नए पर्यटन की अवधारणा

By: Jun 13th, 2018 12:05 am

नए पर्यटन की खोज में राहें और मंजिलें बदल रही हैं, तो चिन्हित इरादों का दस्तूर पहली बार वास्तव में कुछ मुकाम हासिल करना चाहता है। हिमाचल का परिचय जिन चंद निगाहों या राहों पर टिका था, उससे हटकर नए पर्यटन की भूमिका में नौ सर्किट मुखातिब हैं। काफी हद तक पर्यटन को समझने की कोशिश में कुछ नए स्थल अपनी भूमिका का विस्तार कर रहे हैं, तो इस तरह एक साथ कई विभागों के तालमेल से आवश्यक अधोसंरचना से मनोरंजन व आकर्षण का नया संसार बसाने की चेष्टा तो हुई। अपने पचास करोड़ के बजटीय प्रावधान से जयराम ठाकुर ने यह मन तो बना लिया है कि अब पर्यटक को ऐसा हिमाचल दिखाया जाए, जो इससे पहले चंद पर्यटन स्थलों के केंद्र तक ही सीमित रहा। प्रस्तावित नौ पर्यटक सर्किट कई नए स्थलों के संगम पर सैलानियों का उद्गार बनें, इसके लिए आरंभिक इच्छाशक्ति अपना मंतव्य पुष्ट कर रही है। शुरुआत कहीं से भी हो, लेकिन नए पर्यटन की ओर अग्रसर कदम रुकने नहीं चाहिएं। इसे हम ग्रामीण पर्यटन, ईको टूरिज्म, हाई-वे टूरिज्म, एग्रो टूरिज्म, धरोहर पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, बौद्ध पर्यटन या धौलाधार पर्यटन का नाम दे दें, लेकिन सत्य यह है कि हिमाचल की हर राह पर चलना ही पर्यटन को पाना है, बशर्तें हम परिवेश को इस लायक रहने दें कि सदियों बाद भी घाटियां, पर्वत शृंखलाएं, नदियां, झरने और दृश्यावलियां बची रहें। हैरानी यह कि जिस पर्यटन ने हिमाचल की राह पकड़ ली है, क्या वही उत्तम है। क्या कोई यह देख रहा है कि पर्यटन के बहाने नैतिक-अनैतिक के बीच कितना अंतर बचा है। पर्यटन की हिमाचली क्षमता का विस्तार, विकास की सबसे बड़ी चुनौती के साथ-साथ पर्यावरण व सांस्कृतिक संरक्षण के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी है। ऐसे में पर्यटन को हांक लगाते वक्त वे तमाम इंतजाम भी किए जाएं, जिनके मायनों में व्यवस्था सशक्त बनी रहे। दूसरी ओर पर्यटन के जिस प्रसार ने अब तक हिमाचल को चुना है, वह आर्थिक रूप से मध्यम या निम्न स्तर की गतिविधियों तक सिमटा  है, जबकि केरल, गोवा, कर्नाटक, राजस्थान या गुजरात जैसे राज्यों ने हाई एंड टूरिज्म के लिए भी अपनी अधोसंरचना और सुविधाओं को मुकम्मल किया। तमाम साहसिक अभियानों के जरिए जुड़ रहा युवा पर्यटन अपनी सादगी व तहजीब के आलम में कई तरह से विभक्त है और इसलिए इस एहसास में थलौट जैसी दुर्घटनाओं को रोकने की पैरवी पूरे प्रदेश में होनी चाहिए। हमें पर्यटन को भीड़ से बचाने के इंतजाम तो एंट्री प्वाइंट से ही करने होंगे। अतः प्रदेश में आते सैलानियों का पंजीकरण, मार्गदर्शन तथा सुरक्षा के इंतजाम किसी हेल्पलाइन या मोबाइल ऐप के जरिए सुनिश्चित करने होंगे। प्रदेश में घोषित फोरलेन व राष्ट्रीय उच्च मार्गों की बदौलत जिस तरह पर्यटन बढ़ेगा, उसे नए अनुभव की तलाश के साथ जोड़ना पड़ेगा और यह मनोरंजन-वाटर पार्कों, साइंस सिटी, गार्डन, रज्जु मार्गों तथा विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों के मार्फत पुष्ट होगा। बेशक नौ पर्यटन सर्किट की रूपरेखा में ग्रामीण पर्यटन नई करवट लेगा, लेकिन इसे लक्ष्य केंद्रित करना है, तो हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक पर्यटन गांव का चयन सुनिश्चित करना होगा। विधायक पर्यटन निधि निर्धारित करते हुए तमाम ग्रामीण विकास गतिविधियों को पर्यटन के सूत्र में पिरोएं, तो कहीं सिंचाई, बांध या विद्युत परियोजना इसे आगे बढ़ाएगी या पहाड़ी पर कोई मंदिर इससे जुड़ जाएगा। प्रदेश का मत्स्य पालन, वन, बागबानी विभाग या मिल्क फेडरेशन अगर पर्यटन की जिम्मेदारी ओढ़ लें, तो सैलानी अपनी यात्रा के हर पड़ाव से हिमाचली उत्पाद जोड़ लेगा। क्या विभागीय तौर पर किसी ने प्रयास किया कि किस तरह ज्वालामुखी के खोया के पेड़ों, कांगड़ा के शहद चाय या दियोटसिद्ध के रोट की पैकेजिंग करके इन्हें पेश किया जाए। दरअसल ग्रामीण पर्यटन को स्वरोजगार से जोड़ते हुए ऐसी अधोसंरचना का विकास करना होगा, जो हजारों युवाओं की आजीविका को आश्रय दे। टैंट कालोनियों के लिए माकूल जगह उपलब्ध कराएं, तो प्रदेश भर में स्वरोजगार की अनेक बस्तियां बस जाएंगी। इसी तरह ग्रामीण पर्यटन के तहत हाट बाजार, गिफ्ट या सुविधा केंद्र विकसित करते हुए बेरोजगारों को अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा। पर्यटन मनोरंजन की व्यापकता में लोक कलाओं तथा लोक कलाकारों को आमदनी का नियमित जरिया भी इस तरह से उपलब्ध होगा।

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