पहाड़ पर प्रदूषण की परत

By: Jun 20th, 2018 12:05 am

स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा

प्रदूषण की परत अगर पहाड़ तक पैर पसारने लगी है, तो समझना होगा कि मानवीय व्यवहार के खोट अब हद से बाहर निकलने लगे हैं। मैदानों के प्रदूषण से परेशान लोग अमूमन पहाड़ों पर आते हैं, ताकि साफ-स्वच्छ वातावरण में कुछ लम्हे सुकून के ढूंढ सकें। अब अगर वही पहाड़ बिना किसी कसूर के प्रदूषण की परत में कैद नजर आने लगें, तो ये हालात सामान्य नहीं माने जा सकते। मैदानी भागों में पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की सजा अब अगर पहाड़ को भुगतनी पड़ रही है, तो यह तथ्य एक बार फिर से पुष्ट होता  है कि पर्यावरणीय सरोकारों की कोई सीमा नहीं होती। पर्यावरण एक साझा संपदा है और इसके अच्छे-बुरे परिणाम भी क्षेत्र के हर भाग को प्रभावित करेंगे। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि पहाड़ से भारी बारिश से मैदानी भाग उजड़ते रहे हैं, तो अब मैदानी भागों में हुई मानवीय भूलों या गलतियों के ताप से पहाड़ तपने लगे हैं। लिहाजा धरती को अगर रहने लायक बनाए रखना है, तो मानव को अपने व्यवहार को संतुलित बनाना पड़ेगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए अब हदों में बंटने के बजाय सामूहिक एवं साझा प्रयास करने होंगे।


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