संदर्भों को बदलने का श्रमदान

By: Apr 19th, 2018 12:05 am

अपने स्तर पर संदर्भों को बदलने की कोशिश में जब तक पूरा समाज सक्रिय नहीं होगा, हम राष्ट्र निर्माण नहीं कर पाएंगे। इस प्रयास के कई आयाम और रुकावटें हो सकती हैं, लेकिन ताल ठोंकने के लिए किसी को तो पहल करनी होगी। हिमाचल के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज विभागीय संदर्भों को पलटने की मेहनत में जो रास्ता खोज रहे हैं, उसका अनुसरण बाकी विभाग भी कर सकते हैं। कहने को स्कूली वार्षिक समारोहों में शाल-टोपी या पुष्प गुच्छ की मनाही का फैसला साधारण लगे, लेकिन इसकी बुनियाद पर चारित्रिक विकास संभव है। सरकारी कामकाज की रौनकों में हम यह भूल चुके हैं कि मर्यादित आचरण की सीमाएं पहले से ही तय हैं। स्कूलों की वास्तविक पहचान तो छात्रों और अभिभावकों के विश्वास पर टिकी है, लेकिन हमने इन्हें भी सियासी चरागाह बना दिया। इस दौरान घटती छात्र संख्या के बजाय यह कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया कि सरकारी स्कूल की छत के नीचे जब कभी अवसर मिले, तो नेताओं के चरण पूजे जाएं। ऐसे में शिक्षा मंत्री ने धीरे से समारोहों की कुछ रौनक तो सरकाई है, लेकिन इसका पूर्ण विश्लेषण आवश्यक है और यह भी कि प्रतिष्ठित गैर राजनीतिक हस्तियों का स्कूलों में मार्गदर्शन नजरअंदाज न हो। स्कूली शिक्षा की सरकारी परिपाटी में जो अध्याय जोड़ने चाहिएं, उनमें अभिभावकों का विश्वास सर्वाेपरि है, जबकि शिक्षा प्रांगण में अतिरिक्त ज्ञान, अध्ययन, शारीरिक व मानसिक उत्थान की दिशा में विशेष प्रयास करने होंगे। अभिभावक भी चाहें, तो शिक्षा का स्तर सरकारी स्कूल की वकालत कर सकता है। मंडी आईआईटी का एक असिस्टेंट प्रोफेसर अपने बेटे की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध अगर सरकारी स्कूल में करने का प्रयोग कर रहा है, तो इस उदाहरण में संदर्भों को बदलने की इच्छाशक्ति दिखाई देती है। कहने को यह सनक ही सही, लेकिन आज के दौर में ऐसे साहसिक कदमों से ही हम व्यवस्था को सुदृढ़ कर सकते हैं। सरकारी प्राथमिक स्कूल की दक्षता इसलिए बढ़ जाएगी, क्योंकि वहां आईआईटी के असिस्टेंट प्रोफेसर का बेटा शिक्षा ग्रहण कर रहा है। इस हिसाब से हिमाचल का हर सरकारी स्कूल अपना हुलिया बदल सकता है, बशर्ते वहां प्रदेश के बुद्धिजीवी समाज के बच्चे शिक्षा ग्रहण करें। अध्यापक वर्ग सर्वप्रथम ऐसा सामाजिक दायित्व ओढ़कर अपनी प्रासंगिकता बढ़ा सकता है। निजी स्कूलों का शिक्षा स्तर केवल संभ्रांत अभिभावकों के हस्तक्षेप के कारण दिखाई दे रहा है, जबकि कई मायनों में सरकारी क्षेत्र की फैकल्टी स्थायी तौर पर शैक्षणिक वातावरण का कौशल बढ़ा सकती है। एक छोटी सी पहल अगर मंडी के सरकारी स्कूल को विशिष्ट बना रही है, तो हिमाचल के अधिकारी, कर्मचारी व शिक्षक वर्ग अपने बच्चों को वहां दाखिला दिलाकर, शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी संदर्भ लिख सकते हैं। सरकारी संदर्भों को पलटने की जिम्मेदारी नागरिक समाज पर भी है और एक छोटी सी शुरुआत भी बड़े लक्ष्य या परिवर्तन की विरासत लिख सकती है। मैहरे व्यापार मंडल ने जब देखा कि बाजार में बदबूदार नाली की सफाई कोई विभाग नहीं कर रहा, तो दुकानदारों ने अपने श्रमदान से सारी व्यवस्था सुधार दी। समाजसेवी संस्थाओं के महासमागमों की टै्रफिक व्यवस्था, हर सूरत सरकारी इंतजाम से बेहतर इसलिए होती है, क्योंकि वहां कुछ करके दिखाना होता है। क्या सरकार के लक्ष्यों में कुछ करके दिखाने का जज्बा खत्म हो चुका है या ऐसे निठल्लेपन को नजरअंदाज करना हमारी फितरत बन चुका है। सरकारी क्षेत्र की असली परीक्षा संदर्भों की मिलकीयत में कुछ करके दिखाने से ही सफल मानी जाएगी। हर क्षेत्र और हर विभाग में नवाचार चाहिए। आर एंड डी के मायने पर्वतीय विकास की चुनौतियों के बीच भविष्य का रेखांकन भी है, अतः हिमाचल के संदर्भों को वक्त की नजाकत और परिवेश की जरूरतों के अनुरूप ऐसे बदलाव चुनने पड़ेंगे जो सक्षम साबित हों।


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