हिमाचली पुरुषार्थ : पचास रुपए का सफर बीस करोड़ तक पहुंचा

By: May 23rd, 2018 12:08 am

शिमला के एक छोटे से गांव नवरेहली से जेब में सिर्फ 50 रुपए लेकर मनाली पहुंचे जितेंद्र वर्मा महज 12 साल में करोड़पति बन गए। किसी समय खुद कोट-बूट की दुकान में दूसरों के पास काम करने वाले जितेंद्र आज सात होटलों के मालिक हैं और भारत बुकिंग होलि डे इंडिया प्राइवेट लिमिटिड कंपनी के एमडी हैं…

जिंदगी तो सभी जीते हैं, लेकिन खास वेे लोग होते हैं, जो किसी खास मकसद के लिए जीते हैं। बिना मकसद के जीने वाले बस एक भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाते हैं, लेकिन जिनका मकसद होता है वे रात-दिन मेहनत कर लीक से हट कर कुछ खास काम कर जाते हैं। कुछ ऐसी सोच को लेकर शिमला के एक छोटे से गांव नवरेहली से जेब में सिर्फ 50 रुपए लेकर मनाली पहुंचे जितेंद्र वर्मा महज 12 साल में करोड़पति बन गए। किसी समय खुद कोट-बूट की दुकान में दूसरों के पास काम करने वाले जितेंद्र आज सात होटलों के मालिक हैं और भारत बुकिंग होलि डे इंडिया प्राइवेट लिमिटिड कंपनी के एमडी हैं। महज 31 साल की उम्र में कामयाबी के शिखर पर पहुंचे जितेंद्र के संघर्ष की कहानी भी काफी रोचक है। शिमला के एक छोटे से गांव नवरेहली से ताल्लुक रखने वाले जितेंद्र वर्मा वर्ष 2006 में बीएससी सेकेंड ईयर में पढ़ रहे थे कि बड़े भाई रमेश कुमार ने उन्हें घर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने के लिए कहा और अपने साथ मनाली में कारोबार करने के लिए कहा। ऐसे में बड़े भाई के आदेशों का पालन कर भाई द्वारा ही दिए गए 50 रुपए ले वह मनाली पहुंच गए। एक अनजान शहर में तो शिमला के गांव का एक भोला-भाला लड़का तो पहुंच गया था, लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि मनाली में उसे करना क्या है। यहां जितेंद्र ने बांग में एक कोट-बूट की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया। इस बीच बड़े भाई द्वारा लीज पर लिए होटल में भी काम सीखना शुरू किया। सुबह चार बजे उठ जितेंद्र मनाली से बांग पहुंचते और रोहतांग घूमने जाने वाले सैलानियों को कोट-बूट किराए पर देते। ठीक आठ बजे दुकान बंद कर वह दोबारा होटल पर पहुंचते और वहां का कामकाज संभालते। धीरे-धरी जितेंद्र ने कोट-बूट दुकान चलाने वाले व्यक्ति से पार्टनरशिप कर ली और दुकान चलाने लगे। एक साल तक जितेंद्र इसी कारोबार को संभालते रहे और होटल में आने वाले सैलानियों को 2500 रुपए के पैकेज पर कोट-बूट के साथ रोहतांग की सैर भी करवाने लगे। वर्ष 2007 में जितेंद्र ने ट्रैवल एजेंसी खोलने की योजना बनाई और इस ओर कदम बढ़ाते हुए वह पहली बार दिल्ली टीटीएफ(ट्रैवल टूरिज्म फेयर)में गए। यहां पहुंच उन्होंने नामी ट्रैवल एजेंसियांे के नुमाइंदो से बातचीत की और कारोबार को कैसे बढ़ाना इस की बारीकियां सीखीं। इसके बाद उन्होंने कई टीटीएफ में शिरकत की और अपने कारोबार संबंधित बारीकियां सीखीं। 2008 में जितेंद्र ने क्लिक मनाल डॉट कॉम के माध्यम से अपना कारोबार चलाना शुरू किया और कारोबार अच्छा चल भी पड़ा। इसी बीच जितेंद्र ने एक छोटा होटल भी ले लिया और वहीं पर दफ्तर भी खोल लिया, जहां वह अपना टूअर एंड ट्रैवलिंग का कारोबार भी चला रहे थे और होटल भी। 2009 में आठ कर्मचारियों के साथ जितेंद्र ने एक और नया आफिस खोला। अब कारोबार भी बढ़ रहा था, लिहाजा नया आफिस मनाली में खोलना पड़ा। इसी साल जितेंद्र ने हिमाचल बुकिंग के नाम से एक और साइट बनाई और अब इस पर काम शुरू कर दिया। कारोबार लगातार बढ़ रहा था। इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। 2010 में जितेंद्र ने अपने कारोबार को एक कंपनी की शक्ल दे डाली और भारत बुकिंग होलि डे इंडिया प्राइवेट लिमिटिड कंपनी को खोला। धीरे-धीरे कारोबार बढ़ता गया और कंपनी को मुनाफा होता गया। किसान के घर जन्मे और आज कारोबार जगत में अच्छा नाम कमाने वाले जितेंद्र वर्मा बताते हैं कि उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट भी इसी साल आया। एक तरफ जहां कारोबार बढ़ रहा था, वहीं चुनौतियां भी हर रास्ते पर मिल रही थीं। उन्होंने कहा कि कंपनी बनने के बाद जहां स्टाफ की संख्या भी बढ़ गई, वहीं आज शिमला, अहमदाबाद, केरला में भी उनकी कंपनी के कार्यालय हैं। मनाली में उनके वर्तमान समय में सात होटल चल रहे हैं। आज उनकी कंपनी का साल में करीब 20 करोड़ रुपए का टर्नओवर है। जितेंद्र बताते हैं कि जब भी उन्हें किसी मुसीबत का सामना करना पड़ा, तो शिमला के ही रहने वाले बड़े भाई समान संदीप सूद ने उनका हर कदम पर साथ दिया। आज उन्हें भी अपनी कंपनी में शामिल कर जितेंद्र अपने आप को सौभाग्य शाली मानते हैं। जितेंद्र कहते हैं कि आज भी उनके पास वह 50 रुपए का नोट है, जिसे ले कर वह मनाली पहुंचे थे। उसे वह अपने बड़े भाई का आशीर्वाद मानते हैं। वह अपने लिए नहीं दूसरों के लिए काम करने पर विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनका असली नाम मोहन वर्मा है, लेकिन कारोबार जगत में उन्हें जितेंद्र वर्मा के नाम से ही जाना जाता है। जितेंद्र बताते हैं कि वह  शिमला के अपने पुशतैनी गांव में भी होटल का निर्माण करवा रहे हैं और वह उस क्षेत्र में भी पर्यटन को बढ़ावा दिलवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वह कारोबारी न होते तो वह शिक्षक जरूर होते। उनका यह सपना ही था कि वह शिक्षक बन समाज के विकास में अपना योगदान दें। उन्होंने कहा कि वह युवाओं से कहना चाहते हैं कि अगर किसी चीज को करने की सोचो तो उसे जरूर करें। हिम्मत न हारें, कामयाबी जरूर मिलेगी।

जब रू-ब-रू हुए…

मनाली के बिना हिमाचली पर्यटन की कल्पना हो ही नहीं सकती…

जीवन के संघर्ष में आपकी आशा का स्रोत क्या रहा?

मेरा परिवार मेरी सबसे बड़ी ताकत है। अब तक के संघर्ष में बड़े भाई रमेश कुमार और दोस्त व बड़े भाई सम्मान संजीव सूद ने उनका हर कदम पर साथ दिया। यही मेरी आशा का स्रोत रहे।

पचास रुपए से बीस करोड़ के मुकाम तक पहुंचने के बाद आप नसीब को कितना करीब से देखते हैं?

आदमी का नसीब उसकी कामयाबी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अगर आप मेहनत दिल से करते हो तो आपका नसीब भी आपका साथ देता है, ऐसा मेरा मानना है। मैने मेहनत दिल से की और नसीब ने भी मेरा साथ दिल से दिया।

अब तक आपकी सफलता के तीन बड़े कारण ?

मैं कभी भी काम को बोझ नहीं समझता। काम ही मेरे लिए सब कुछ है। मैं अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए काम करने में विश्वास रखता हूं। यही मेरी सफलता के तीन बड़े कारण है।

जितेंद्र वर्मा के शब्दों में दौलत के मायने क्या हैं और आप कमाई का निर्धारण कैसे करते हैं?

ेमैने कभी पैसों का लालच नहीं किया। आज भी मेरे पर्स में गुजारे लायक ही रुपए रहते हैं। मैं दिखावे पर विश्वास नहीं करता। साधारण जीवन जीना ही मुझे पसंद है। मेरी सबसे बड़ी दौलत मेरा परिवार व मेरे सहयोगी हैं।

हिमाचली पर्यटन में मनाली का योगदान। क्या इन सालों में होटलों ने मनाली से हुस्न छीन लिया?

मेरा मानना है कि हिमाचली पर्यटन की कल्पना मनाली के बिना हो ही नहीं सकती। प्रदेश के पर्यटन में मनाली अहम भूमिका अदा करता है। मनाली आज भी उतनी ही सुंदर है, जितनी पहले थी। बस कुछ चीजें जरूर बदल गई हैं।

जिस रास्ते पर कभी आपने कोट और बूट किराए पर दिए, क्या वहां एनजीटी की रोक को गलत ठहाएंगे?

न्यायालय के आदेशों का मैं सम्मान करता हूं। मैं शायद ही इस विषय पर कुछ कह पाऊं।

अवैध निर्माण की परिभाषा में पर्यटन उद्योग को वास्तविक खतरा है किससे। और इसका अंजाम क्या दिखाई देता है?

अवैध निर्माण किया ही नहीं जाना चाहिए। मेरा मनना है कि पर्यटन उद्योग को अवैध निर्माण से खतरा पैदा हो गया है। इस का अंजाम भी डराने वाला ही रहेगा।

मनाली के अलावा आपकी रुचि का अन्य हिमाचली पर्यटक स्थल ?

शिमला, धर्मशाला, डलहौजी।

हिमाचल को अगर पर्यटन राज्य की तरह आगे बढ़ना है, तो कौन से तीन अहम फैसले लेने होंगे?

यहां पहुंचने वाले सैलानियों को हर सुविधा असानी से मिलनी चाहिए। हेलिटैक्सी की सेवा हो। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बने। एयर कनेक्टिविटी की अच्छी व्यवस्था हो। सड़कों की हालत अच्छी हो।

आपकी दृष्टि में प्रोफेशनलिज्म क्या और हिमाचल पर्यटन को इस दिशा में क्या सीखना है?

जो व्यक्ति किसी काम को रुचि व दिल से कर नाम कमा लेता है, वही प्रोफेशनलिज्म है। हिमाचल पर्यटन भी लगातार इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

हिमाचल से पर्यटक चाहता क्या और  क्यों हमसे बेहतर जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, केरल, राजस्थान या गुजरात सिद्ध हो रहे हैं?

नहीं, ऐसा नहीं है कि हिमाचल दूसरे राज्यों से कम है। यहां कि खूबसूरती के सैलानी आज भी कायल हैं। सैलानियों को अब हिमाचल में भी सभी सुविधाएं मिलने लगी हैं।

इस मुकाम पर पहुंचने की जद्दोजहद में जो पाया और जो खोना पड़ा ?

इस मुकाम पर पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। मैं तो कहूंगा कि आज भी मेरा सफर जारी है। मैंने लोगों के दिलों को जीता है, जो मरी सबसे बड़ी दौलत है। शहर की चकाचौंध में गांव के उन पलांे को याद जरूर करता हूं जहां परिवार व दोस्तों के साथ जमकर मस्ती करते थे।

कोई सपना , जिसे अभी पूरा करना है ?

अपने गांव नवरेहली में होटल बनाना। उस क्षेत्र को पर्यटन से जोड़ना और युवाओं को इस क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करवाना।

व्यावसायिक दौड़ से हटकर जहां आपकी जिंदगी विश्राम करती है। मौज मस्ती या मनोरंजन करती है।

मैने पहले भी कहा कि मैं काम को बोझ नहीं समझता। काम कर ही मै अपने आप को मनोरंजित करता हूं।

आपका पसंदीदा रेस्त्रां कहां है। खाने में जो पसंद है या जो संतुष्ट करता है?

घर का खाना बेहद पसंद है। बाहर का खाना काफी कम खाता हूं। सादा खाना मुझे बेहद पसंद है।

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