मंजरी ने सात समंदर पार पहुंचाया सिड्डू का स्वाद

By: Jun 17th, 2018 12:10 am

पाश्चात्य खान-पान को त्यागना और पुराने खान-पान का प्रयोग युवा वर्ग करे तो और शक्तिशाली बन सकता है। इसके लिए थोड़ी मेहनत भी करनी होंगी और जागरूक भी होना पड़ेगा। ऐसा कुछ आह्वान कुल्लू की बेटी मंजरी नेगी जिलावासियों से कर रही हैं। भले की बेटी इस आधुनिक युग में जिला को आगे देखना चाहती हैं, लेकिन अपने खान-पान को भूलना न चाहकर इसे आधुनिक युग में प्रोमोट करना चाहती है। ग्रामीण परिवेश में जन्मी मंजरी नेगी आज यहां की पुराने खाद्यान्न को प्रोमोट करने के लिए काफी उत्साहित है। गांव-गांव जाकर खासकर युवा शक्ति को कुल्लू की पुराने अनाज और खाद्यान्न को कायम रखने की जागरूकता लाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। यह डिश सेहत के लिए टॉनिक का काम करती है। बता दें कि मंजरी नेगी स्वयं पुरानी डिश बनाती हैं। मंजरी नेगी के हाथों से बनीं लोकल डिश का दिवाना आज हिमाचल प्रदेश का मंत्रिमंडल ही नहीं, अपितु केंद्र सरकार के मंत्री सहित सात समंदर पार के लोग भी हंै। मंजरी नेगी के हाथों से बने सिड्डू की महक आज सात समंदर पार तक पहुंच रही है। बता दें कि हाल ही में कुल्लू प्रवास पर आए केंद्रीय मंत्री केजे अल्फोंस ने कुल्लवी व्यंजनों का खूब लुत्फ लिया। मुख्यमंत्री जयराम, सांसद रामस्वरूप शर्मा संग अन्य अधिकारियों ने लोकल डिश सिड्डू व लिंगड़ के चटकारे लिए और यहां की डिश खाकर बहुत आनंदित हुए। यह सिड्डू डिश भी जिला परिषद सदस्य एवं महिला आयोग की सदस्य मंजरी नेगी ने अपने हाथों से बनाई थी।  केंद्रीय मंत्री के लिए विशेष रूप से अखरोट के सिड्डू तैयार किए गए थे। जिन्हें खाकर न केवल केंद्रीय मंत्री ने कुल्लू व्यंजनों की तारीफ  की, बल्कि अपने परिवार के लोगों के लिए भी पैकिंग की मांग तक कर डाली।

सेहत के लिए लाभदायक है यहां की डिश

मंजरी नेगी का कहना है कि सेहत के लिए यहां की डिश लाभकारी है। उनका कहना है कि इन डिशों में मसाले का प्रयोग नहीं होता है। आजकल की डिशों में मसाले का प्रयोग होता है, जिससे बीमारियां पैदा होती जा रही हैं।

ये हैं यहां के प्रमुख पारंपरिक पकवान

जिला कुल्लू की पारंपरिक डिशों में सिड्डू, भल्ले-बौड़े, लिंगड़ का अचार, फैंबड़ा, देशी घी आदि है। इन पकवानों से कई तरह की बीमारियां तक खत्म होती हैं। इनमें मसालों का बिलकुल भी प्रयोग नहीं होता है।

भल्ले के बिना नहीं निभाई जाती रिवायतें

मंजरी नेगी का कहना है कि देवी-देवताओं की इस भूमि में भल्ले यानी बौड़े -माश के बिना विवाह नहीं होते हैं। विवाह की रिवायत के लिए यह पकवान जरूरी होता है। वहीं, मरण के बाद घर में होने वाली शुद्धि भी भल्ले पकवान से होती है।

टूरिस्ट को बहा रही है ट्रेडिशनल डिश

नेगी का कहना है कि कुल्लू-मनाली घूमने आने वाले पर्यटकों को भी सिड्डू और भल्ले जैसी ट्रेडिशनल डिशें पसंद आ रही हैं। इस पकवान से कुल्लूवासियों को रोजगार के द्वार भी खुल गए हैं। आने वाले समय में इसकी डिमांड और बढ़ेगी।

मेरे जहन में बस इसे प्रोमोट करना

जिला परिषद सदस्य एवं महिला आयोग की सदस्य मंजरी नेगी का कहना है कि मेरे जहन में कुल्लू की ट्रेडिशनल डिश सिड्डू, भल्लू और फैंबड़ें को प्रोमोट करना है। हर गांव, सभा  में जाकर मैं सभी से यह आह्वान करतीं हूं कि पुराने पकवान को ज्यादा-ज्यादा परोसें ताकि यह सदा के लिए कायम रखे। हमारी आने वाली पीढ़ी भी पकवान को भूल न पाए। भविष्य में भी इस पकवान को लेकर जागरूक करती रहूंगी। नेगी ने बताया कि बीते दिन स्थानीय महिला मंडल के सहयोग से उन्होंने यह पकवान खासकर केंद्रीय मंत्री के लिए तैयार किए थे। केंदीय मंत्री को लोकल व्यंजन इतने भाए कि उन्होंने परिवार के लिए पेकिंग की भी इच्छा जताई है।

मुलाकात :मेले में सिड्डू का स्टाल लगाने वालों को शुद्धता का ख्याल रखना चाहिए…

आपके लिए  हिमाचली पकवान में सिड्डू क्या महत्त्व रखता है?

सिड्डू जिला कुल्लू का मशहूर पकवान है। हिमाचली पकवान में सिड्डू की अलग पहचान है। इसमें पौष्टिकता है।

इसके अलावा ऐसे कौन से व्यंजन हैं, जो प्रदेश का प्रतिनिधित्व  करते हैं?

सिड्डू के अलावा भल्ले, बौड़े भी ऐसा व्यंजन हैं, जिसकी डिमांड भी प्रदेश में रहती है। इस व्यंजन की महत्ता कुछ खास है। यह व्यंजन धार्मिक अनुष्ठानों से भी जुड़ा है।

अब तक के प्रयास में आपकी सबसे बड़ी सफलता या संतोष का विषय?

मैं यहां के पारंपरिक पकवान को कायम रखना चाहती हूं। जिस तरह से यहां के पुराने व्यंजनों की डिमांड मेरे प्रयास से बढ़ रही है, इससे लगता है कि मैं जागरूकता लाने में सफलता हासिल करूंगी।

क्या परंपरिक पकवान का बाजारीकरण, इसकी गुणवत्ता पर असर नहीं डाल रहा?

पारंपरिक पकवान की गुणवत्ता बाजारीकरण से थोड़ी फीकी पड़ने लगी है, लेकिन डिमांड अनुसार सिड्डू पकवान बाजारीकरण पर फिर हावी होने लगा है।

आप खुद को रसोई के कितना काबिल मानती हैं। पहली बार क्या बनाया या आपको कुक किसने बनाया ?

मैं नारी हूं और मेरा रसोई से गहरा नाता है। मैं स्वयं खाना परोसती हूं। पहली बार मैंने सिड्डू ही बनाए थे और मुझे कुक मेरी दादी और मां ने बनाया है।

आम तौर पर आधुनिक नारी चूल्हे- चौके से किनारा कर रही है, तो पारंपारिक पकवान पर खतरों को कैसे देखती हैं?

यहां यह बात भी सही है कि आमतौर पर आधुनिक नारी चूल्हे- चौके से किनारा कर रही है। फिलहाल ऊंचे तबके में यह सब हो रहा है। कुल्लू की नारी अपने आप में सक्षम है। पारंपरिक पकवान पर खतरा हो सकता है, लेकिन इसके लिए वर्तमान पीढ़ी को जागरूक होना पड़ेगा।

अगर आपको हिमाचली थाली प्रस्तुत करनी हो, तो इसमें क्या- क्या परोसेंगी?

हिमाचली थाली में कुल्लू का प्रसिद्ध पकवान सिड्डू, भल्ले, अनार की चटनी और घी परोसा जाएगा।

पारंपरिक हिमाचली खाने से इतर आपकी पसंद का भारतीय  खाना?

मैं हिमाचली हूं और मुझे हिमाचली खाना ही पसंद आता है। हिमाचल के पारंपरिक व्यंजनों में मसालों का ज्यादा प्रयोग नहीं होता है।

आप खाने में जायका कैसे चुनती हैं और किसी डिश को मुकम्मल कैसे मानती हैं?

कुल्लू के सिड्डू में अखरोट पड़ें, तो सबसे ज्यादा जायका आता है। अधिकतर कुल्लू की महिलाएं सिड्डू में अखरोट का ही प्रयोग करती हैं।

प्रदेश के कमोबेश हर हिस्से की धाम का अलग-अलग अंदाज है, फिर भी  अगर रैंकिंग करनी हो, तो इसका क्रमांक जिलावार कैसे बनाएंगी?

प्रदेश के जिला की धाम अलग-अलग अंदाज में है। हर जिले की धाम अपने-आप में खास है। भले ही धाम में कुछ नया पकवान बनाया जा रहा होगा, लेकिन एक डिश पारंपरिक बनानी ही पड़ती है।

 बच्चों को मोमो की लत छुड़वाने के लिए आपके पास कोई मंत्र है?

हां, युवा पीढ़ी मोमो खाने के लिए उत्साहित होती है। बच्चों को मोमो की लत से छुड़वाने के लिए सिड्डू जैसे पकवान में स्वादिष्टता लानी होगी, ताकि बच्चे इस पकवान को खाने के लिए उत्साहित हो सकें।

खाने के तौर- तरीकों के बीच, कोई नया प्रयोग किया हो या  हिमाचली पकवानों की प्रस्तुति में कोई बदलाव लाने का सपना। बाजार के लिए परंपरागत खानपान को पेश करना कितना मुश्किल है?

कुल्लू के सिड्डू की बात करें, तोे गांव-गांव में यह हर तीसरे दिन परोसे जाते हैं। कुल्लू-मनाली के बाजार की बात करें तो यहां भी लोगों को सिड्डू पकवान अच्छा रोजगार प्रदान कर रहा है। इससे सिड्डू की पहचान और बढ़ रही है।

क्या मंजरी का जीवन खानपान के इर्द- गिर्द ही मुकम्मल या कुछ ऐसा भी है जो व्यकित्त्व के कई रंग समेट लेता है?

मैं वर्तमान में जिला परिषद सदस्य एवं महिला आयोग की सदस्य हूं। खान-पान के बिना जीवन नहीं है, लेकिन मुझे समाज सेवा अच्छी लगती है और मैं समाज सेवा में अपना ज्यादातर योगदान देने का प्रयास कर रही हूं।

अगर एक राय आपको पर्यटन निगम के रेस्तरां को देनी हो या मेलों में बिकते सिड्डू को सही राह दिखानी हो, तो खाद्य सामग्री के इस्तेमाल पर क्या करेंगी?

पर्यटन निगम के रेस्तरां में भी सिड्डू परोसे जाने चाहिए। क्योंकि अधिक पर्यटक मनाली के बाजार में सिड्डू पकवान लेते हुए दिखाई देते हैं। रेस्तरांओं में ये मिलें तो सिड्डू की पहचान और बढ़ेगी। वहीं, पर्यटन निगम की आय में भी बढ़ोतरी होगी।  मेले में सिड्डू के स्टाल लगाने वालों से मैं आह्वान करती हूं कि इसमें शुद्धता वाली खाद्य सामग्री को ही परोसें।

— मोहर सिंह पुजारी, कुल्लू

 


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