सभी राज्यों को राज्यसभा में समान प्रतिनिधित्व नहीं

By: Jun 20th, 2018 12:05 am

राज्य सभा

राज्य सभा, जैसा कि इसमें नाम से पता चलता है, राज्यों की परिषद अथवा कौंसिल ऑफ स्टेट्स है। यह अप्रत्यक्ष रीति से लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, क्योंकि राज्य सभा के सदस्य राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा चुने जाते हैं। संघ के विभिन्न राज्यों को राज्य सभा में समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। भारत में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है। इस प्रकार, उत्तर प्रदेश के जबकि राज्य सभा में 31 सदस्य हैं, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा आदि जैसे अपेक्षतया छोटे राज्यों का केवल एक-एक सदस्य है। अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़ ,दादरा तथा नागर हवेली, दमन तथा दीव और लक्षद्वीप जैसे कुछ संघ राज्य क्षेत्रों की जनसंख्या इतनी कम है कि राज्य सभा में उनका प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता। संविधान के अधीन राज्य सभा के 250 से अनधिक सदस्य हो सकते हैं। इनमें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्य तथा 238 राज्यों और संघ-राज्य क्षेत्रों द्वारा चुने सदस्य होते हैं। इस समय राज्यसभा के 245 सदस्य हैं। लोक सभा की निर्धारित कार्यावधि 5 वर्ष की है, पर वह राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय भंग की जा सकती है। इसके विवरित राज्य सभा एक स्थायी निकाय है और उसे भंग नहीं किया जा सकता। राज्य सभा के प्रत्येक सदस्य की कार्याविधि छह वर्षों की है, उसके सदस्यों में से यथासंभव एक तिहाई सदस्य प्रत्येक द्वितीय  वर्ष की समाप्ति पर निवृत्त हो जाते हैं। सदस्यों की पदावधि उस तिथि से आरंभ हो जाती है, जब भारत सरकार द्वारा सदस्यों के नाम राजपत्र में अधिसूचित किए जाते हैं। उपराष्ट्रपति जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है, राज्य सभा का पदेन सभापति होता है, जबकि उपसभापति पद के लिए राज्य सभा के सदस्यों द्वारा अपने में से किसी सदस्य को निर्वाचित किया जाता है।


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