आनंद देते हैं सुबह के पल

By: May 26th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘दिव्य पल’ पर उनके विचार ः

-गतांक से आगे…

तड़के सुबह का समय, जब सूरज नहीं निकला होता है, अमृत आवर्स अर्थात अमृत वेला कहलाता है। इस समय आसपास कोई नहीं होता है, कोई शोर भी नहीं होता है, चहुं ओर सुख व शांति पसरी होती है। इस समय हवा ताजा होती है, ऊर्जावान होती है तथा ताजगी से भरपूर होती है। हमने पिछली रात की नींद में सभी चिंताएं व जिम्मेवारियां भुला दी होती हैं तथा आज की परेशानियां अभी शुरू नहीं हुई होती हैं। पूरा विश्व इस समय अल्प निद्रा में होता है तथा कोई भी आपका ध्यान नहीं खींच रहा होता है। इस समय आप अकेलेपन व अपनेपन में होते हैं। आपका दिमाग, आत्मा व शरीर सद्भावना में होता है। इस समय आपकी आत्मा ग्रहणशील व सृजनशील होती है। आप अपनी आत्मा को अपने से जोड़ सकते हैं तथा सार्वभौमिक आत्मा से भी आप ऐसा कर सकते हैं। यह समय आत्म-विश्लेषण व चिंतन के लिए होता है। इस समय आपका दिमाग शांत होता है तथा आपका स्वतंत्र दिमाग आपको अपनी आत्मा की प्रतिछाया दे सकता है। इस समय आपका दिमाग समय तथा अंतराल से मुक्त होता है। अपेक्षाकृत इस समय आप दिमाग से शून्य होते हैं। आप दिव्य क्षणों के प्रति सचेत होते हैं तथा भोर का आनंद उठाते हैं। शांति के इन क्षणों में आप अपने प्रिय लेखकों से बात कर सकते हैं, उनकी किताबें भी पढ़ सकते हैं। ऐसा करते हुए कई बार आप अंतरात्मा की गहराइयों में उतर जाते हैं। ये क्षण परम सुखदायी संपूर्ण से भरपूर होते हैं जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है। कई बार आपका दिमाग खाली हो जाता है। इस समय व्यक्ति को पढ़ना चाहिए, लिखना चाहिए, पेंटिंग करनी चाहिए अथवा संगीत सुनना चाहिए। यह आपको आनंद देगा। वेदों को पढ़ो और उन्हें समझो। दिन की बढ़ती रोशनी को धीरे-धीरे देखें। व्यक्ति के दिमाग में आशा का संचार चढ़ते सूरज के साथ-साथ होता है। प्रकृति, वृक्ष, बहते पानी तथा पर्वतों पर देखना चाहिए। यह वह समय होता है जब व्यक्ति को फूलों को निहारना चाहिए तथा इसका आनंद लेना चाहिए।

इस समय फूलों को मत तोड़ो। वे भगवान के मंदिर होते हैं। एक जापानी व्यक्ति फूलों पर देखता है तथा इनकी प्रशंसा करता है। लार्ड टेनीसन इन्हें तोड़ता है तथा विचार करता है। एक दार्शनिक इन्हें वहीं रहना देता है जहां ये हैं तथा इनमें आत्मसात हो जाता है। वह सोचता है कि जो फूल तोड़ा जा चुका है, उस पर अपना दिमाग लगाना व्यर्थ की बात है। वह पैरवी करता है कि व्यक्ति को फूल को वैसे ही देखना चाहिए जैसा यह है तथा इसे क्वालिफाई नहीं करना चाहिए। अपनी चिंतन प्रक्रिया का अध्ययन करें तथा अमृत वेला का आनंद उठाएं। इस समय अंद्रेटा में अंधेरा छाया हुआ है, पर्वत के पीछे से बिजली रह-रहकर कड़क रही है तथा क्षितिज में हल्के बादल छाए हुए हैं। धीरे-धीरे रोशनी तेज होती जाती है। बादलों से युक्त यह भोर सुंदर है। आसमान साफ है तथा इसका अपना एक आकर्षण है। मैं सुबह तीन बजे उठता हूं, अपने लिए चाय का एक कप बनाता हूं, नर्म ऊन की टोपी तथा लंबे ऊनी दस्ताने पहनता हूं, बाहर आता हूं, बरामदे में नर्म कुशन से बनी कुर्सी पर बैठता हूं तथा उत्सुकता के साथ भोर का इंतजार करता हूं। आध्यात्मिकता दिव्य कुछ भी नहीं है, किंतु यह किसी को परिभाषित करता है। हमें खुद को दिव्य बनाना है, सभी मादक वस्तुओं को हटाना है अर्थात घिनौने कार्य से बचना है तथा सचा नशा अर्थात आध्यात्मिकता को अपनाना है। हमें बौध धर्म की ‘सचनेस’ के व्यवहार को अपनाना है। हम इसे सिख धर्म में ‘सहज’ कहते हैं। यह एक चीज अथवा स्थिति को लेना है, जैसी यह है। यदि हम इसके कैसे और क्यों को लाते हैं तो पूरी चीज का आनंद चला जाएगा। हमारी अंतरात्मा में जो प्रकाश व निर्देशन है, उसे हमें बाहर लाना है।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App