राडार

By: Jun 6th, 2018 12:05 am

राडार वस्तुओं का पता लगाने वाली प्रणाली का एक यंत्र है, जिसमें सूक्ष्म तरंगों का उपयोग होता है। इसकी सहायता से गतिमान वस्तुएं जैसे जलयान, वायुयान, मोटर गाडि़यों आदि की दूरी, ऊंचाई, दिशा, चाल आदि का दूर से ही पता चल जाता है। इसके अलावा मौसम में तजी से आ रहे बदलाव का भी पता चल जाता है, जिसकी सहायता से रेडियो तरंगों का उपयोग दूर की वस्तुओं का पता लगाने में तथा उनकी स्थिति अर्थात दिशा और दूरी ज्ञात करने के लिए किया जाता है। आंखों से जितनी दूर दिखाई पड़ सकता है, राडार द्वारा उससे कहीं अधिक दूरी की चीजों की स्थिति का सही पता लगाया जा सकता है। कोहरा,धुंध, वर्षा, हिमपात, धुआं अथवा अंधेरा, इनमें से कोई भी इसमें बाधक नहीं होते। राडार आंख की पूरी बराबरी नहीं कर सकता, क्योंकि इससे वस्तु के रंग तथा बनावट का सूक्ष्म ब्यौरा नहीं जाना जा सकता। केवल आकृति का आभास होता है। पृष्ठभूमि से विषम तथा बड़ी वस्तुओं का, जैसे समुद्र पर तैरते जहाज,ए ऊंचे उड़ते वायुयान, द्वीप, सागर तट इत्यादि का राडार द्वारा बड़ी अच्छी तरह से पता लगाया जा सकता है। सन् 1886 में रेडियो तरंगों के आविष्कारक हाइनरिख हेर्ट्स ने ठोस वस्तुओं से इन तरंगों का परावर्तन होना सिद्ध किया था। दूरी का पता लगाने का कार्य सन् 1925 में किया जा चुका था और सन् 1930 तक राडार के सिद्धांत का प्रयोग करने वाले कई सफल उपकरणों का निर्माण हो चुका था, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध में ही राडार का प्रमुख रूप से उपयोग आरंभ हुआ।

स्थिति निर्धारण की पद्धति

राडार से रेडियो तरंगें भेजी जाती हैं और दूर की वस्तु से परावर्तित होकर उनके वापस आने में लगने वाले समय को नापा जाता है। रेडियो तरंगों की गति 186000 मील प्रति सेकंड है इसलिए समय ज्ञात होने पर परावर्तक वस्तु की दूरी सरलता से ज्ञात हो जाती है। राडार में लगे उच्च दिशापरक एंटीना से परावर्तक अर्थात लक्ष्य वस्तु की दिशा का ठीक पता चल जाता है। दूरी और दिशा मालूम हो जाने से वस्तु की यथार्थ स्थिति ज्ञात हो जाती है।

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