कंगाल होता कश्मीर

By: Jun 22nd, 2018 12:05 am

कश्मीर में आठवीं बार राज्यपाल शासन लगा है। राज्यपाल एनएन वोहरा के हाथ में चौथी बार प्रशासन की बागडोर है। आतंकवाद, अलगाववाद, कट्टरपंथ, पत्थरबाजों की हिंसा का अब क्या होगा, कमोबेश सेना और पुलिस को कुछ समय देना चाहिए। दरअसल आतंक और टकराव को छोड़कर अब कश्मीर की अर्थव्यवस्था का आकलन करना चाहिए। कश्मीर विपन्नता की कगार पर है। कुछ धंधे जम्मू क्षेत्र में बचे हैं, अलबत्ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निर्यात और व्यापार औसतन घटे हैं। कश्मीर में प्रति व्यक्ति आय भी कम हुई है। ये निजी आकलन नहीं हैं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के आर्थिक सर्वे के खुलासे हैं। जम्मू-कश्मीर के जो बुनियादी धंधे रहे हैं और पर्यटन उसकी आर्थिक बुनियाद रहा है, वे उजड़े हैं या लगातार कम हुए हैं। यदि 2017 को ही आधार-वर्ष मानें, तो कश्मीर में सैलानियों की संख्या लगातार घटती रही है। वर्ष 2015 में करीब 92 लाख पर्यटक कश्मीर गए, तो 2016 में संख्या लुढ़क कर करीब 84 लाख हो गई और 2017 में करीब 72 लाख सैलानी ही ‘दुनिया की जन्नत’ देखने गए, लेकिन वहां दोजख की तस्वीर देखकर निराश हुए और मोहभंग के एक भाव के साथ लौटे। यह संख्या लगातार घटती जा रही है, तो सीधा आघात कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर है। ये हालात तब हैं, जब केंद्र की मोदी सरकार ने 80,000 करोड़ रुपए की मदद दी थी, ताकि विभिन्न विकास परियोजनाएं पूरी की जा सकें। कश्मीर की अर्थव्यवस्था कई स्तरों पर चरमराई है। मसलन-आतंकी कमांडर बुरहान वानी के खात्मे के बाद, सिर्फ 6 माह की अवधि के दौरान कश्मीर को करीब 16,000 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। आतंक और हिंसा के माहौल के कारण टैक्स और विभिन्न प्रकार की लेवी के मद्देनजर रोजाना का औसतन नुकसान 160 करोड़ रुपए है। सीमापार छाए युद्ध ने स्कूल-कालेज और घरों को भी तबाह किया है। करीब 1 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर पलायन करना पड़ा है। उनमें किसान, पेशेवर, नौकरीपेशा और अपने धंधों में जुटे लोग होंगे। इनके अलावा खेत बंजर हुए होंगे, मवेशी भी मारे गए होंगे! ये हालात रहेंगे, तो आर्थिक आय कैसे होगी? बुनियादी तौर पर आतंकवाद ने कश्मीर की ‘आर्थिक रीढ़’ तोड़ी है। पीडीपी-भाजपा सरकार के दौरान 571 आतंकी और 127 नागरिक मारे गए, जबकि 243 जवान ‘शहीद’ हुए। आतंकवाद के ऐसे मंजर से गुजरने वाले कश्मीर में धंधा-पानी क्या और कैसे संभव था? नतीजतन कश्मीर के कारोबारी गर्म कपड़े, शाल, फरहन, मेवे और कालीन वगैरह बेचने के लिए महीनों दिल्ली में रहते हैं और दर-ब-दर घूमकर कारोबार करते हैं। यदि हालात सामान्य होते, तो उन्हें देश के दूसरे हिस्सों में भटक कर कारोबार क्यों करना पड़ता! अब यह गंभीर चुनौती मोदी सरकार और भाजपा के सामने है। यदि कश्मीर का आर्थिक विकास होगा, तो कश्मीर के साथ खिलवाड़ करने वाले चंद चेहरे बेनकाब होंगे। वे चंद चेहरे ही कश्मीर की खुशहाली और प्रगति पर मंडराती ‘काली छाया’ हैं, अलबत्ता कश्मीर ने तो इस बार 16 नौजवान ऐसे दिए हैं, जो संघ लोक सेवा आयोग (आईएएस, आईपीएस, आईएफएस आदि) की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं। वे कश्मीर की बौद्धिकता, विचारशीलता के प्रतीक हैं। वे आतंकी नहीं हैं, लेकिन कश्मीर दोबारा ‘जन्नत’ नहीं बना, तो यह विरासत भी ‘कंगाल’ हो सकती है। कश्मीर में करीब 2000 मस्जिदें ऐसी हैं, जिन पर वहाबियों का कब्जा है। उन मस्जिदों से कश्मीर की पढ़ी-लिखी जमात को भी बरगलाया जाता रहा है। नतीजतन कुछ प्रोफेसर, इंजीनियर, पेशेवर भी आतंकी बने हैं। मोदी सरकार और भाजपा के सामने भारी दायित्व हैं। पहले तो युवाओं को मुख्यधारा में लाना होगा। आने वाली 23 जून को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जम्मू में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। यह तारीख जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है। उन्होंने कश्मीर में 2 विधान, 2 निशान, 2 प्रधान की व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई थी और रहस्यमयी स्थितियों में ‘शहीद’ हुए थे। यह वैचारिकता कश्मीर की अर्थव्यवस्था से भी संबद्ध है। यदि भाजपा अपने दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देना चाहती है, तो अनुच्छेद 370 और 35-ए को समाप्त करना होगा। जनसंघ और भाजपा दशकों से इन मुद्दों पर चिल्लाती रही हैं। कमोबेश अब मौका है कि राजनीति की चिंता न करते हुए कश्मीर की विसंगतियों का खात्मा करे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App