पहेलियां

By: Aug 5th, 2018 12:05 am

जब मुंह खोले, अबटू बोले

सबे बुलाय, खुद भी डोले।

रबड़ी-मलाई खाई खूब,

कुर्सी को वह माने महबूब।

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सौम्य-सुदर्शन बुजुर्ग काया,

कृष्ण हैं वह इस काल के।

खूब सवारी रथ पर की,

देखो नसीब इस लाल के।

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प्रथम कटे दूल्हा बन जाऊं,

काम जलाने के चूल्हा आऊं।

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उत्सव में मैं पोता जाऊं

पास पशु के पाया जाऊं।

मेरे आधे पैर हैं, पूरे नहीं

मैं  पाया जाता हर कहीं।

बिन मेरे काम न चल पाए,

कोई दिमागी मेरा नाम बताए।

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एक सवार, 3 सेवक चार

पीछे उसके सेना अपार।

सवारी कभी लौट के न आए

कसरत करें दिमाग की, नाम बताएं।

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प्रथम कटे मर जाऊं,

पानी सदा पेट में लाऊं।

अंत कट मैं गिला ।

बरतनों में मैं मिला ।


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