गीता रहस्य

By: Jun 9th, 2018 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

इस प्रकार योगेश्वर श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने में सफल हुए कि जो गति ऋषि-मुनियों को वर्षों योगाभ्यास अपितु कई जन्मों तक योगाभ्यास करने के पश्चात प्राप्त होती है, वह अर्जुन जैसे योद्धाओं को युद्ध में वीरगति प्राप्त करने अथवा युद्ध जीतने पर सहज ही में प्राप्त होती  है…

अनन्यचेतनाः अर्थात ईश्वर के स्वरूप के अतिरिक्त किसी अन्य पदार्थ  आदि का ज्ञान नहीं रहता, उसे सहज में ही ईश्वर प्राप्त हो चुका है।  अब यदि कोई कहे कि केवल गीता सुनना सत्संग है और गीतादि ग्रंथ सुनकर अंत समय में गति हो जाएगी तो ऐसा कहना वेद विरुद्ध अप्रमाणिक कथन होगा। विचार यह करना होगा कि श्रीकृष्ण महाराज योगेश्वर हैं, तो उन्होंने बात-बात में योग की शिक्षा देनी ही है।

यह बात गीता ग्रंथ में श्रीकृष्ण महाराज कह रहे हैं कि हे अर्जुन जो मेरी शरण में है, मेरा भक्त है, मेरे आश्रय में है, मेरा ज्ञान मानता है, तो वह अंत समय में ब्रह्म को प्राप्त हो जाएगा और इसलिए योग, आसन, ईश्वर उपासना आदि का ज्ञान शब्द ब्रह्म (वेद) द्वारा देते हुए अर्जुन को यह सब कुछ समझाने में सफल हो गए कि अर्जुन इतनी वेद विद्या को सुनकर यह समझ ले कि यदि वह योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज की  आज्ञा स्वीकार करके युद्ध करेगा, तो श्रीकृष्ण महाराज ने उसे कह दिया था कि या तो यज्ञ, योग साधना आदि का अभ्यास करते हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त करते हुए ईश्वर को प्राप्त हो जाएगा।

अथवा युद्ध जीतकर पृथ्वी के सुख को भोगेगा और पांचों भाइयों ने युद्ध जीत कर 36 वर्ष तक राज्य का सुख भोगा था। गीता में जो वैदिक ज्ञान है वह केवल अर्जुन को युद्ध करने के लिए दिया गया था। अर्जुन को तपस्या करके आत्मज्ञान समझकर ऋषि-मुनि बनाने के लिए नहीं दिया गया।।

इस प्रकार योगेश्वर श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने में सफल हुए कि जो गति ऋषि-मुनियों को वर्षों योगाभ्यास अपितु कई जन्मों तक योगाभ्यास करने के पश्चात प्राप्त होती है, वह अर्जुन जैसे योद्धाओं को युद्ध में वीरगति प्राप्त करने अथवा युद्ध जीतने पर सहज ही में प्राप्त होती  है। अतः जीवन में प्राणी को अर्जुन की तरह बाल्यकाल से ही  विद्वानों की सेवा, उनका वैदिक प्रवचन एवं आचरण सहित अपने-अपने क्षेत्र में कठोर परिश्रम करना चाहिए। श्लोक 8/15 में  श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि इस प्रकार मेरे को प्राप्त हुए महात्मा  जन परम सिद्धि को प्राप्त होकर दुख के स्थान और नाश्वान पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते  हैं।

अथवा श्लोक 8/14 एवं श्लोक 8/15 में ‘माम’ पद आया है जिसका अर्थ है मेरे को अर्थात ‘श्रीकृष्ण’ अतः श्रीकृष्ण को प्राप्त होने से यह भी तात्पर्य है कि जब श्रीकृष्ण महाराज जी जीवित अपने शरीर में थे, उसमें जो कोई भी उनकी शरण में जाकर उनको प्राप्त होता था,उनके वैदिक ज्ञान को सुनकर आचरण में लाता था।

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