पहाड़ी राज्यों में स्वास्थ्य सेवा मजबूत कैसे हो

By: Jun 20th, 2018 12:10 am

अनुराग ठाकुर

लेखक, हमीरपुर से सांसद हैं

जरूरी है कि आसपास के क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हों जहां ग्रामीण भारत के लोग जा सकें और समय पर जांच करा सकें। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हीमोग्लोबिन, लिपिड प्रोफाइल आदि का पता लगाने के लिए पर्याप्त पैथोलाजी लैबोरेटरीज से लैस होना चाहिए…

मान अमरेंद्र हिमाचल प्रदेश के दूरदराज के गांव में रहने वाले 99 साल के बुजुर्ग हैं। उन्हें इलाज के लिए ज्यादातर गांव से एक घंटे की दूरी पर हमीरपुर शहर जाना पड़ता रहा है। उनके गांव के नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य परीक्षण की सुविधाएं नहीं हैं। गंभीर बीमारी की स्थिति में उन्हें इलाज के लिए पीजीआई चंडीगढ़ या फिर एम्स नई दिल्ली जाना पड़ा है। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में स्वास्थ्य सेवा हमेशा से बहुत मुश्किल विषय रहा है। इसके पीछे प्राथमिक कारण कुशल मानव संसाधन का अभाव है। पहाड़ी क्षेत्रों की मुश्किलों की वजह से डाक्टर और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े दूसरे कर्मचारी शहरों में काम करना पसंद करते हैं। पहाड़ी राज्यों में लोगों को जीवनशैली आधारित गैर-संक्रमणीय बीमारियों एनसीडी जैसे उच्च रक्तचाप और मधुमेह का सामना नहीं करना पड़ता था, क्योंकि अपने रोज के काम निपटाने के लिए उन्हें खूब पैदल चलना होता है, लेकिन आज हिमाचल प्रदेश में इन बीमारियों से ग्रसित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। खासतौर से जनजातीय क्षेत्रों में मधुमेह के करीब 5000 मामलों का पता चला है। हाइपरटेंशन एक और गैर संक्रमणीय बीमारी है, जो हिमाचल प्रदेश में तेजी से पैर पसार रही है।

इसकी पुष्टि नेशनल सेंटर फार बायोटेक्नोलॉजी इन्फार्मेशन स्टडी के एक सर्वे से हुई है। सर्वे के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 60 फीसदी आबादी का ब्लड प्रेशर सामान्य से ज्यादा था, जबकि 36 फीसदी लोग हाइपरटेंशन का शिकार थे। यह गंभीर चेतावनी है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीय उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं, लेकिन प्रासंगिक सवाल यह है कि अगर उच्च रक्तचाप का जल्दी पता नहीं चले और यह घातक हृदय रोग में बदल जाए, तो क्या होगा? शुरुआत में ही इसका पता चल जाए, इसके लिए जरूरी है कि आसपास के क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हों, जहां ग्रामीण भारत के लोग जा सकें और समय पर जांच करा सकें। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हिमोग्लोबिन, लिपिड प्रोफाइल आदि का पता लगाने के लिए पर्याप्त पैथोलॉजी लैबोरेटरीज से लैस होना चाहिए, साथ ही कुशल चिकित्सक होने चाहिए, जो न सिर्फ दवाएं दे सकें, बल्कि रोगी को बेहतर जीवनशैली भी दे सकें।

हालांकि पहाड़ी राज्यों के लिए यह भी अपर्याप्त लगता है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में 90 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। ये लगभग 5000 गांवों में करीब 17 लाख की आबादी के बीच हैं। इनमें से कई पीएचसी में एमबीबीएस डाक्टर, नर्स हैं और लैब टेक्नीशियन की कमी है। हम इसके लिए राज्य सरकार को दोष नहीं दे सकते। एमबीबीएस डाक्टरों की कमी पूरे देश में है, जबकि डाक्टरों का मौजूदा पूल ग्रामीण इलाकों में सेवा करने के लिए अनिच्छुक है। यहां हम भारत में कम से कम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 7 लाख से ज्यादा आयुष डाक्टरों की मदद ले सकते हैं। भारत में सेहत की मजबूती के लिए केंद्र सरकार की कई पहल उल्लेखनीय हैं, जैसे-इंद्रधनुष टीकाकरण अभियान, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम और 2022 तक टीबी खत्म करने का लक्ष्य। स्टेंट और घुटना प्रत्यारोपण के खर्च में आधे से ज्यादा की कमी नागरिकों के लिए सबसे सराहनीय कदम है। अपने निर्वाचन क्षेत्र के हर गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मैंने एक पहल की है।

यह है-सप्ताह में पांच दिन चलने वाली मोबाइल मेडिकल यूनिट सांसद मोबाइल स्वास्थ्य एसएमएस सेवा। यह मोबाइल मेडिकल यूनिट कई ग्राम पंचायतों में जाती हैं। मोबाइल मेडिकल यूनिट्स 10 दिन पहले ही अपने कार्यक्रम निर्धारित करती हैं और संबंधित ग्राम पंचायतों को पहले से सूचित कर देती हैं। हर यूनिट में एक लैब टेक्नीशियन, एक नर्स और एक हैल्थ आफिसर रहते हैं। शुरुआत के एक महीने के भीतर ही एसएमएस सेवा बड़ी सफलता बन गई है। यह सेवा एक मई से शुरू हुई है। अब तक हमारी टीम ने मुश्किल पहुंच वाली 60 ग्राम पंचायतों में 4500 लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान की है। इस मोबाइल मेडिकल यूनिट में करीब 40 अलग-अलग चिकित्सीय परीक्षण किए जा सकते हैं। इसमें स्तन कैंसर की प्रारंभिक स्क्रीनिंग प्रमुख है। भारत में हर साल करीब 70000 महिलाएं स्तन कैंसर से मर जाती हैं।

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर की दो युवतियों ने मुझे सुझाव दिया था कि हिमाचल प्रदेश में ऐसी सेवा शुरू की जा सकती है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है्  एसएमएस सेवा का लाभ लेने वाले नागरिकों में करीब 80 फीसदी महिलाएं हैं। यह उन कई सर्वेक्षणों के विपरीत है, जो दावा करते हैं कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है। आज श्री अमरेंद्र और 100 वर्षीय श्री रखी राम जैसे बुजुर्गों को भी इन मोबाइल स्वास्थ्य वैन के जरिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा मिल रही है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में आयुष्मान भारत को पेश करते हुए कहा था, ‘भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को अपने नागरिकों के स्वस्थ हुए बिना नहीं महसूस कर सकता है’। 2022 तक प्रधानमंत्री मोदी के नए भारत के सपने को हासिल करने के लिए देश को सेहतमंद बनाना हर किसी की जिम्मेदारी है।


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