ट्रेड वार से बढ़ी भारत की चिंताएं

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

जयंती लाल भंडारी

 लेखक, इंदौर से हैं

उल्लेखनीय है कि जी-7 के सदस्य देश कनाडा, जर्मनी, इटली, जापान, फ्रांस तथा यूनाइटेड किंगडम जहां पहले ही ट्रंप की ट्रेड पालिसी को लेकर नाखुश थे, वहीं जी-7 सम्मेलन के बाद ट्रंप के आर्थिक सलाहकार लैरी कुडलो तथा अन्य अमरीकी प्रतिनिधियों के द्वारा समझौते को अमरीकी हितों के प्रतिकूल बताते हुए नामंजूर किए जाने से वैश्विक व्यापार की चिंताएं बढ़ी हैं। ग्रुप-7 सम्मेलन के तुरंत बाद अमरीका ने ग्रुप-7 के विभिन्न देशों से अमरीका में आने वाले कुछ आयातों पर नए व्यापारिक प्रतिबंध घोषित करके वैश्विक व्यापार युद्ध के दरवाजे पर दस्तक दी है…

हाल ही में 21 जून से अमरीका से भारत आने वाले मेवे, झींगा, रसायन, सेब, फास्फोरिक एसिड सहित कुछ अन्य कृषि उत्पादों तथा स्टील क्षेत्र के कुल 29 अमरीकी उत्पादों पर भारत के द्वारा आयात शुल्क बढ़ा दिए गए हैं। यह नई आयात शुल्क वृद्धि 4 अगस्त से प्रभावी होगी। जिस तरह अमरीका ने भारत के स्टील एवं एल्युमीनियम सहित कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिए हैं, उसके खिलाफ भारत की यह अमरीका पर आर्थिक दबाव की शुरुआत है। निश्चित रूप से भयावह वैश्विक व्यापार युद्ध (वर्ल्ड ट्रेड वार) दुनिया के साथ-साथ भारत के लिए चिंताजनक संकेत देता दिखाई दे रहा है। 19 जून को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि नोटबंदी और जीएसटी की मुश्किलों के बाद पटरी पर आई भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक व्यापार युद्ध गहराने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और भारत की विकास दर कम होने की आशंका है। हाल ही में प्रकाशित कई वैश्विक सर्वेक्षणों में कहा जा रहा है कि अमरीकी संरक्षणवाद से भारत के कृषि और उद्योग कारोबार तथा भारतीय सेवा क्षेत्र की मुश्किलें बढ़ेंगी। ऐसे में विदेशी संस्थागत निवेशक भारत से मुंह मोड़ते हुए दिखाई देंगे। साथ ही भारतीय निर्यात और भारत के शेयर और बांड्स बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अमरीकी कारोबार प्रतिनिधि यूएसटीआर राबर्ट लाइटहाइजर के कार्यालय ने विश्व व्यापार संगठन में भारत के खिलाफ कारोबारी विवाद आपत्तियों के निपटारे हेतु कठोर आवेदन प्रस्तुत किया है।

इन कारोबार आपत्तियों में भारत सरकार द्वारा वस्तुओं के निर्यात को लेकर चलाई जाने वाली योजनाओं और निर्यात से जुड़ी इकाइयों की योजनाओं व अन्य ऐसी योजनाएं हैं, जो अमरीका के कारोबार पर प्रतिकूल असर डाल रही हैं। इन आपत्तियों पर भारत सरकार ने कहा है कि उसके द्वारा दी जा रही विभिन्न राहत और सुविधाएं विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत ही हैं, लेकिन अमरीका अनुचित और अन्यायपूर्ण ढंग से भारत पर व्यापार प्रतिबंध बढ़ाते हुए दिखाई दे रहा है। ऐसे में भारत ने विगत 18 मई को विश्व व्यापार संगठन को अमरीका से आयातित 30 उत्पादों की सूची सौंपी थी, जिन पर वह आयात शुल्क लगाना चाहता है। अब भारत ने 21 जून से 29 अमरीकी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। वस्तुतः इन दिनों विश्व में वर्ल्ड ट्रेड वार यानी वैश्विक व्यापार युद्ध को लेकर जो आशंका थी, वह सही साबित होने लगी है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि विभिन्न अमरीकी राष्ट्रपतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोई 71 वर्षों तक जिस वैश्विक व्यापार, पूंजी प्रवाह और कुशल श्रमिकों के लिए न्याययुक्त आर्थिक व्यवस्था के निर्माण और पोषण में अपना अतुलनीय योगदान दिया है, अब वही वैश्विक व्यवस्था उसी अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कदमों से जोखिम में है।

इस वर्ष 2018 की शुरुआत से लेकर अब तक अमरीका ने चीन, मैक्सिको, कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटिना, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, यूरोपीय संघ के विभिन्न देशों के साथ-साथ भारत की कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाए हैं। इससे भारत के कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है और भारत की कारोबार चिंताएं बढ़ गई हैं। जैसे-जैसे अमरीका विभिन्न देशों पर आयात शुल्क संबंधी प्रतिबंध लगा रहा है, वैसे-वैसे वे देश भी अमरीका सहित विभिन्न देशों पर आयात शुल्क बढ़ा रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव भी भारत के वैश्विक कारोबार पर पड़ रहा है। गौरतलब है कि 19 जून  को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के 200 अरब डालर के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगाने की चेतावनी दी है। इसके चार दिन पहले अमरीका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रास, वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन और व्यापार प्रतिनिधि राबर्ट लाइटहाइजर के साथ बैठक के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से 50 अरब डालर मूल्य के सामान के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाने को मंजूरी दे दी। इसके बाद चीन ने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा कि वह भी 50 अरब डालर मूल्य की अमरीकी वस्तुओं पर 25 फीसदी शुल्क लगाएगा। इससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों 9 एवं 10 जून को कनाडा के ब्यूबेक सिटी में जी-7 देशों का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन जहां एक ओर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और अमरीका फर्स्ट के तहत अपनाई जा रही नीतियों की वजह से तमाशा बनकर रह गया, वहीं अब दूसरी ओर दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दिए कि अमरीका ने वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका भी बढ़ा दी है।

उल्लेखनीय है कि जी-7 के सदस्य देश कनाडा, जर्मनी, इटली, जापान, फ्रांस तथा यूनाइटेड किंगडम जहां पहले ही ट्रंप की ट्रेड पालिसी को लेकर नाखुश थे, वहीं जी-7 सम्मेलन के बाद ट्रंप के आर्थिक सलाहकार लैरी कुडलो तथा अन्य अमरीकी प्रतिनिधियों के द्वारा समझौते को अमरीकी हितों के प्रतिकूल बताते हुए नामंजूर किए जाने से वैश्विक व्यापार की चिंताएं बढ़ गई हैं। चिंताजनक बात यह भी रही कि ग्रुप-7 सम्मेलन के तुरंत बाद अमरीका ने ग्रुप-7 के विभिन्न देशों से अमरीका में आने वाले कुछ आयातों पर नए व्यापारिक प्रतिबंध घोषित करके वैश्विक व्यापार युद्ध के दरवाजे पर दस्तक दी है। गौरतलब है कि डब्ल्यूटीओ दुनिया को वैश्विक गांव बनाने का सपना लिए हुए एक ऐसा वैश्विक संगठन है, जो व्यापार एवं वाणिज्य को सहज एवं सुगम बनाने का उद्देश्य रखता है। यद्यपि डब्ल्यूटीओ 1 जनवरी, 1995 से प्रभावी हुआ, परंतु वास्तव में यह 1947 में स्थापित एक बहुपक्षीय व्यापारिक व्यवस्था प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता ‘गैट’ के नए एवं बहुआयामी रूप में अस्तित्व में आया है। जहां गैट वार्ता वस्तुओं के व्यापार एवं बाजारों में पहुंच के लिए प्रशुल्क संबंधी कटौतियों तक सीमित रही थी, वहीं इससे आगे बढ़कर डब्ल्यूटीओ का लक्ष्य वैश्विक व्यापारिक नियमों को अधिक कारगर बनाने के प्रयास के साथ-साथ सेवाओं एवं कृषि में व्यापार पर वार्ता को व्यापक बनाने का रहा है।

किंतु वैश्विक व्यापार को सरल और न्यायसंगत बनाने के 71 वर्ष बाद तथा डब्ल्यूटीओ के कार्यशील होने के 23 वर्षों बाद भारत सहित विकासशील देशों के करोड़ों लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि डब्ल्यूटीओ के तहत विकासशील देशों का शोषण हो रहा है। ऐसे में दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका के संरक्षणवादी रवैए से निश्चित रूप से वैश्विक व्यापार युद्ध की शुरुआत हो गई है। अतः इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना जरूरी है कि यदि विश्व व्यापार व्यवस्था वैसे काम नहीं करती जैसे कि उसे करना चाहिए, तो डब्ल्यूटीओ ही एक ऐसा संगठन है जहां इसे दुरुस्त किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनियाभर में विनाशकारी व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं शताब्दी की हकीकत बन जाएंगी। यह बात भी आगे बढ़ाई जानी होगी कि विभिन्न देश एक-दूसरे को व्यापारिक हानि पहुंचाने की होड़ लगाने की बजाय डब्ल्यूटीओ के मंच से ही वैश्वीकरण के दिखाई दे रहे नकारात्मक प्रभावों का उपयुक्त हल निकालें। हम आशा करें कि वैश्विक व्यापार युद्ध से भारत के निर्यात, निवेश और विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव की जो आशंकाएं बढ़ गई हैं, उनसे बचाव के लिए सरकार नई रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी।


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