जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर थे यक्ष
किन्नर और किरात जाति के बाद एक और जाति का नाम आता है। यह जाति यक्ष नाम से जानी जाती है। वैदिक साहित्य में इसे ब्रह्म शब्द लिखा गया है, जबकि परवर्ती साहित्य में वीर कहा गया है। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर संभवतः यक्ष ही थे। ऐसा कुछ विद्वानों का मत है…
मुख्य रूप से ये पूर्वी और मध्य हिमालय में रहे। इन लोगों ने असम, भूटान, नेपाल आदि क्षेत्रों में बड़ी बस्तियां बनाइर्ं और मोहनजोदड़ों तक फैल गए। पूर्व का समस्त खंड इन किरात जातियों से भरा हुआ है। यह जाति पशुपालक थी अैर इसमें गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी। ऋषि वशिष्ठ ने इन्हें शिष्ण देव कहा है। इस जाति के लोग लिंग को देवता मानकर पूजते हैं। वेदों में इसे गुफाओं में रहने वाली जाति तथा महाभारत में इसे हिमालय का निवासी कहा गया है। किन्नर और किरातों को मैदानों से उत्तर की ओर पहाड़ की तरफ भगाने वाले खश थे। जिन्होंने पहाड़ों में अपने नाम की छाप छोड़ी। ये लोग किरात प्रदेश नेपाल तक पहुंच गए। किन्नर किरातों और खशों के बीच शुरू में कई युद्ध हुए होंगे, क्योंकि मैदानों से पहाड़ों की तरफ किरात हरने के बाद ही भागे होंगे। किन्नर-किरात जहां से भागते गए, वहां खश अपना अधिकार जमाते गए। जिन लोगों ने आत्मसमर्पण किया, वे बाद में खशों में विलीन हो गए। किन्नर और किरातें के परस्परिक संबंधों के बारे में बताना आसन नहीं। किन्नर देश एक समय गंगा के पठार से लेकर पश्चिम में सतलुज और चंद्रभागा नदियों के पठार तक फैला हुआ था, जबकि किरात गंगा के पठार के पूर्वी भाग के साथ-साथ लगते नेपाल तक फैले हुए थे। किरात जाति के अवशेष इस प्रदेश में विद्यमान नहीं हैं। फिर भी अधिक बारीकी से देखने पर केवल सिरमौर के पूर्वी छोर महासू के उत्तर काशी के साथ लगने वाले इलाके तथा किन्नौर के पूर्वी-दक्षिणी किनारों में किरातों का कुछ प्रभाव दिखाई पड़ता है, परंतु रामपुर बुशहर का ऊपरी भाग जो आज किन्नौर जिला है, किन्नर प्रदेश के नाम से जाना जाता था। इसके अलावा लाहुल-स्पिति का क्षेत्र भी किन्नर प्रदेश के अंतर्गत लिया जा सकता है। अर्थात हिमाचल का समस्त उत्तरी भाग किन्नरों का देश है। किन्नर किरातों की अपेक्षा शांतिप्रिय थे। उनका स्वभाव साधु वृत्ति का था। ये सुसंस्कृत और सभ्य थे। किन्नर लोग कला प्रेमी, शिल्पी भी थे। इनके कंठ के अनुरूप इनका स्वभाव भी मधुर था। शायद तभी महाकवि कालिदास इनके कंठ की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। यक्ष : किन्नर और किरात जाति के बाद एक और जाति का नाम आता है। यह जाति यक्ष नाम से जानी जाती है। वैदिक साहित्य में इसे ब्रह्म शब्द लिखा गया है, जबकि परवर्ती साहित्य में वीर कहा गया है। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर संभवतः यक्ष ही थे। ऐसा कुछ विद्वानों का मत है। यह जाति हिमालय निवासिनी थी। उत्तर (अलकापुरी) में यक्षों की आदिम बस्ती मानी जाती है, यह संभवतः गढ़वाल कुमाऊं क्षेत्र में थी, परंतु हिमाचल में अब इसके अवशेष दिखाई नहीं देते।
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