मिनी बस में मंत्रिमंडल

By: May 23rd, 2018 12:05 am

चिंतन में एक आशा भरना मुश्किल नहीं, लेकिन अंजाम तक पहुंचाना भी आसान नहीं, फिर भी जिरह और जवाब बदलने का हमेशा जिक्र होता है। एक जिक्र इस वक्त हिमाचली सोच की सतह पर प्रशंसा का पात्र बन रहा है, तो यह कहना स्वाभाविक है कि छोटा सा कदम ही नई मंजिलों पर काबिज होने का सामर्थ्य रखता है। सरकारी गलियारों में योजना-परियोजनाओं के बडे़-बड़े संकल्पों के बीच, कभी-कभी छोटी पगडंडियां दूर तक ले जाती हैं। शिमला में राष्ट्रपति आगमन की धूम के बीच हमें तो राजधानी की सड़क पहली बार इसलिए पसंद आई, क्योंकि वहां सरकारी कारों के काफिलों के बजाय मंत्रियों व अधिकारियों को मिनी बसों में पहुंचते देखा। ऐसा नहीं कि सरकारी वाहनों की कमी है, लेकिन पहली बार महसूस हुआ कि शिमला की वीआईपी हलचल में यही शानोशौकत भी दोषी है। जिसने भी फैसला लिया, इस संवेदना की कद्र  होनी चाहिए, क्यों इसके माध्यम से नैतिक जिम्मेदारी, अनुभव से सीख, विकल्पों की तलाश और वीआईपी सनक से दूरी देखी गई। अमूमन सरकारी और सत्ता के काफिलों को जनता की परवाह नहीं होती और अकसर छोटी सी चूक में छवि मसल दी जाती है। बीबीएन के वीआईपी समारोह में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को ऐसी सजा मिली थी, जिसे परंपरा नहीं बनाया जा सकता, लेकिन राष्ट्रपति के समारोहों में मुख्यमंत्री, मंत्रियों व अधिकारियों के मार्फत यातायात की यही परंपरा बननी चाहिए और ऐसा करके हिमाचल सरकार ने अपना परिमल बदला है। यानी हर दिन सचिवालय पहुंचने वाले अधिकारी-कर्मचारी अगर संयुक्त रूप से मिनी बसों में आएं, तो शिमला शहर इनका धन्यवाद करेगा। राजधानी की यातायात व्यवस्था के समाधान का जो तकाजा राष्ट्रपति आगमन पर तय हुआ, उस मॉडल का विस्तार होना चाहिए। शिमला के सरकारी कार्यालयों को जोड़ती बस सेवाएं कुछ इस तरह निर्धारित हों कि हर कर्मचारी-अधिकारी अपना निजी वाहन चलाने से परहेज करे। इसी तरह राजनीतिक व सत्ता केंद्रित काफिले भी अपनी लंबी पूंछ की कतरब्यौंत करें, तो जनता भी लाभान्वित होगी। दुर्भाग्यवश हिमाचल की ट्रैफिक व्यवस्था वीआईपी फरमानों के बीच यह तय नहीं कर पाती कि आम जनता को राहत कैसे दी जाए। आज तक एचआरटीसी का संचालन इस दृष्टि से नहीं हुआ कि किस तरह दैनिक यात्रियों को सुविधा दी जाए, ताकि वे निजी वाहन न दौड़ाएं। आश्चर्य यह कि कांगड़ा में एचआरटीसी निजी बस आपरेटरों के खिलाफ हल्ला बोलते दिखाई दे रही है, जबकि सही योगदान तो परिवहन व्यवस्था को इस काबिल बनाकर सिद्ध होगा, ताकि सड़कों से निजी वाहन कम हो जाएं। लो-फ्लोर बसों के खेल में पूर्व परिवहन मंत्री ने इसे निजी बसों के खात्मे की ओर झोंक दिया, जबकि इनका सदुपयोग निजी वाहनों का दबाव कम कर सकता था। शिमला के अलावा हर छोटे-बड़े शहर या कस्बे को निजी वाहनों के दबाव से मुक्त करने से ही सार्वजनिक परिवहन का वास्तविक चेहरा सामने आएगा। इसी लिहाज से जिलों के भीतर नागरिक यात्राओं का दैनिक पैटर्न अगर समझा जाए, तो विभिन्न डेस्टिनेशन को जोड़ते हुए परिवहन क्लस्टरों पर नियमित बस सेवाएं जनता को खामख्वाह निजी वाहन दौड़ाने से छुटकारा दिलाएंगी। इसके लिए निजी एवं सरकारी बसों के रूट निर्धारण में महज प्रतियोगिता नहीं, बल्कि जनसुविधा को आधार माना जाए। हिमाचल के कमोबेश हर प्रशासनिक शहर, पर्यटक व मंदिर स्थलों की ओर सुबह और शाम की परिवहन जरूरतों को ही अगर समझ लिया जाए, तो सार्वजनिक परिवहन के अर्थ बदल जाएंगे। इसके अलावा शहरों के बाजार क्षेत्रों को वाहन प्रतिबंधित घोषित करने की रूपरेखा में वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करनी होगी। हर शहर-कस्बे के एंट्री प्वाइंट पर मेगा पार्किंग विकसित करते हुए, स्थानीय बस सेवा को अलग पैमाने पर चलाना होगा। बीबीएन, सोलन, धर्मशाला, मंडी व कुल्लू-मनाली के बीच शहरी परिवहन को एचआरटीसी की नई प्रणाली या शहरी विकास के खाके में निर्धारित करना होगा। यातायात दबाव को समझे बिना, परिवहन की वर्तमान सुविधाएं नाकाफी हैं। खासतौर पर शिक्षण संस्थाओं के आसपास निजी वाहनों का प्राण घातक दबाव केवल सार्वजनिक स्कूल बस प्रणाली से ही हल होगा। अतीत में एचआरटीसी व निजी बसें स्कूली बच्चों को विशेष सुविधाएं देती रही हैं, जिन्हें पूर्व सरकार ने घाटे के नाम पर बंद कर दिया। इस दिशा में एक व्यापक नीति वांछित है। निरंतर विकास की ओर अग्रसर हिमाचल कहीं शिक्षा हब बना रहा है, तो कहीं मानवीय समूहों का आकर्षण बढ़ा रहा है। ऐसे में प्रदेश में विभिन्न प्रवेश व प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के नजरिए से राज्य स्तरीय परीक्षा केंद्र विकसित होने चाहिएं, ताकि हिमाचल में किसी एक केंद्र पर ही भीड़ न हो। शिमला, मंडी, धर्मशाला व हमीरपुर में राज्य स्तरीय परीक्षा केंद्र विकसित करने के लिए हिमाचल विश्वविद्यालय, आईआईटी, एनआईटी, स्कूल शिक्षा बोर्ड व केंद्रीय विश्वविद्यालय का सहयोग लिया जा सकता है। बहरहाल राष्ट्रपति आगमन ने सरकार को अगर सामूहिक तौर पर मिनी बस में चलना सिखा दिया, तो यह तहजीब जिला स्तर पर भी कारगर होनी चाहिए।

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