शिरगुल महाराज के जयकारों से गूंजा शावगा

By: Jun 25th, 2018 12:05 am

राजगढ़ —शाया में शिरगुल देवता के नवनिर्मित मंदिर के प्रथम चरण के कार्य के पूरा हो जाने पर मंदिर की अंतिम प्रक्रिया कुरूड़ स्थापना का आयोजन किया गया, जिसमें नौतबीन यानी शिरगुल महाराज के राज्य के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर इस परंपरा का निर्वहन किया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने शिरगुल महाराज की जय का उद्घोष किया तो शावगा क्षेत्र की वादियां आस्थामय उच्चारण से गूंज उठी। कुरूड़ स्थापना के बाद वैकल्पिक व्यवस्था में समय काट रहे शिरगुल महाराज को नए मंदिर में बने सिंहासन पर विधि-विधान के साथ विराजमान किया गया। अब देवता के दर्शन सभी श्रद्धालु कर पाएंगे। इस प्रथा के लगभग तीन घंटे बाद शिरगुल महाराज पूरे गाजे-बाजे के साथ तीर्थ स्नान चूड़धार के लिए रवाना हो गए, जिसे क्षेत्र में जातर के नाम से पुकारा जाता है। लगभग तीन बजे सुबह नौतबीन के सैकड़ों श्रद्धालु शिरगुल मंदिर के प्रांगण में एकत्रित होने आरंभ हो गए थे और लगभग चार बजे तक मंदिर प्रांगण भर चुका था। इसी दौरान पहले से तैयार कुरूड़ को श्रद्धालुओं द्वारा हाथोंहाथ उठाकर देव वादन और शिरगुल के जयकारे के साथ लाया गया और मंदिर के शिखर पर स्थापित कर दिया गया। ज्ञात रहे कुरूड़ देवदार की लंबी शहतीरी होती है जो अंदर से खुरच कर बनाई होती है। कुरूड़ स्थापित करने के बाद पंडित विद्यादत्त द्वारा विधि-विधान के साथ कुरूड़ पूजन किया गया। इसी प्रक्रिया के दौरान शिरगुल महाराज ने घणिता के माध्यम से नौतबीन को अपना आशीर्वाद भी प्रदान किया। इस दौरान  देवता को वैकल्पिक निवास से नवनिर्मित मंदिर लाया गया, जहां उन्हें विधिवत तरीके से अपने सिंहासन, जिसे गंबरी कहते हैं में विराजमान कर दिया गया। यह भी याद रहे कि इसी दिन ही शिरगुल महाराज की जातर को चूड़धार ले जाने का कार्यक्रम भी रखा गया था, जिसका आयोजन देवकार्य प्रमुख अथवा ठगड़ा रणवीर सिंह द्वारा शिजस्वी समिति अध्यक्ष अमर सिंह के माध्यम से किया गया है। इस आयोजन के तहत लगभग एक बजे देवता की प्रतिमा को विशेष देव पात्र जिसे कौंडा कहते हैं में घणिता यशवंत सिंह द्वारा बाहर लाया गया और देव यात्रा आरंभ कर दी गई। इसी संदर्भ में सैकड़ों श्रद्धालु भी देव यात्रा में चल पड़े। इस दौरान देव पथ पर गोमूत्र के छींटे डाले गए, जिसे शुद्धिकरण कहते हैं। लगभग आधा किलोमीटर के बाद महिलाएं और चूड़धार न जाने वाले श्रद्धालु देवता को प्रणाम करके वापस आ गए और लगभग 100 श्रद्धालु देवता के साथ वादन और शिरगुल देवता का जयकारा करते हुए चूड़धार यात्रा पर चल पड़े। याद रहे यह श्रद्धालु बांगा पाणी नामक स्थान पर रात्रि विश्राम करेंगे। यह वही पवित्र स्थान है, जहां पर बिजट महाराज का जन्म हुआ था। बिजट महाराज शिरगुल की बड़ी मां के पुत्र थे और शिरगुल से छोटे थे। यहां पर जातरूओं की संख्या में बढ़ोतरी हजारों में हो जाती है। दूसरी सुबह यह वहां से लिंगेश्वर महाराज के दर्शन करते हुए दिन में चूड़धार पहुंच जाएंगे। वहां से देव स्नान करने के बाद वापस पिछला मोढ़ नामक स्थान पर रात गुजारेंगे। अगली सुबह 25 जून को यह वापस शाया मंदिर पहुंचेंगे और देवता अपने सिंहासन पर विराजमान हो जाएंगे। इस दिन क्षेत्र के श्रद्धालु आकर देवता का स्वागत करते हैं और शिरगुल महाराज घणिता के माध्यम से अपनी देववाणी में अपनी प्रजा को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।


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