मनुष्य और स्वतंत्रता

By: May 19th, 2018 12:05 am

बाबा हरदेव

मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता की संभावना है। मनुष्य जंजीरों में बिलकुल जकड़ा हुआ नहीं है। यह कोई धागों से बंधी हुई कठपुतली भी नहीं है, बल्कि मनुष्य को सचेतन अवसर है चुनाव का, मनुष्य जहां जाना चाहे जा सकता है। परमात्मा मनुष्य को कहीं से अवरोध नहीं देता है मनुष्य के लिए सब दिशाएं खुली होती हैं। मनुष्य चाहे तो गिर जाए खाई में, चाहे तो उबर आए, परमात्मा कभी भी मनुष्य को रोकता नहीं। हर हालत में प्रभु की शक्ति मनुष्य को मिलती रहती हैं, क्योंकि परमात्मा का दान बेशर्त है। इसके दान में मनुष्य को परतंत्र बनाने की कोई चेष्टा नहीं है। मानो अस्तित्व मनुष्य को देने को बेशर्त राजी है, मनुष्य जैसे भी प्रयोग करना चाहे इस शक्ति का प्रयोग कर सकता है। मनुष्य अगर गलत मांगता है तो गलत भी मिल जाता है, भटकन मांगता है तो भटकन भी मिल जाती है। परमात्मा मनुष्य की स्वतंत्रता में कोई बाधा नहीं डालता।

अब ये एक आम ख्याल है कि जब परमात्मा जानता है कि गलत क्या है तो फिर जब मनुष्य गलत मांगता है तो ये (परमात्मा) मनुष्य को गलत क्यों देता है? चोर को चोरी करने से रोकता क्यों नहीं? बुरे को बुराई करने से बाज क्यों नहीं रखता? इसका जवाब संत महात्मा इस तरह से देते हैं कि अगर परमात्मा मनुष्य की मांग को पूरा न करे तो मनुष्य की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है, फिर परमात्मा जो चाहे मनुष्य

को दे। इस सूरत में मनुष्य की मांग की स्वतंत्रता भी न रह जाएगी तब तो मनुष्य की सारी गरिमा खो जाएगी, जबकि मनुष्य की गरिमा यही है कि वह गलत भी जा सकता है सही जाना चाहे तो सही भी जा सकता है। मनुष्य बंधन मांगता है तो बंधन घटित हो जाता है, मुक्ति मांगता है तो मुक्ति घटित हो जाती है। बेशक यह सब घटता तो परमात्मा के हुक्म या (नियम) के अनुसार ही है।

उदाहरण के तौर पर व्यक्ति वृक्ष पर चढ़ जाता है और फिर जान-बूझकर खुद ही वृक्ष से नीचे की तरफ कूद पड़ता है, तो निश्चित ही यह जमीन पर गिर पड़ेगा और हो सकता है कि जमीन पर गिरने से इसकी कोई हड्डी-पसली टूट जाए। अब जमीन पर गुरुत्वाकर्षण मनुष्य को संभाले हुआ था और इसे जमीन पर लुढ़कने नहीं देता था, मगर वही गुरुत्वाकर्षण इस व्यक्ति के गलत उपयोग की वजह से इसकी हड्डी पसली टूटने का कारण बन जाता है। इसी प्रकार मनुष्य जमीन पर सीधा चलता है, तो गुरुत्वाकर्षण मनुष्य के चलने में सहारा देता है और जब यही मनुष्य तिरछा चलना शुरू कर देता है तो यह गिर पड़ता है, चोट खा बैठता।

हालांकि शक्ति वही है, सिर्फ मनुष्य की उलट चाल की वजह से सब कुछ उलट-पुलट हो जाता है वाक्यी! शक्ति निरपेक्ष है, तटस्थ है, मानो परमात्मा बिलकुल निरपेक्ष और तटस्थ है, मनुष्य अगर शक्ति को ठीक से उपयोग करे, तो यह परम अनुभव को उपलब्ध हो जाता है और मनुष्य भटक जाए, तो यह (मनुष्य) जीवन के गहन गर्त में गिर जाता है। अब इस बात में कोई शक नहीं कि सब परमात्मा से ही मिलता है। कानून या नियम तो प्रभु का ही काम करता है, मगर मनुष्य की मांग, इसकी चाल पर सब निर्भर है। विडंबना यह है कि मनुष्य खुद ही मांग-मांग कर फंस जाता है और फिर दोष परमात्मा पर थोपता फिरता है कि परमात्मा ने ऐसा कर दिया। जबकि वास्तविकता यह है कि मनुष्य का उल्टा कर्म, इसकी चाल ही इसके पतन का कारण सिद्ध होती है।

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