नहीं रोक सकते पदोन्नति में आरक्षण

By: Aug 17th, 2018 12:08 am

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रखा पक्ष, क्रीमी लेयर के बहाने को बताया नाकाफी

नई दिल्ली— केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के मामले में उच्चतम न्यायालय में गुरुवार को कहा कि क्रीमी लेयर के बहाने अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार की ओर से सरकार के सबसे बड़े विधि अधिकारी एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह दलील शीर्ष अदालत के समक्ष उस वक्त दी, जब उनसे पूछा गया कि क्या एससी/एसटी वर्ग में भी क्रीमी लेयर के सिद्धांत को शामिल किया जाना चाहिए? श्री वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता। इस पर संविधान पीठ ने केंद्र से पूछा कि क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू करके एससी/एसटी के अमीर लोगों को पदोन्नति में आरक्षण देने से इनकार किया जा सकता है? एटॉर्नी जनरल ने कहा कि पिछड़ेपन और जाति का ठप्पा सदियों से एससी/एसटी के साथ रहा है, भले ही उनमें से कुछ इससे उबर गए हों। उन्होंने दलील दी कि आज भी एससी/एसटी समुदाय के लोग सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं और उन्हें ऊंची जाति के लोगों से शादी करने और घोड़ी पर चढ़ने की इजाजत नहीं होती। उन्होंने आगे कहा कि इतना ही नहीं, कोई ऐसा फैसला नहीं है, जिसमें यह कहा गया हो कि क्रीमी लेयर के सिद्धांत का इस्तेमाल करके एससी/एसटी समुदाय के अमीर लोगों को पदोन्नति में आरक्षण से वंचित किया जा सकता है। इससे पहले न्यायालय ने गत 11 जुलाई को 2006 के अपने फैसले के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ पहले यह तय करेगी कि क्या सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ को फिर से इस बारे में विचार करने की जरूरत है। वर्ष 2006 के एम नागराज बनाम भारत सरकार मामले में फैसले में कहा गया था कि एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकते हैं, जब आंकड़ों के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और प्रशासन की मजबूती के लिए ऐसा करना जरूरी है। हालांकि 1992 के इंदिरा साहनी और अन्य बनाम भारत सरकार तथा 2005 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में इस बाबत फैसले दिए गए थे। ये दोनों फैसले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर से जुड़े थे।


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