निवेश का बुनियादी सौहार्द

By: Aug 11th, 2018 12:05 am

हिमाचली निवेश की राह को सशक्त करते हुए सरकार ने सर्वप्रथम रज्जु मार्गों की स्थापना को आसान बनाया है। अगर लक्ष्यों पर केंद्रित परियोजनाएं सरकार की पेशकश पर मोहित होती हैं, तो करीब एक दर्जन नए रज्जु मार्ग सामने आएंगे। निवेश की अड़चनों में रज्जु मार्गों के जरिए सरकार का संदेश मुखर है और इसी तरह अन्य क्षेत्र भी संवर सकते हैं। निजी क्षेत्र की क्षमता को अंगीकार किए बिना हिमाचली विकास के मायने पूर्ण नहीं हो सकते और न ही ऐसे सहयोग को नजरअंदाज किया जा सकता है। पहली बार सरकार इस वर्ग की हिमायती बनकर यह सुनिश्चित कर रही है कि निवेशक को हिमाचली विकास का सहयात्री बनाया जाए। पिछले काफी अर्से से रज्जु मार्गों की निविदाओं पर खामोशी का आलम इसलिए भी रहा क्योंकि निवेश को औचित्यपूर्ण बनाने के लिए सहूलियतें न के बराबर थी। अंतर विभागीय अनुमतियों या अनापत्तियों की फेहरिस्त के बीच निवेशक का मिशन खिलौना बनता रहा है। अब बाकायदा यह गारंटी दी जा रही है कि निवेशक अगर रज्जु मार्ग परियोजना में रुचि रखता है, तो उसके हाथ में हस्ताक्षरित फाइल उपलब्ध होगी तथा यह भी कि आरंभिक सात सालों तक उसे केवल अपने व्यापार की चिंता करनी है, जबकि सरकार उसे अदायगी से छूट देगी। निवेश की बुनियाद पर सरकार का यह सौहार्द निश्चित रूप से प्रोत्साहित करता है। यह न केवल रोप वे प्रोजेक्ट की दृष्टि से नई आशा प्रकट करता है, बल्कि निवेशक के नए रिश्तों की शुरुआत सरीखा भी है। खास तौर पर अधोसंरचना के क्षेत्र में निजी कंपनियों को अगर आकर्षित करना है, तो व्यापारिक सहूलियतों की जमीन का विस्तार करना होगा। विडंबना यह रही कि अब तक सरकारी क्षेत्र की हिफाजत में निजी सहयोग की परिपाटी बुलंद नहीं हो पाई, नतीजतन कई क्षेत्र बिना निवेश के प्रगति में बाधक बने रहे। सरकार अगर नए हिमाचल की संरचना में पर्यटन, मनोरंजन, पार्किंग, बस स्टैंड, आधुनिक बाजार, खेल तथा सेवाक्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहती है, तो निवेश की नीतियों को अत्यंत सरल तथा व्यावहारिक बनाना पड़ेगा। हिमाचल में भूमि की उपलब्धता तथा इससे जुड़ी अनुमतियों के कष्टप्रद तरीकों की वजह से निवेशक आगे नहीं आते। इसी तरह प्रदेश में व्यावसायिक पूंजी लगाने वाले को यह गारंटी भी मिलनी चाहिए कि उसे गैर हिमाचली की तरह अछूत नहीं बनाया जाएगा, बल्कि कुछ शर्तों व समयावधि के बाद हिमाचली होने के प्रमाणपत्र का हक भी मिलेगा। प्रदेश के पर्यटन क्षेत्र में ऐसी कई बड़ी परियोजनाएं हैं, जहां देश के प्रतिष्ठित व्यापारिक-औद्योगिक घराने अपने विजन की करामात दिखा सकते हैं। इसी तरह परिवहन क्षेत्र में एचआरटीसी से बंधी सरकारी मिलकीयत की घाटेदार व्यवस्था का प्रश्रय कम करना होगा। यानी प्रदेश में बस स्टैंड की अवधारणा को बदलते हुए इन्हें पर्यटन व मनोरंजन परिसर के रूप में परिवर्तित करने के लिए सीधा निजी निवेश चाहिए। तमाम धार्मिक व पर्यटक स्थलों के बस अड्डे अगर महापार्किंग, शॉपिंग कांप्लेक्स तथा मल्टीप्लेक्स के रूप में विकसित करने हैं, तो सरकार को खुले दिल से निवेशक को आमंत्रित करना होगा। प्रदेश के शहरी निकायों के मार्फत निजी निवेश का मार्गदर्शन तथा प्रमुख मार्गों के किनारे पर्यटन अधोसंरचना का नक्शा बनाकर हिमाचल स्वरोजगार की अधोसंरचना मुकम्मल कर सकता है। विभिन्न सरकारी उपक्रमों के बिगड़ते वित्तीय पैमानों को देखते हुए विनिवेश का रास्ता खोलना होगा। उदाहरण के लिए अगर सरकारी स्कूलों की अधोसंरचना कहीं फेल हो रही है, तो कम से कम शहरी परिदृश्य में पहल करते हुए आईसीएसई और सीबीएसई पाठ्यक्रम के तहत देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं के साथ ऐसे करार किए जा सकते हैं, ताकि हिमाचली प्रतिभा को अवसर बढ़ जाएं। बहरहाल रोप-वे में निवेश के नए सेतु उभर रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जयराम सरकार अन्य क्षेत्रों के द्वार खोलकर निजी क्षेत्र का इसी तरह स्वागत करेगी।


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