कांग्रेस में बढ़ने लगा गांधी जी का प्रभाव

By: Jun 6th, 2018 12:05 am

इस समय राजनीतिक रंगभूमि में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के भावी नेता मोहन दास कर्मचंद गांधी (1869-1948) का अवतरण, जो 1914 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए थे, सामाजिक- राजनीतिक विकास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। तभी से कांग्रेस के बीच गांधी जी का प्रभाव बढ़ने लगा…

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापनाः प्रसिद्ध मंडी षड्यंत्र की 1914-15 की घटना भी गदर पार्टी से प्रभावित होकर घटी थी। गदर पार्टी के कुछ लोग जब अमरीका से वापस आए, तो उन्होंने मंडी और सुकेत की रियासतों के लोगों में अपने समर्थक बनाने के लिए कुछ कार्य आरंभ किया। ‘गदर की गूंज’ साहित्य को पढ़कर उन्होंने लोगों को उकसाया। मंडी की रानी खेरागढ़ी और मियां जवाहर सिंह उनके प्रभाव में आ गए। रानी ने धन देकर उन लोगों की सहायता की। दिसंबर 1914 और जनवरी 1915 में गुप्त बैठकें करके यह निर्णय लिया गया कि पुलिस अधिकारी और वजीर को मार दिया जाए और सरकारी कोष को लूटा जाए तथा ब्यास नदी पर बने पुल को उड़ा दिया जाए। इसके पश्चात मंडी और सुकेत की रियासतों पर अधिकार किया जाए। बाद में पंजाब के क्रांतिकारियों के साथ काम करे। केवल एक नागचला डाके के अतिरिक्त वे अपने सभी उद्देश्य में असफल रहे। इस असफलता के फलस्वरूप रानी खेरागढ़ी को मंडी से निर्वासित कर दिया गया। गदर पार्टी के कार्यकर्ताओं में से एक ‘भाई हिरदा राम’ नाम से था। उसे पंजाब भेजकर बम बनाने की शिक्षा का प्रशिक्षण ग्रहण करने का कार्य सौंपा गया था। इस पार्टी के कार्यकर्ताओं को पकड़-धकड़ में वह भी पकड़ा गया और लाहौर के षड्यंत्र के मुकदमे में उसे प्राण दंड दिया गया, परंतु बाद में इस दंड को उम्रकैद में बदल दिया गया। इस पकड़-धकड़ में हरदेव भागने में सफल हो गया था और वह भागकर गढ़वाल मंे बद्रीनाथ पहुंच गया। उसने अपना नाम बदल कर स्वामी कृष्णानंद रख लिया तथा कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर 1917 ई. से सिंध प्रांत अहिंसात्मक आंदोलन में कूद पड़ा। अंत में सभी क्रांतिकारी पकड़े गए और उन पर मुकदमें चला कर लंबी-लंबी कैद की सजाएं दी गईं। उनमें मुख्य थे- जवाहर नरयाल, मियां जवाहर सिंह, बद्रीनाथ, सिद्धू खराड़ा, ज्वाला सिंह, शारदा राम, दलीप सिंह, लौंगू राम और सिद्धू द्वितीय। कालांतर में हिरदा राम को काला पानी की सजा के लिए अंडेमान भेज दिया गया। इसके पश्चात मंडी का क्रांतिकारी संगठन कमजोर पड़ गया। 1916 ई. के आरंभ में मंडी, सुकेत और ऊना में गदर पार्टी के क्रांतिकारी फिर से सक्रिय हो गए और अंग्रेज अफसरों को मारने की योजना बनाई गई। इस बार मंडी के कार्यकर्ता शीघ्र ही पकड़े गए। उनमें से पांच पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें चौदह से अठारह वर्ष की सजा हुई। ऊना के क्रांतिकारी ऋषिकेष लट्ठ के क्रांतिकारी दल का भी भेद खुल गया और वे भूमिगत हो गए तथा कुछ समय बाद ईरान पहुंचकर गदर पार्टी में शामिल हुए। इस समय राजनीतिक रंगभूमि में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के भावी नेता मोहन दास कर्मचंद गांधी(1869-1948) का अवतरण, जो 1914 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए थे, सामाजिक- राजनीतिक विकास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। तभी से कांग्रेस के बीच गांधी जी का प्रभाव बढ़ने लगा।

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