अंग्रेजों की मदद से दबाया कुनिहार आंदोलन

By: May 2nd, 2018 12:05 am

किसान आंदोलन : 1920 ई. में कुनिहार रियासत में किसानों ने प्रशासन के अत्याचारों के विरोध में आंदोलन किया। लोगों ने राणा के विरुद्ध आवाज उठाई। रियासती सरकार ने अंग्रेजों की सहायता से इस आंदोलन को दबा दिया और इसे उकसाने वालों को जेल में बंद कर दिया…

जन आंदोलन व पहाड़ी रियासतों का विलय

1918 ई. में नालागढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में चरागाहों तथा वन संबंधी असंगत कानूनों के विरोध में राजा जोगिंद्र सिंह (1912) तथा उसका वजीर चौधरी रामजी लाल इस आंदोलन को दबा नहीं सके। अंत में अंग्रेज सरकार ने अपने सेना भेजकर आंदोलन को दबा दिया। सक्रिय आंदोलनकारियों को जल में डाल दिया गया।  इसके पश्चात लोगों ने रियासती सरकार ने असहयोग की नीति अपनाई। विवश होकर सरकार ने लोगों की शिकायतें दूर कर दीं और कानून बदल दिए तथा शांति-व्यवस्था कायम की। साथ ही राजा के कुछ अधिकार कम कर दिए गए। कुनिहार के किसान आंदोलन ः 1920ई. में कुनिहार रियासत में किसानों ने प्रशासन के अत्याचारों के विरोध में आंदोलन किया। लोगों ने राणा के विरुद्ध आवाज उठाई। रियासती सरकार ने अंग्रेजों की सहायता से इस आंदोलन को दबा दिया और इसे उकसाने वालों को जेल में बंद कर दिया। 1921 ई. में कुनिहार के बाबू कांशीराम और कोटगढ़ के सत्यानंद स्टोक्स ने पहाड़ी रियासतों में बेगार के विरुद्ध आवाज उठाई। सत्यानंद स्टोक्स ने बेगार प्रथा के विरुद्ध सारी पहाड़ी रियासतों में आंदोलन चलाया। लोगों ने इसके लिए जागृति पैदा करने के लिए उन्होंने कई लेख लिखे तथा स्थान-स्थान पर सम्मेलन किए। सन् 1921 में स्टोक्स ने बुशहर रियासत की राजधानी रामपुर में भी एक सम्मेलन किया। इसके पश्चात बुशहर के राजा पद्म सिंह (1914-1947) ने रियासत में बेगार प्रथा समाप्त करने का आश्वासन दिया।

सुकेत आंदोलन : 1924 ई. में सुकेत के राजा लक्ष्मण सेन (1919) के समय में जनता से आवश्यकता से अधिक लगान लिया जाता था। बेगार प्रथा बड़े जोरों पर थी। जो बेगार नहीं देता था उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। राजा के नाम से लक्ष्मण दंड कानून चलाया जाता था। जमीन जमींदारों की, परंतु पेड़ राजा के होते थे। 1924ई. में बेगार, लगान और कर सीमा जब हद से बाहर हो गई तो आम जनता ने संघर्ष की राह पकड़ी। इसका नेतृत्व बनैड़ (सुंदरनगर) के एक मियां रत्न सिंह ने किया। उसने रियासत के कई क्षेत्रों का दौरा किया और लोगों को रियासती प्रसाशन की ज्यादतियों से अवगत कराया। उसने अक्तूबर व नवंबर 1924 में कई स्थानों पर जलसे किए। लोगों ने उसके नेतृत्व में कचहरी का घेराव किया और कुछ लोगों को पकड़ लिया। इस आंदोलन में सुकेत के कई क्षेत्र के लोगों ने भी भाग लिया। राजा लक्ष्मण सेन ने स्थिति से निपटने के लिए पंजाब से 10 सितंबर, 1924 को सेना मंगवाई। अंग्रेज डी.एस, मुकंजी गोरखा और पेशावरी सिपाहियों के साथ सुंदरनगर आए।

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