धर्म की दीवारें लांघ चंबा की नेहा खान पहुंची हाई कोर्ट

By: May 20th, 2018 12:10 am

आज जहां समाज बेटी को बोझ समझ कर उसे कोख में ही कत्ल करने की सोच रखता है, वहीं याकूब खान ने अपनी तीन बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाकर साबित कर दिया कि आज औरत चूल्हे-चौके और चारदीवारी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसको पंख लगें तो वह अपना आकाश ढूंढ सकती है। याकूब खान की तीन बेटियों में नेहा खान ने हाई कोर्ट शिमला की वकील बनकर न केवल परिवार का मान बढ़ाया, बल्कि मुस्लिम समाज के उन लोगों का मुंह भी बंद कर दिया है जो लड़कियों को बुर्के के पीछे की दुनिया में देखना चाहते हैं…

डलहौजी विधानसभा क्षेत्र के उपमंडल सलूणी की ग्राम पंचायत किहार का छोटा सा गांव अकुंजा आज अपनी अहमियत रखता है, जहां की नेहा खान आज हाई कोर्ट की वकील बन चुकी हैं, जो यहां के हिसाब से किसी बड़ी उपलब्धि से कम नही है। ‘दिव्य हिमाचल’ के साथ नेहा खान ने अपने कटु अनुभव साझा करते हुए कहा कि किहार से स्कूली व स्नातक की शिक्षा महाविद्यालय सलूणी से की। फिर वकालत की पढ़ाई हिमाचल यूनिवर्सिटी शिमला से पूरी कर आज हाई कोर्ट में ही वकालत कर रही हैं। और साथ में पढ़ाई भी जारी रखे हुए है। नेहा खान ने बताया कि पशुपालन विभाग में फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत उनके पिता याकूब खान ने समाज से हटकर अपनी तीनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाई है। नेहा की बड़ी बहन एमए बीएड हैं जिनकी शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बहन सोलन में फिजियोथैरेपी की पढ़ाई कर रही हैं। जब उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलवानी शुरू की तो उनके समाज के कई लोगों ने उन्हें रोकना चाहा। मगर उनके बढ़ते कदमों को कोई रोक नहीं पाया, जिसका नतीजा मुस्लिम समाज के लिए आज सामने है। इसका श्रेय वह अपने पिता याकूब खान को देती हैं। तीन तलाक पर नेहा ने अपने खुले विचार रखते हुए कहा कि तीन तलाक पर पूरी तरह पाबंदी लगनी चाहिए। ऐसे जो भी मामले हों, वे संवैधानिक कानूनी प्रक्रिया से हल हों। ताकि मुस्लिम महिलाओं को भी बराबरी का हक मिले।

मुलाकात :बंदिशों से निकलकर ही मंजिल पाई जा सकती है…

औरत के लिए घूंघट निकालना या बुर्कानशीं होना क्या जरूरी है? और यह साबित क्या करता है?

कारण चाहे जो भी हों, पर्दा स्त्री  की आत्मविश्वास की भावना को कम करता है और उसे असुरक्षित, असहाय बनाता है। मानसिक दृष्टि से वह अपनी रक्षा के लिए किसी बिंदु पर आ कर पुरुष की आश्रिता, संरक्षिता हो जाती है। आज भारतीय स्त्रियों में कायरता, निर्बलता और भीरुता की जो कमजोरियां विद्यमान हैं, उनका एक बड़ा कारण यही है कि उसे सदियों से दूसरों की  निगाह से बच कर रहना सिखाया जाता रहा है। पर्दे में रखकर उसे कमजोर और अविश्वासनीय होने का अहसास कराया जाता रहा है।

आपने समाज की बेडि़यां किस हिसाब से तोड़ीं और कहां-कहां धर्म या पाखंड खड़ा हुआ?

धर्म कहीं भी रुकावट नहीं बनता, पर धर्म के नाम पर चलाया जा रहा यह पाखंड रुकावट है। इन पाखंडों से निकलने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत होती है और मुझ में यह आत्मविश्वास था, तभी तो पाखंडी सामाज को जवाब दे पाई हूं।

बेटियां समाज की आंखें बन सकती हैं, बशर्ते…?

हां जरूर बन सकती हैं, बशर्ते उन पर बंदिशें न हों। वैसे भी बेटियों ने बंदिशों को पीछे छोड़ कर और अपने परिवार के साथ अपने सपनों को उड़ान दी है। हर फील्ड में बेटियां आगे हैं और आगे भी आगे ही रहेंगी। हाल ही के स्कूलों के रिजल्ट यह साबित करने के लिए काफी हैं।

ऐसी कौन सी प्रेरणा रही, जो आपका मुस्तकबिल बन गई?

मेरी प्रेरणा मेरे अम्मी- पापा और मेरी प्यारी सहेली निशा शर्मा हैं, जिन्होंने जिदंगी के हर उस मोड़ पर  मेरा साथ दिया,  जहां मैं खुद को अकेला पाती थी।

जिंदगी में अब तक की सबसे कठिन परीक्षा और राहत का सबब?

सबसे कठिन परीक्षा ढोंगी और पाखंडी समाज से बाहर निकलना और अपने सपने को पूरा करना था। यह सब मेरे परिवार और अम्मी- पापा का साथ था कि उन्होंने समाज और धर्म को अलग रख कर मेरे सपने को पूरा करने में मेरा सहयोग दिया।

चंबा के दुरुह क्षेत्र में सलूणी से शिमला तक के सफर में आपके द्वंद्व क्या रहे?

मेरे इस सफर में मेरा द्वंद्व मेरा धर्म रहा। क्योंकि इस्लाम धर्म में महिलाओं पर बहुत बंदिशें होती हैं। उनको कहीं अकेले आने जाने की आजादी नहीं होती, पढ़ाई लिखाई के लिए रोका जाता है। हर क्षेत्र में महिलाओं को पीछे रखा जाता है। इन सबके बावजूद मैंने अपने सपनों को पूरा करने की  कोशिश की।  मैं सलूणी क्षेत्र के एक छोटे से गांव से शिमला जैसे शहर के हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तक पहुंची और अपने सपनों की उड़ान भरी।

नारी होने की खासियत में जहां आपको बुलंदी नजर आई या जहां असमानता नजर आती है, तो इसके कारणों का सबसे बड़ा गुनहगार कौन?

अगर इनसान जिंदगी में कुछ करने की ठान ले, तो इससे कोईफर्क नहीं पड़़ता कि समाज क्या कहेगा। और असमानता का सबसे बड़ा गुनहगार समाज नहीं समाज में रहने वाले छोटी सोच के लोग होते हैं, जो बेटियों को आगे बढ़ने में रोड़ा बनते हैं।

जो आपने बतौर मुस्लिम महिला पाया या जहां आपको सुधार के लिए संघर्ष करना है?

एक मुस्लिम महिला होने के नाते मैंने अपने जीवन में बहुत चुनौतियां देखी हैं,  जिनके अनुभव  से आज मैं यहां पर हूं।

अदालत में आपकी पैरवी भी क्या महिला मसलों की बानगी में देखी जाएगी?

हां, मेरी पैरवी महिला  के सशक्तिकरण की बानगी में होगी। आज देश तो आजाद हो गया है, लेकिन हमारे देश की महिलाएं आज भी गुलाम हैं। उन्हें पढ़ाया नहीं जाता, उन पर अत्याचार किया जाता है। देहज के लिए जला दिया जाता है। महिलाओं को सशक्त बनाना और उनके हक के  लिए लड़ना मेरा पहला कदम होगा।

नेहा खान को लोग किस तरह संबोधित करें या आप अपनी पहचान के जरिए किस रुतबे का पीछा कर रही हैं?

मैं चाहती हूं कि नेहा खान को लोग ‘चीफ जस्टिक नेहा खान’ के नाम से जानें।

पढ़ाई से इतर आपकी स्वतंत्रता का दायरा कहां-कहां रहा और मनोरंजन की दृष्टि से कौन सा शौक आजमा लिया?

‘मार्शल आर्ट’ का मुझे  बहुत शौक था, जो मैंने सीखा है। वजह यही कि मैं जिंदगी को किसी के सहारे जीना नहीं चाहती।

जिंदगी आपके लिए कितनी स्वतंत्र व अपनी है?

जिदंगी में आपका सपना और उस सपने को पूरा करने का हौसला है और  उस हौसले से आप अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत रखते हैं, तो आपकी जिंदगी सिर्फ आपकी है और स्वतंत्र है।

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