शांति तभी मिलेगी, जब हम भगवान जैसे बनेंगे

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘भगवान की अनुभूति’ पर उनके विचार …

-गतांक से आगे…

अगर आप गुरु को देखना चाहते हैं तो सबसे पहले इसे खड़ा करने की शक्ति विकसित करें ताकि यह आपको चमक के साथ अंधा न कर दे, उससे आने वाली ज्ञान की कौंध आपको भ्रांति में न डाल दे तथा हतप्रभ न कर दे। यह एक गरीब आदमी की तरह है जो लाटरी जीत लेता है तथा सदमे से मर जाता है। किंतु अगर एक अमीर आदमी इसे प्राप्त करता है तो वह विनम्र हो जाता है। या फिर यह एक उल्लू की तरह है जिसकी आंखें सूर्य की रोशनी में बंद हो जाती हैं तथा वह सूर्य को देख नहीं पाता है। आपको अपने भीतर भवन का निर्माण करना है तथा इसे अपने गुरु के लिए साफ रखना है ताकि वह इसमें आए तथा वहां बैठे। यह शर्म की बात है अगर अमीरी, ज्ञान, किसी अन्य पदार्थ अथवा किसी उपलब्धि के कारण अहम आ जाए। तब गुरु किस प्रकार आ पाएंगे।

भगवान की अनुभूति

जैसा कि मैंने कहा, गुरु आत्मानुभूति के मार्ग को लांघने में मदद करता है तथा मार्गदर्शन करता है। यह भगवान की अनुभूति जैसा है। वास्तव में अनुभूति वास्तविकता की समझ है। यह किसी का भाग्य जानने जैसा है। यह, यह सीखना है कि विश्व में जो भी हो रहा है, वह ठीक है क्योंकि यह सब कुछ प्रकृति के निश्चित विशेष नियमों द्वारा शासित है। एक अमीर आदमी ने कहा, ‘मुझे मानसिक शांति नहीं है।’ ईसा मसीह ने कहा, ‘मेरे जैसे बनो और मेरा अनुसरण करो।’ उन्होंने आदमी को सलाह दी कि वह सांसारिक चीजों से अनासक्त हो जाए और प्रकृति के नियमों के अनुकूल जीवन जीए। इसी तरह सूली पर लटके ईसा मसीह ने भगवान से उन लोगों को माफ कर देने की गुहार की क्योंकि वे यह नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं। वे जो कर रहे थे, वह उच्च नियमों के खिलाफ था और वे ऐसा इसलिए कर रहे थे क्योंकि वे उन नियमों से अनजान थे। जानवर दिमागी रूप से सक्षम नहीं होते हैं, इसलिए वे प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं। वे उन्मुक्त होकर तथा खुशीपूर्वक नृत्य करते हैं तथा दौड़ लगाते हैं। उनके जीवन में कभी स्थिरता नहीं आती। जब एक आदमी का विकास उन्मुक्तता को प्राप्त करता है, तो उसका दिमाग अराजक विचारों से दूषित हो जाता है। एक जगह स्थिर पानी गंदी बदबू देना शुरू कर देता है। बहता हुआ पानी शुद्ध रहता है तथा आस-पास की गंदगी को भी वह साफ करता रहता है। प्राकृतिक नियमों के अधीन रहना जीवन के बहाव को रुकने की इजाजत नहीं देता। जब मैं लय से बाहर महसूस करता हूं तो अपनी दरी साफ करता हूं, कमरे को साफ करता हूं तथा धूप जलाता हूं। ऐसा करने से मैं वापस प्रकृति के बहाव की धारा में आ जाता हूं। इससे मेरी उदासी खत्म हो जाती है। ग्रीन पास्चर्स नामक पुस्तक में कहा गया है कि एक बार एक पादरी एक गरीब व्यक्ति के पास से गुजर रहा था जो ठंड से कांप रहा था। पादरी ने कहा, ‘मेरी किस्मत में होता तो मैंने तुम्हें वह दे दिया होता।’ वह गरीब आदमी बोला, ‘आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने मुझे मेरी जिंदगी की गर्मजोशी दी है। मुझे सब कुछ मिल गया है।’ यह कहते हुए गरीब आदमी का देहांत हो गया। पादरी को महसूस हुआ कि उसने अपनी जिंदगी में किसी को इतना कभी नहीं दिया जितना इस व्यक्ति के साथ सिर्फ सहानुभूति जता कर दिया है। करुणा प्राकृतिक नियमों का परिणाम है।   अंतर्दृष्टि की आपकी अपनी मलिनता पर उठती अंगुली होगी। यदि व्यक्ति अप्रसन्न है, तो यह उसकी अपनी गलती है। वह अपने आपको साफ नहीं करता तथा न ही प्रकृति के नजदीक आता है। अमीर होने में कोई गलत बात नहीं है, लेकिन आपको इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि आप दौलत के दास बन कर रह जाएं। यह स्वाभाविक नहीं होगा। अगर आपकी कमाई ईमानदारी से अर्जित की गई है, तो यह प्रकृति के अनुकूल होगा। ईसा मसीह ने कहा कि वे भ्रष्ट आदमी को नफरत नहीं करते क्योंकि वह एक जरूरत पूरी कर रहा होता है, किंतु एक कपटी आदमी को वे नफरत करते थे।                   -क्रमशः


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