छोटी काशी का महत्व

By: Aug 18th, 2018 12:10 am

भगवान शंकर की प्रिय नगरी काशी के बारे में तो ज्यादातर लोगों को पता ही होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे छोटी काशी के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं कहा जाता है कि काशी की ही तरह भगवान शंकर को यह स्थान भी अति प्रिय है। इसके साथ ही इस छोटी काशी का इतिहास रावण के साथ जुड़ा हुआ  है। यदि आपको भी इस छोटी काशी के बारे में नहीं पता, तो आइए जानतें हैं यहां से जुड़ी बातों के बारे में। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लखीमपुर खीरी जिले में ऐसे बहुत से प्राचीन मंदिर हैं, जिनका संबंध रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यह स्थान लखीमपुर खीरी से 35 किमी. की दूरी पर स्थित है। हर साल श्रावण में लाखों श्रद्धालु अपनी मुरादें मांगते हुए भोलेनाथ के मंदिर में हाजरी लगाते हैं। मान्यताओं के अनुसार यहां स्थापित शिवलिंग को सतयुग के समय लंका के राजा रावण द्वारा लाया गया था।

मंदिर की पौराणिक कथा – लंका का राजा रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए 12 वर्षों तक उनकी तपस्या की। उसके तप से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसे वरदान मांगने को कहा, तो रावण ने उन्हें अपने साथ लंका ले जाने की बात कही। यह बात सुन कर पुरे देव लोक में भुचाल आ गया। सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे निवेदन करके कहने लगे कि अगर भगवान शिव जी रावण के साथ चले गए, तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा। तब ब्रह्माजी ने सब देवों की बात सुनकर भोलेनाथ से सोच-समझ कर निर्णय लेने को कहा। भगवान शिव ने रावण से कहा कि मैं तुम्हारे साथ शिवलिंग के रूप में लंका जाने के लिए तैयार हूं, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि मेरा रूप जहां कहीं भी भूमि पर स्पर्श हुआ, तो मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा। रावण भगवान की इस बात से सहमत हो गया और शिवलिंग रूपी भगवान को लेकर लंका की तरफ  चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद भगवान को यह स्थान पंसद आ गया और उन्होंने अपनी माया से रावण में तीव्र लघुशंका की इच्छा जगा दी। रावण को तब बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा और वहीं पर एक ग्वाले को आवाज लगा कर शिवलिंग उसके हाथों में दे दिया। जिस जगह पर रावण ने लघुशंका की थी, उसी स्थान को सतौती नाम की झील से जाना जाता है। जब रावण लघुशंका में लीन था, तभी भगवान शिव ने अपना वजन धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू कर दिया। जिससे कि उस ग्वाले से शिवलिंग का वजन संभाला नहीं गया और उसने रावण को आवाज लगाई, किंतु रावण का ध्यान लघुशंका की तरफ ही रहा। काफी समय प्रतीक्षा के बाद ग्वाला भी थक गया और उसने शिवलिंग वहीं भूमि पर रख दिया। कुछ समय बाद जब रावण ने शिवलिंग को जमीन पर पड़ा देखा, तो वह बहुत क्रोधित हुआ, उस ग्वाले के पीछे भागा। तब ग्वाले ने एक कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। परेशान रावण ने शिवलिंग को उठाने का काफी प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। गुस्से में आकर उसने शिवलिंग को अपने अंगूठे से जोर से दबाया। जिसका निशान शिवलिंग में आज तक विद्यमान है। काफी प्रयास करने पर भी रावण से शिवलिंग नहीं हिल सका और वह वापस अपनी नगरी लौट गया। भगवान शिव ने ग्वाले की आत्मा को बुलाकर कहा कि आज के बाद संसार तुम्हें भूतनाथ के नाम से जानेगा। मेरे दर्शनों के बाद तुम्हारे दर्शन करने वाले भक्तों को विशेष पुण्य लाभ प्राप्त होगा। इसके बाद से वह कुआं भूतनाथ के नाम से विख्यात हुआ और हर साल श्रावण मास और चैत्र मास को भगवान के दर्शनों को आने वाले लाखों भक्तगण शिवलिंग के दर्शनों के बाद बाबा भूतनाथ के भी दर्शन अवश्य करते हैं।


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