का संबंध देखने की इंद्रिय यानी आंखों से है। मगर प्रकृति में मौजूद रंगों को हम कैसे महसूस करते हैं? इसका आपकी इंद्रियों के साथ एक महत्त्वपूर्ण संबंध होता है। एक ही मूलभूत शक्ति ने धरती पर हर चीज की रचना की है। उसी ने कीड़े को भी बनाया है, फूल को भी और आपको भी। अब आधुनिक विज्ञान भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अणु से लेकर ब्रह्मांड तक, हर चीज की बुनियादी बनावट मुख्य रूप से एक जैसी ही है। बस जटिलता का स्तर अलग होता है। चूंकि हर चीज की बनावट मूल रूप से समान होती है, तो आपकी इंद्रियां, रंग और इंद्रियों के बोध का तरीका, सब आपस में जुड़े होते हैं। हर खास रंग आपकी किसी खास इंद्रिय से जुड़ा होता है। इसलिए अलग-अलग रंग आपके अंदर अलग-अलग आयामों को सक्रिय कर सकते हैं। इतना ही नहीं, हर आकार के अनुरूप एक रंग योजना होती है। अगर हम ठीक से ध्यान दें तो अनुभव कर सकते हैं कि हर आकार या रूप, चाहे वह कितना भी सूक्ष्म हो, उससे रंगों का एक पहलू जुड़ा होता है। ध्वनियों से भी एक सुनिश्चित रंग जुड़ा होता है क्योंकि उनका भी एक आकार होता है। मंत्रोच्चारण करने वाले बहुत से लोगों को रंगों के बहुत स्पष्ट अनुभव होते हैं।

रंगों का संबंध ध्वनि से

भारत के शास्त्रीय संगीत में, सुर की खास संरचनाओं को राग कहा जाता है। राग का मतलब मुख्य रूप से रंग होता है। ध्वनियों के सूक्ष्म और कुशल प्रयोग से रंग और रूप उत्पन्न किए जाते हैं। आरंभ में, बस शब्द था। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से शब्द का अर्थ निकाला जा सकता है, मगर मुख्य रूप से यह सिर्फ ध्वनि-रंग-आकार है। इसलिए मूल या आदि ध्वनि की बात की जाती है। जैसे कि सभी भौतिक पदार्थों को एक खास गति पर धकेले जाने से वे रोशनी बन जाते हैं, उसी तरह हर चीज में स्वाभाविक रूप से रंग होता है। अगर आप लगातार ध्यान दें, तो ये सभी पहलू आपके सामने प्रकट हो सकते हैं। किसी ने कहा है, ‘दरवाजा खटखटाओ तो वह खुल जाएगा।’ मानव चेतनता, ब्रह्मांड का हर द्वार खोल सकती है। बस आपको जीवन के हर पहलू पर अपने ध्यान की गुणवत्ता और तीव्रता को बढ़ाना होगा।  -सद्गुरु जग्गी वासुदेव

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