1905 में हुआ बाघल रियासत में विद्रोह

By: Apr 18th, 2018 12:05 am

1905 ई. में बाघल रियासत में फिर से विद्रोह फैल गया। राज विक्रम सिंह (1904-1922) उस समय अवयस्क था और राज्य  का प्रबंध मियां मान सिंह के हाथ में था। इसका तो राज परिवार के अपने घपले से आरंभ हुआ। बाद में क्षेत्र के सभी कनैत लोगों ने राजा के प्रतिनिधि, शासक और उसके भाई के विरुद्ध विद्रोह कर दिया…

जन आंदोलन व पहाड़ी रियासतों का विलय

ठियोग और बेजा में आंदोलन : 1898 ई. में बेजा और ठियोग ठकुराइयों में भी विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हुई। बेजा में लोगों ने ठाकुर के विरुद्ध आंदोलन किया और रियासत के दो सिपाहियों को बंदी बना लिया। बेजा के शासक उदय चंद ने अंग्रेज सरकार की सहायता से इस आंदोलन को दबा दिया और उनके कुछ नेताओं को बंदी बना लिया। 1898 ई. में ही ठियोग ठकुराइयों में बंदोबस्त में गड़बड़ी के विरोध में किसानों ने आंदोलन किया और उन्होंने बेगार देने से इनकार कर दिया। रियासती सरकार ने अंग्रेजी सरकार की सहायता से लोगों को शांत किया।

बाघल में विद्रोह : 1905 ई. में बाघल रियासत में फिर से विद्रोह फैल गया। राज विक्रम सिंह (1904-1922) उस समय अवयस्क था और राज्य  का प्रबंध मियां मान सिंह के हाथ में था। इसका तो राज परिवार के अपने घपले से आरंभ हुआ। बाद में क्षेत्र के सभी कनैत लोगों ने राजा के प्रतिनिधि, शासक और उसके भाई के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। लोगों ने बढ़ा लगान देना बंद कर दिया। राज्य में अशांति फैल गई। अंत में शिमला की पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज सुपरिंटेंडेंट ने बाघल की राजधानी अर्की जाकर इसमें हस्तक्षेप किया और आंदोलनकारियों को न्याय का आश्वासन देकर शांत किया। साथ ही मियां शेर सिंह को कुम्हारसेन से स्थानांतरण करके उसे काउंसिल का सदस्य बनाया। उसने भूमि बंदोबस्त आरंभ किया और अन्य सुधार करके वहां शांति स्थापित कर दी।

डोडराक्वार में विद्रोह : 1906 ई. में बुशहर के गढ़वाल के साथ लगते क्षेत्र डोडराक्वार में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ था। इस क्षेत्र का प्रशासन राजा की ओर से किन्नौर के गांव पवारी के वंशानुगत वजीर परिवार के रणबहादुर सिंह के हाथ में था। उसने राजा के विरुद्ध विद्रोह करके डोडराक्वार को स्वतंत्र बनाकर अपने अधीन करने का प्रयास किया। उसने वहां की राजकीय आय भी बुशहर के खजाने में जमा करनी बंद कर दी। वहां के लोगों ने भी उसके समर्थन में बुशहर राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसने राजा की अवज्ञा ही नहीं की, बल्कि अंग्रेज सरकार के दबाव की भी परवाह नहीं की।रणबहादुर उस समय का एक राष्ट्रवादी था। अंत में उसे शिमला पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर 1906 ई. में पकड़कर शिमला लाया गया और बंदी बना लिया गया। उसने हड़प की गई राजकीय आय को वापस करना स्वीकार किया। वह वहां बीमार हो गया। अंत में उसे कैद से मुक्त कर दिया गया, लेकिन इसके बाद वह हड़प की हुई राशि को वापस न कर सका। उसकी मृत्यु शिमला में ही हो गई। डोडराक्वार के जो लोग गांव छोड़कर चले गए थे, उन्हें बाद में राजा ने वापस बुला लिया।

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