श्रीविश्वकर्मा पुराण

By: May 26th, 2018 12:05 am

उस श्राप के लिए आखिरी योनि में मेरा चित्त भी निरंतर आपके चरणों में ही लगा रहे। इसके बाद भगवान कश्यप ने दक्ष की पुत्री अदिति से लगन किया था और उससे उनको बारह पुत्र हुए थे। ये सब सूर्य की भांति प्रख्यात हैं उनके त्वष्टा नाम के पुत्र ने दैत्यों की रचना नाम की छोटी बहन के साथ लगन किया था। त्वष्टा ने इस रचना नाम की स्त्री से सन्यवेष और विश्वरूप नाम के दो पुत्र उत्पन्न किए। एक समय देवताओं ने अपने पुरोहित बृहस्पति का अपमान किया। इससे बृहस्पति उनको छोड़कर चले गए। पुरोहित बिना उन देवताओं को देखकर दैत्य उनको कष्ट देने लगे। इससे देवताओं ने इस विश्वरूप को अपना पुरोहित बनाया था तथा उस विश्वरूप के ज्ञान बल तथा विद्या के प्रवाह द्वारा देवता फिर पुनः असुरों के त्रास से हटकर अपने वैभव को प्राप्त करने लगे, परंतु असुर कन्या से उत्पन्न हुए विश्वरूप के ऊपर देवताओं को पूरा विश्वास न होने के कारण उन्होंने विश्वरूप को बाद में मार डाला। विश्वरूप का इस प्रकार नाश होते ही उसके पिता त्वष्टा अत्यंत कुपित हुए तथा अपने पुत्र को मार डालने वाले देवताओं के राजा इंद्र का नाश करने हेतु दक्षिणाग्नि में होम किया। इससे उस अग्नि में से एक भयंकर आकृति वाला अत्यंत कुरूप तथा बहकामना पुरुष उत्पन्न हुआ। ये पुरुष वही चित्रकेतु है जिसको विद्याधर के रूप में पार्वती ने श्राप दिया था।  पार्वती का पाया हुआ वह श्राप भोगने के लिए त्वष्टा से उत्पन्न हुआ। वह चित्रकेतु उत्पन्न होकर एकदम बढ़ने लगा तथा अपने भयंकर काल पर्वत के समान शरीर से सब दिशाओं को रुधने लगा। अपने हाथ में भयंकर चमक मारता त्रिशूल जाने लोकों का नाश करने की इच्छा करता हो। इस प्रकार चारों ओर घूमने लगा तथा जो कोई उसके सामने आता उन सबका नाश करने लगा। इस प्रकार से त्वष्टा द्वारा दक्षिणाग्नि में से उत्पन्न हुआ ये पुरुष वृत्तासुर नाम से प्रख्यात हुआ। ये वृत्तासुर उत्पन्न होने के साथ ही अपने आयुधों के द्वारा तीनों लोकों का नाश करने लगा। इस प्रकार कष्ट पाते हुए सब देवता अपने-अपने दायिती हथियारों को धारण करके उसे वृत्तासुर के साथ लड़ने के लिए रण संग्राम में आने लगे। सब एक होकर अनेक आयुधों से उस वृत्तासुर के साथ युद्ध करने लगे। वह सब देवता एक साथ ही उस असुर के ऊपर अनेक हथियार चलाते। वह असुर मुंह फाड़कर एक ही साथ सब हथियारों को  निगलने लगा तथा अपने त्रिशूल से उन सभी देवताओं को कष्ट पहुंचाने लगा। इससे घबराए हुए उन सब देवताओं ने प्रभु विश्वकर्मा की स्तुति की तथा उनको प्रसन्न किया। इस तरह देवताओं से प्रसन्न हुए प्रभु विश्वकर्मा बोले, हे देवताओ! त्वष्टा के मंत्र के प्रभाव से उत्पन्न हुआ ये असुर अत्यंत भयंकर है, फिर भी तुम उससे घबराओ नहीं, परंतु इस असुर का नाश करना सहज नहीं। इसके विनाश के लिए योग्य साधन तैयार हों, तब तक तुमको धीरज रखना पड़ेगा। फिर भी नारायण कवचरूपी महाविद्या से तुम रक्षा प्राप्त हो, इसलिए दैत्य से पीड़ा पाते हुए भी वह तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकता। इसलिए दैत्य के वध का उपाय किया जाए, तब तक तुम इंतजार करो। इस तरह कहकर कृपालु भगवान भगवान ने समस्त देवताओं को आश्वासन देकर विदा किया तथा इसके बाद भयंकर वृत्तासुर का वध करने का प्रभु ने विचार किया।

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