साहित्यकार स्व. इंद्रेश शर्मा को नमन…
साहित्य संगोष्ठी में अपनी कविताओं से रंग जमाने वाले 66 वर्षीय कवि इंद्रेश शर्मा का गत 5 मई 2018 को हृदय गति रुकने से अचानक निधन हो गया। उन्होंने पीजीआई चंडीगढ़ को अपनी देह दान कर रखी थी, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी, क्योंकि उनकी मृत्यु घर से दूर अपने भानजे के फार्म हाउस में रात को सोते समय साइलेंट हार्ट अटैक से हुई। वह मजबूत इच्छाशक्ति के मालिक थे, लेकिन जैसे मौत भी उनका सामना न करते हुए धोखे से इस जनकवि को ले गई। देहदानी की मृत्यु के छह घंटों के भीतर देह को संबंधित अस्पताल तक पहुंचाना होता है, जो कि नहीं पहुंचाई जा सकी। बिलासपुर व्यापार मंडल के एक समारोह में इंद्रेश शर्मा को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा द्वारा सम्मानित भी किया गया था। स्कूल-कॉलेज के दिनों में इंद्रेश हॉकी के प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे। जीवन यापन हेतु वह हलवाई की पुश्तैनी दुकान चलाते थे। बड़े बेटे ऋषभ के कहने पर इंद्रेश ने दुकान के काम से संन्यास ले लिया था। ऋषभ एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत था, लेकिन 37 वर्ष की आयु में उनका अचानक जालंधर में एक कार दुर्घटना में लगभग सवा साल पहले निधन हो गया था। इससे इंद्रेश भीतर से टूट गए, उन्होंने बेटे की मृत्यु का दर्द अपनी कलम से यूं लिखा :
कंधा देना था तूने, ओ दूर जाने वाले,
कंधा देना पड़ा तुम्हें, ओ दूर जाने वाले,
तू जिम्मेवारी की छत थी, क्यों छोड़ा मझधार ओ दूर जाने वाले।
कहा जाता है कि हर व्यक्ति के हृदय में एक कवि होता है। इंद्रेश के भीतर का वह कवि भी लगभग 5 साल पहले ही जागृत हुआ था। अपनी कविताओं की डायरी में सिस्टम पर प्रहार करते हुए वह एक जगह लिखते हैं :
सिस्टम के शिकार दर-दर भटक रहे,
प्राइवेट अस्पताल मानवता को शर्मसार कर रहे हैं।
जब संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती का कुछ राजपूत संगठन विरोध कर रहे थे तो इंद्रेश ने लिखा :
पद्मावती का विरोध,
पोर्नोग्राफी का नहीं,
जिंदगी मर्जी से नहीं,
दूसरों की मर्जी से जीएं,
क्रिसमस ट्री नहीं तुलसी पौधा लगाएं, केक की जगह हलवा-पूरी खाएं।
वर्ष 1972 में वह कभी अपने साथियों सहित कश्मीर घूमने गए थे। 16 अक्तूबर 2016 को उनकी ‘कश्मीर तब और अब’ शीर्षक से एक लंबी कविता कुछ इस तरह हालात बयां करती है :
कश्मीर की खूबसूरती मंत्रमुग्ध करती थी,
कोई कहीं भी जा सके, कोई कहीं भी किसी से मिल सके,
कहीं जाने आने का डर न था, डल झील की सैर सुहानी थी,
शिफोर पर घूमना परियों से साक्षात्कार जैसा था,
अब हर तरफ डर और खौफनाक मंजर, हर चेहरे पर अविश्वास, अलगाववादी घाटी में माहौल बिगाड़ने में लगे, सरकार को चुनौती देने लगे…
14 सितंबर 2016 हिंदी दिवस के अवसर पर इंद्रेश की कलम से हिंदी की दशा यूं वर्णित हुई है :
मैं कब से खड़ी हूं,
मैं कब से पड़ी हूं,
मैं सबसे लड़ी हूं
मैं हिंदी हूं हर परिस्थिति में तन कर खड़ी हूं
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि देते हुए इंद्रेश शर्मा लिखते हैं :
बच्चों को प्यारा कलाम चला गया,
आज के युग का राम चला गया।
बेटियों के बारे में बेटियां शीर्षक की कविता में उन्होंने कुछ यूं विचार प्रकट किए हैं :
लिंग भेद के जाल में मत उलझो,
अनमोल हैं बेटियां, दो घरों की मुस्कान हैं बेटियां,
शक्ति का भंडार हैं बेटियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘अच्छे दिन आएंगे’ के बारे में उनकी प्रतिक्रिया कुछ ऐसी रही है :
अच्छे दिन कब आएंगे,
सब आस लगाए बैठे हैं
खाली हाथ फैलाए बैठे हैं
सारा ध्यान हटाने बैठे हैं।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर जब विवाद का बवंडर उठा था तो इंद्रेश शर्मा ने लिखा :
सनी और सबरीमाला मंदिर में उनके प्रवेश पर क्यों मनाही,
कैसे अपवित्र हो गई नारी,
अब तो भाई 21वीं सदी है जारी।
पर्यावरण के प्रति इंद्रेश शर्मा की जागरूकता उनकी इन पंक्तियों में झलकती है :
कीटनाशक अनुबम से अधिक घातक,
कीटनाशक कर रहे भूमि की उर्वरकता कम,
पर्वतमालाओं का हो रहा चीरहरण
बढ़ रही बंजर भूमि, उड़ रही सब ओर मरुस्थल जैसी धूल।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद की हिमाचल प्रदेश इकाई की अध्यक्ष रीता सिंह व कहलूर संस्कृत परिषद की बिलासपुर जिला इकाई के अध्यक्ष रामलाल पाठक के अनुसार दिवंगत कवि इंद्रेश शर्मा की कविताओं को सहेज कर पुस्तक प्रकाशित करने का प्रयास किया जाएगा। यही उनके उस कवि को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-कुलदीप चंदेल, बिलासपुर
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