मौत-मौत में फर्क क्यों
अक्षित, आदित्य, तिलक राज गुप्ता, रादौर
कश्मीर घाटी से गत 30 अपै्रैल को दो ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिन्होंने लोगों को सोचने पर विवश कर दिया। पहली घटना में सुरक्षा बलों ने दो आतंकी कमांडरों-समीर टाइगर और आकिब खान को मार गिराया, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने हिंसा की और पथराव किया। अब दूसरी घटना देख लीजिए। एक अन्य घटना में आतंकियों ने मुखबिरी के नाम पर तीन स्थानीय मुस्लिम युवकों को एके-47 से बीच बाजार में भून दिया। मगर आतंकियों द्वारा मारे गए इन तीन निर्दोष युवकों की मौत पर कोई हिंसा नहीं, कोई पथराव, कोई आक्रोश नहीं। आम आदमी और आतंकी की मौत में अंतर क्यों? अगर जवानों के हाथों आतंकियों की मौत पर विरोध प्रदर्शन होते हैं, तो आतंकियों के हाथों निर्दोष लोगों की हत्या पर विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं होते। लोगों की ऐसी सोच से ही आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा, तभी समानता का अधिकार सार्थक होगा।
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