गीता रहस्य

By: Aug 11th, 2018 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

श्लोक 8/20 में वेदों का ज्ञान देते हुए श्रीकृष्ण महाराज ने अव्यक्त जड़ प्रकृति और उससे परे सर्वशक्तिमान अव्यक्त परमात्मा के विषय में समझाया है। तीसरा जो सूक्ष्म तत्त्व चेतन जीवात्मा है जो संसार में ईश्वर सहित रहता है, उसका वर्णन भी अन्य श्लोकों में पीछे स्वयं श्रीकृष्ण महाराज ने किया है…

प्रकृति ही मूल उत्पत्ति का कराण है। अज-प्रकृति से सब पदार्थ उत्पन्न होते हैं और पुनः प्रलावस्था में सब संसार एवं इसके पदार्थ प्रकृति में ही लीन हो जाते हैं। युजर्वेद मेंत्र 23/53 में कहा है कि रात्रि के समान प्रलय जगत के सब पदार्थों को निगलने वाली है अर्थात नष्ट करने वाली है।

इसी वैदिक शब्दों को श्रीकृष्ण महाराज ने श्लोक 8/19 में कहा कि ‘रात्रि आगमे’  अर्थात रात्रि के आगमन पर संसार कारण रूप प्रकृकित में लीन हो जाता ह, इसे ही ब्रह्म की रात्रि कहा है और पुनः दिन के आगमन पर प्रकृति से पुनः संसार रचा जाता है और प्रकृति के स्वरूप में छिपा हुआ संसार सब पदार्थ प्रकाया  में आ जाते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सृष्टि रचना आदि की विस्तृत जानकारी के पूर्ण ज्ञाता श्रीकृष्ण महाराज ने ईश्वर की अमर वाणी वेद विद्या से ही संक्षेप में सब विषयों का ज्ञान भगवद्गीता में दिया हैख् पूर्ण ज्ञान तो अभी भी वेदों में ही है। क्योंकि युद्ध के समय श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को विस्तृत ज्ञान नहीं दे सकते थे। वह तो केवल अर्जुन को संक्षेप में ज्ञान देकर धर्म युद्ध लड़ने की ही प्रेरणा दे रहे थे। हम भी श्रीकृरूण महाराज की भांति आज विद्वानों से संपूर्ण वेद विद्या को इस जीवन में सुनकर सच्चे ईश्वर भक्त बनें। श्लोक 8/20 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि निश्चित ही उस प्रकृति से परे अन्य अव्यक्त भाव अर्थ्ज्ञात जो व्यक्त नहीं किया जा सकता ऐसा अति सूक्ष्म परमात्मा है, जो सनातन संसार के नाश होने पर भी नहीं नाश होता है।

भाव- श्लोक 8/20 में वेदों का ज्ञान देते हुए श्रीकृष्ण महाराज ने अव्यक्त जड़ प्रकृति और उससे परे सर्वशक्तिमान अव्यक्त परमात्मा के विषय में समझाया है। तीसरा जो सूक्ष्म तत्त्व चेतन जीवात्मा है जो संसार में ईश्वर सहित रहता है, उसका वर्णन भी अन्य श्लोकों में पीछे स्वयं श्रीकृष्ण महाराज ने किया है।

 अतः जैसा वेदों में त्रैतवाद(परमात्मा जीवात्मा एवं प्रकृति) है ठीक वैसा ही उपदेश इस भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण महाराज ने किया है और यह योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज जैसी विभूतियों के लिए उचित भी है। ऋग्वेद मंत्र 10/71/11 का यही भाव है कि चारों वेदों का ज्ञाता, विद्वान वेदों की अनादि विद्या का ही प्रचवन करता है। दुःख है कि आज हम इस रहस्य को भूल गए। अब देखें इसी प्रकृति का ज्ञान त्रग्वेद मंडल 10, सूक्त 72 में उस निराकार परमात्मा से उत्पन्न हुआ कि संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी परमात्मा ही अव्यक्त प्रकृति से व्यक्त जगत को उत्पन्न करता है। – क्रमशः


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