कितना सही है रेपो रेट बढ़ाने का निर्णय

By: Jun 13th, 2018 12:10 am

अश्विनी महाजन

 एसोसिएट प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

जीडीपी ग्रोथ में वृद्धि भी भविष्य में महंगाई घटने की ओर इंगित कर रही है। महंगाई दर नवंबर, 2017 में लक्षित 4 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा जरूर है, लेकिन यह उसकी ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत से खासी कम है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसका भविष्य के प्रति कोई नकारात्मक रुख नहीं है और उसने अपना तटस्थ रुख रखा है और 2018 के लिए 7.4 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ की अपेक्षा भी रखी है। इसलिए ऐसा लगता है कि बढ़ती जीडीपी और काबू महंगाई के मद्देनजर ब्याज दरों को उसी स्तर पर रखा जा सकता था…

अधिकांश अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों की अपेक्षाओं को गलत साबित करते हुए, मौद्रिक नीति कमेटी ने जून 6, 2018 को लगभग साढ़े चार साल के बाद ‘रेपो रेट’ में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए, उसे 6.25 प्रतिशत कर दिया है। गौरतलब है कि दो साल पहले तक रेपो रेट के बारे में निर्णय रिजर्व बैंक गवर्नर ही किया करते थे। अभी यह निर्णय रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति कमेटी करती है। अभी तक इस कमेटी ने कभी भी ‘रेपो रेट’ बढ़ाने की सिफारिश नहीं की थी।

क्यों बढ़ाई रेपो रेट

जब से यह कमेटी बनी और उससे पहले भी देश में महंगाई की दर काफी थमी हुई थी। 2012-13 के आसपास महंगाई की दर 10 प्रतिशत से ज्यादा पहुंच गई थी। इसलिए रिजर्व बैंक द्वारा कई बार रेपो रेट बढ़ाई गई और वर्ष 2014 तक आते-आते रेपो रेट 8.00 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। इसके कारण उधार लेना लगातार महंगा होता जा रहा था। इससे निवेश तो प्रभावित हो ही रहा था, ईएमआई बढ़ने के कारण घरों की मांग भी घटने लगी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की भी, लेकिन हाल ही में तेल की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हुई हालिया वृद्धि ने महंगाई की दर को बढ़ा दिया है और अप्रैल माह में महंगाई की दर 4.6 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। गौरतलब है कि पिछले काफी समय से उपभोक्ता महंगाई की दर 2.5 प्रतिशत से 3.5 प्रतिशत के बीच चल रही थी। घटती महंगाई से उत्साहित होकर पहले रिजर्व बैंक गवर्नर और बाद में मौद्रिक नीति कमेटी ने बारंबार रेपो रेट में कमी की और यह जनवरी 2014 में 8.0 प्रतिशत से घटती हुई मार्च, 2018 तक 6.00 प्रतिशत तक पहुंच गई। जाहिर है कि घटती ब्याज दरों के कारण अर्थव्यवस्था में निवेश और घरों की मांग में बेहतरी हुई और साथ ही साथ अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में भी।

नई-नई  इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं भी फलीभूत होने लगीं और जीडीपी ग्रोथ 2017-18 की आखिरी तिमाही में 7.7 प्रतिशत तक पहुंच गई। पिछले काफी समय से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और मौद्रिक नीति कमेटी रेपो रेट के निर्धारण में बहुत हद तक महंगाई की वर्तमान दर और रिजर्व बैंक की भविष्य में महंगाई दर की अपेक्षाओं पर ज्यादा निर्भर रहती रही है। उसका कारण यह है कि रिजर्व बैंक का मानना है कि वास्तविक ब्याज दर (मौद्रिक ब्याज दर घटा महंगाई दर) को धनात्मक रखना जरूरी है, इसलिए जब भी महंगाई बढ़ेगी, रेपो रेट बढ़ाना जरूरी हो जाएगा। इसके अलावा रिजर्व बैंक का यह भी मानना है कि अगर ब्याज दर नहीं बढ़ाई जाएगी, तो ऐसे में विदेशी निवेशकों का धन भी बाहर जा सकता है, जिससे रुपया कमजोर हो सकता है। रिजर्व बैंक यह भी मानता है कि ब्याज दर ऊंचा रखने से महंगाई दर को भी नियंत्रण में रखा जा सकता है।

क्या है रेपो रेट?

रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक, रिजर्व बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। यानी बैंकों के लिए उधार लेने की लागत इसी रेपो रेट से निर्धारित होती है। इसके विपरीत रिवर्स रेपो रेट, वह ब्याज दर होती है, जो रिवर्ज बैंक में बैंकों द्वारा जमा राशि पर मिलती है। यानी कहा जा सकता है कि यदि रेपो रेट बढ़ती है, तो उधार लेने वालों की भी लागत बढ़ती है। यानी कहा जा सकता है कि यदि रेपो रेट बढ़ती है, तो उधार लेने वालों की भी लागत बढ़ती है। इसलिए उद्योगों और व्यवसायियों की हमेशा चाहत होगी कि रेपो रेट कम हो जाए, ताकि उन्हें सस्ती दर पर ऋण प्राप्त हो सके। रेपो रेट कम होने पर गृहस्थों को भी लाभ होता है, क्योंकि उनके उधारों पर भी ब्याज लागत कम हो जाती है और ईएमआई घटती है। व्यवसाय ही नहीं बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर का भी विकास ब्याज दर घटने से होता है।

कितना सही है कमेटी का आकलन

चूंकि महंगाई दर में भविष्य में अचानक कोई वृद्धि हो जाएगी, ऐसी कोई आशंका नहीं है, क्योंकि कृषि वस्तुओं की अच्छी खासी उपलब्धता बाजार में है और कृषि वस्तुओं की कीमतें ठीक हालात में हैं। उसमें और कमी न हो जाए, सरकार आयातों को हतोत्साहित करने के लिए आयात शुल्क भी बढ़ा रही है। जीडीपी ग्रोथ में वृद्धि भी भविष्य में महंगाई घटने की ओर इंगित कर रही है। महंगाई दर नवंबर, 2017 में लक्षित 4 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा जरूर है, लेकिन यह उसकी ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत से खासी कम है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसका भविष्य के प्रति कोई नकारात्मक रुख नहीं है और उसने अपना तटस्थ रुख रखा है और 2018 के लिए 7.4 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ की अपेक्षा भी रखी है। इसलिए ऐसा लगता है कि बढ़ती जीडीपी और काबू महंगाई के मद्देनजर ब्याज दरों को उसी स्तर पर रखा जा सकता था। गौरतलब है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण हुई उथल-पुथल के बाद पहली बार अर्थव्यवस्था में उठाव के लक्षण दिखाई दे रहे हैं और जीडीपी ग्रोथ 6.6 प्रतिशत की धीमी गति से बाहर आती हुई, 7.7 प्रतिशत पहुंच गई है।

ऐसे में रिजर्व बैंक समेत नीति निर्माताओं एवं नियंताओं से यह अपेक्षा रहेगी कि वे महंगाई दर पर निर्भर एकतरफा मौद्रिक नीति की जिद से बाहर आते हुए, एक लंबे समय के बाद अर्थव्यवस्था में आ रहे सकारात्मक बदलावों के मद्देनजर भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए ऐसी मौद्रिक एवं अन्य नीतियां बनाएं, जिससे इस उठाव को जारी रखा जा सके। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित विभिन्न क्षेत्रों द्वारा जीडीपी में योगदान और उसके ग्रोथ के हालिया आंकड़े बता रहे हैं कि एक लंबे समय के बाद अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्रों जैसे मेन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और यहां तक कि कृषि में भी खासी तेज ग्रोथ हो रही है। इसलिए महंगाई बढ़ने की मात्र आशंकाओं को लेकर ब्याज दरों में वृद्धि एक उपयुक्त नीति नहीं कही जा सकती है। हालांकि बाजारों ने भी रिजर्व बैंक के तटस्थ रुख के चलते कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है और शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि रेपो रेट बढ़ने के बावजूद भी मुुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक ‘सेंसेक्स’ बुधवार 6 जून, 2018 को 275 अंक और जून 7 को भी 284 अंक बढ़ गया। आशा की जा सकती है कि रिजर्व बैंक का तटस्थ रुख जल्द ही आशावादी रुख में बदलेगा और बढ़ी हुई रेपो रेट घटने की ओर अग्रसर होगी।

ई-मेल : ashwanimahajan@rediiffmail.com

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App