जहां कोशिशें ही बुलंदी हैं

By: Jun 14th, 2018 12:05 am

पर्यावरण संरक्षण की तमाम तहरीरों के बीच वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर की केंद्रीय शहरी विकास मंत्री, हरदीप सिंह पुरी से मुलाकात भविष्य की पटरी पर परिवहन के विकल्प पाना चाहती है। हालांकि बातचीत की औपचारिकता में जिक्र एक सीमित क्षेत्र की महत्त्वाकांक्षा में दर्ज होता है, फिर भी किसी मंत्री ने स्काई बस व मोनो ट्रेन की संभावना में अपना पक्ष तो रखा। यह दीगर है कि ऐसे सुझावों की फेहरिस्त अभी तक प्रदेश का शहरी विकास मंत्रालय नहीं बना पाया और न ही पर्यावरण चुनौतियों से जूझते शहरीकरण को समाधान का रास्ता वर्तमान मंत्री दिखा पाईं, फिर भी हिमाचल को एलिवेटिड परिवहन के तमाम विकल्प अब खोलने पड़ेंगे। यह विजन की समीक्षा में हिमाचल के मंत्रियों की पड़ताल का ऐसा पड़ाव हो सकता है, जहां कोशिशें ही बुलंदी मापेंगी। कम से कम कुल्लू घाटी के लिहाज से गोविंद सिंह ने क्षेत्रीय जरूरतों का मार्गदर्शन करते हुए दिल्ली की सरकार तक बात तो रखी। आश्चर्य बस इतना कि प्रदेश की शहरी विकास मंत्री ने अपने विजन के पिंजरे से किसी नई कल्पना को आजाद नहीं किया, जबकि उनके पूर्ववर्ती कांगे्रसी मंत्री सुधीर शर्मा ने ट्रांसपोर्ट पॉड, मोनोरेल से लेकर स्काई बस तक के विकल्प तलाशे थे। बेशक धर्मशाला स्काई बस परियोजना की खिल्ली उड़ाने में भाजपा का चुनावी अभियान जुटा रहा, लेकिन समाधान की खोपड़ी से ऐसे विकल्प बरबस टपकेंगे। ऐसे में क्या सरवीण चौधरी व धर्मशाला के वर्तमान विधायक बेलारूस की कंपनी से स्काई बस परियोजना की वास्तविकता जानने में रुचि लेंगे। इसमें दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने शुरुआती दौर में ही वायु सेवाओं का प्रसार और हेलि टैक्सी के रूप में एक कारगर कदम उठाने में दिलचस्पी दिखाकर परिवहन का कम से कम पर्यटन परिधान बदला है। चंडीगढ़ से शिमला तक की हेलिकाप्टर सेवा कल जब रोहतांग या इसी तरह के अनछुए पर्यटक स्थलों को छुएगी, तो कल्पना की क्षमता में हिमाचल के प्रयास सार्थक होंगे। विडंबना यह है कि हिमाचल के सियासी चेहरे सत्ता में आकर भी राजनीतिक गणित में उलझे रहते हैं, जबकि आधुनिक जनता अपने नजरिए से मंत्रियों की क्षमता का आकलन करती है। बतौर वन मंत्री अगर गोविंद सिंह को अपनी छाप छोड़नी है, तो जनता बंदरों और जंगलों की आग से निजात चाहेगी। स्वास्थ्य मंत्री का मूल्यांकन उनके सियासी क्षेत्र में एक सफल विधायक की समीक्षा हो सकता है, लेकिन प्रदेश स्तरीय विजन में तो छोटे से अस्पताल की ओपीडी टेबल पर विभाग की छवि का हिसाब होगा। मुकाबला बार-बार बदलती सरकारों के बीच केवल सियासत भर को मापना नहीं, बल्कि राजनीति के बाहर निकलती परसेप्शन का भी है। हिमाचल के मौजूदा मंत्रियों की तड़प को जमीनी मसलों के निष्कर्ष और समाधान की नई परिभाषा में कौन नहीं देखना चाहेगा। क्या शिमला के जल संकट में आईपीएच व शहरी विकास मंत्री  की आभा का प्रश्न खड़ा नहीं हुआ। क्या राशन की कतारों में सियासत का तराजू, खाद्य आपूर्ति मंत्री के विजन का वजन नहीं तौलेगा। कोई भी मंत्री अपने सियासी कद की चारदीवारी में बुलंद नहीं हो सकता, बल्कि वर्तमान काल में भविष्य की कल्पना को साकार होते दिखाने में जो सामर्थ्यवान होगा, जनता उसे अपने आईने में सहेज कर रखना चाहेगी। प्रादेशिक सोच के दायरे में मंत्रियों की अपनी क्षमता का प्रसार ही, उनकी इच्छा शक्ति का परिचायक बनेगा। ऐसे में दो कदम गोविंद सिंह चले, तो संकल्पों के बीच परिवर्तन का एहसास करने को जनता उन्हें शाबाशी देगी, वरना राजनीति तो केवल चुनाव की हस्ती है-आज इस करवट, तो कल उस करवट बैठेगी। देखना तो यह है कि मंत्रीगण जब अपनी विभागीय पतंग को आकाश की ओर ले जाएं, तो कर्त्तव्य की दक्षता में नए छोर की तलाश हमेशा बंधी रहे। कमोबेश हर विभाग स्वयं में एक ऐसा लक्ष्य है, जिसे नए संकल्पों-विकल्पों से विस्तृत किया जा सकता है। जो आशाएं भाजपा के दृष्टिपत्र ने दिखाई थीं, उनसे भी कहीं आगे विभागीय विकल्पों की विचारधारा में जो विधायक या मंत्री आगे बढ़ेगा, दुनिया उसी की राह पर यकीन करेगी। हिमाचल के वर्तमान मंत्रिमंडल की क्षमता का मूल्यांकन हर मंत्री के विजन पर निर्भर करता है, क्योंकि लीक से हटकर ही कामयाबी का सेहरा सजता है।

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