प्रिंट मीडिया से है लोगों को सबसे बड़ी उम्मीद

By: Jun 1st, 2018 12:05 am

भारतीय पत्रकारिता करीब दो सदी पुरानी है। समय में बदलाव के साथ ही पत्रकारिता का अंदाज भी बदला है और सोशल मीडिया भी सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम बना है, लेकिन आज भी लोग प्रिंट मीडिया की पत्रकारिता को ही विश्वसनीय मानते हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रदेश काफी प्रगति कर रहा है। प्रदेश में इस समय दर्जनों समाचार पत्र, टीवी और वेब चैनल काम कर रहे हैं। जब पत्रकारिता से जुड़े कुछ विषयों को लेकर लोगों से राय ली तो सभी ने अपनी राय बेवाकी से यूं रखी…

विश्वसनीयता खो चुके हैं

एडवोकेट अनूप शारदा का मानना है कि हिमाचल की पत्रकारिता गुण-दोष की कसौटी पर अभी खरी उतर रही है, हालांकि यहां पर भी मीडिया के विस्तार के चलते कई ऐसे तत्त्व घुस आए है, जिनका पत्रकारिता से नजदीक का कोई वास्ता दिखाई नहीं दे रहा। अधिकांश न्यूज चैनल अपनी विश्वसनीयता खो चुके है। बेसिर-पैर की पैनल डिस्कशन, देश को अपने अनुसार हांकने की प्रवृति के चलते लोगों का न्यूज चैनलस पर से विश्वास उठ रहा है। अखबारों को इस दृष्टि से अभी काफी हद तक विश्वसनीय माना जाता है।

चमक खोती जा रही है

ऊना नगर परिषद के अध्यक्ष अमरजोत सिंह बेदी का मानना है कि हिमाचल की पत्रकारिता अपनी चमक खोती जा रही है। जिन राजनेताओं व अधिकारियों से पत्रकारों के साथ सम्मानजनक व्यवहार अपेक्षित है, प्रदेश भर में पत्रकारों की एक जमात के साथ राजनेताओं का व्यवहार इससे उलट दिख रहा है। अखबारों व चैनलों की विश्वनीयता पर सवाल खड़े हो रहे है। हर दूसरा व्यक्ति अब अखबार व न्यूज चैनल की हर खबर पर अपनी बेबाक राय सोशल मीडिया पर रख रहा है।

फोकस किया जा रहा है

प्रधानाचार्य धीरज शर्मा का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में विकासात्मक पत्रकारिता पर फोकस किया जा रहा है। विशेषकर प्रिंट मीडिया जनसमस्याओं को प्रमुखता से उठा रहा हैं। अखबारों की विश्वसनीयता अभी तक कायम है, लेकिन नेशनल न्यूज चैनलों की साख पर सवाल जरूर उठ रहे है। हिमाचल में पत्रकार बेहतर ढंग से कार्य कर रहे हैं। गंदी मछलियां तो हर तालाब में होती है, लेकिन व्यापक परिदृश्य में प्रदेश के पत्रकार अपनी ड्यूटी को अच्छे ढंग से परफोर्म कर रहे हैं।

भाषा मिक्स होती जा रही है

बुद्धिजीवी राम मूर्ति लट्ठ का मानना है कि हिमाचल की पत्रकारिता समय के साथ परिपक्व होती जा रही है। अखबारों की विश्वसनीयता अभी तक बची है, लेकिन टीवी चैनलों ने विश्वसनीयता करीब-करीब खो दी है। हिमाचली पत्रकारों का स्तर अभी भी गरिमापूर्ण बना हुआ है। पहले वह सीताराम खजुरिया को लगातार पढ़ते थे, अब सोशल मीडिया पर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण भानू को जरूर पढ़ते है। अखबारों की भाषा मिक्स होती जा रही है। अच्छे पत्रकार अभी भी बेहतर शब्दों का प्रयोग करते है।


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