मैं मायके चली जाऊंगी भादो है आयो…

By: Aug 12th, 2018 12:05 am

रीति-रिवाजों के अनुसार  भादों में सभी नवविवाहित लड़कियां अपने मायके आती हैं। इस महीने को हिमाचल में ‘काला महीना’ भी कहते हैं। लोगों की मान्यता होती है कि इस महीने में नवविवाहित बहू और सास को एक घर में रात नहीं गुजारनी चाहिए। ऐसा करने से सास या बहू को नुकसान हो सकता है…

हिमाचल प्रदेश की संस्कृति बहुत समृद्ध है, बरसात के दिनों में सावन महीने के अंत के बाद जब भाद्रपद महिना शुरू होता है, तो रीति-रिवाजों के अनुसार सभी नवविवाहित लड़कियां अपने मायके आती हैं। इस महीने को हिमाचल में ‘काला महीना’ भी कहते हैं। लोगों की मान्यता होती है कि इस महीने में नवविवाहित बहू और सास को एक घर में रात नहीं गुजारनी चाहिए। ऐसा करने से सास या बहू को नुकसान हो सकता है। अब इसे एक अंधविश्वास कहें या फिर एक बहाना या कुछ और, लेकिन इसी बहाने नवविवाहित लड़की अपने मायके में पूरा एक महीना बिता पाती हैं। इस पूरे महीने वे अपने मायके में रहती हैं और सोलह शृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं। अगले यानी आश्विन महीने को सक्रांति के बाद ही नवविवाहिता अपने ससुराल जाती हैं। कई बार काला महीना खत्म होते ही श्राद्ध शुरू हो जाते हैं, तो उनको मायके में और समय मिल जाता है और फिर नवरात्रि में वापिस जाती हैं। कहा जाता है पहले पति भी अपनी पत्नी से नहीं मिल पाते थे, लेकिन अब समय के साथ सब बदल रहा है। यहां तक तो अब कई लोग इन सब मान्यताओं में विश्वास नहीं रखते हैं। जब भी नवविवाहिता वापिस अपने ससुराल जाती हैं, तो मां उनको ससुराल वालों के लिए कपड़े, मिठाई और पकवान बनाकर भिजवाती हैं। जितने दिन वे मायके में रहती हैं वापिस अपने बचपन में पहुंच जाती हैं, लेकिन वापस ससुराल जाते ही एक बार फिर एक जिम्मेदार बहू के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुट जाती हैं। इस तरह हर नवविवाहिता इस महीने का इंतजार करती हैं ताकि वे अपने मायके जा सके। इसके साथ ही कहा जाता है इस महीने में रातें काली होतीं हैं, तो लोग सरसों के दिए यानी बट्ठियां भी जलाई जाती हैं। इसके पीछे की मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी महीने में काली रातों में हुआ था और रात को उजाला करने के लिए ही दिए जलाए जाते हैं।


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