राशन डिपो व्यवस्था में सुधार की जरूरत

By: Aug 8th, 2018 12:05 am

एसके भटनागर

लेखक, पपरोला से हैं

पहला सुझाव है कि वर्तमान डिपुओं की संख्या बढ़ाई जाए। साथ लगते गांवों-पंचायतों इत्यादि में लोगों की सुविधानुसार अलग डिपो खोलने चाहिएं, ताकि उपभोक्ताओं को राशन लेने के लिए अधिक भीड़ में अधिक दूर जाने और खाली लौटने की परेशानी से छुटकारा मिले…

सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा डिपुओं में उपभोक्ताओं को सस्ता अनाज, दालें, तेल, चीनी इत्यादि उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। सरकार द्वारा करोड़ों की सबसिडी देकर जनसाधारण को यह सुविधा दी जा रही है, परंतु आए दिन भ्रष्टाचार और स्वार्थवश धनलोलुपता के कारण इस प्रणाली की कमियां व घोटाले उजागर होते रहते हैं। अनाज, तेल, दालों इत्यादि की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगते रहते हैं। डिपुओं में समय पर राशन, चीनी आदि के उपलब्ध न होने के कारण व वर्तमान डिपुओं में उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ जाने से अकसर डिपोधारकों व उपभोक्ताओं को परेशान होना पड़ रहा है। नौकरीपेशा करने वालों एवं मजदूर-किसान वर्ग को अपनी-अपनी ड्यूटियों पर जाने के कारण डिपो से सामान लाना कठिन हो जाता है। अतः यह काम अधिकतर महिलाओं व बुजुर्गों को करना होता है। घरों का काम निपटाने के बाद महिलाएं डिपो आती हैं। कई बार भीड़ की वजह से उन्हें खाली घर लौटना पड़ता है। वरिष्ठ नागरिकों एवं बुजुर्गों को कोई मान्यता या प्राथमिकता डिपुओं में नहीं दी जाती है, वे भी भीड़ में घंटों खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। अकसर डिपुओं में पर्ची या बिल पूरे सामान का काट दिया जाता है। भले ही कुछ सामान न भी लें। नए ई-सिस्टम के कारण सुविधा कम व डिपोधारकों एवं उपभोक्ताओं दोनों का समय अधिक व्यर्थ जाता है। डिजिटल कार्डों में पाई जाने वाली कमियों का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त देखा जाता है कि कुछ उपभोक्ता अनाज, दालें, तेल इत्यादि नहीं लेते, केवल चीनी लेते हैं, पर पर्ची या बिल पूरा काट दिया जाता है। ऐसे में डिपुओं में संख्या के आधार पर उपलब्ध स्टॉक शक के घेरे में आ जाता है। अब ई-पीडीएस से राशन लेने की व्यवस्था की जा रही है, सबसिडी खातों में डालने की चर्चा हो रही है, परंतु इससे डिपोधारकों और उपभोक्ताओं की परेशानी और बढ़ सकती है। वास्तव में पुराने एवं वर्तमान डिपुओं में उपभोक्ताओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। अधिक भीड़ में परेशानी तो बढ़ेगी ही। यह सब देखते हुए कुछ सुझाव पाठकों, विभाग के अधिकारियों व सरकार के ध्यानार्थ पेश किए जा रहे हैं। शायद वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने में अच्छे लगें। पहला सुझाव रहेगा कि वर्तमान डिपुओं की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ लगते गांवों-पंचायतों इत्यादि में लोगों की सुविधानुसार अलग डिपो खोलने चाहिएं, ताकि उपभोक्ताओं को राशन लेने के लिए अधिक भीड़ में अधिक दूर जाने और खाली लौटने की परेशानी व असुविधा से राहत मिल सके। वर्तमान डिपुओं में संख्या बहुत बढ़ गई है। सुझाव है कि एपीएल व बीपीएल डिपो अलग-अलग होने चाहिएं। वर्तमान डिपुओं में विशेषकर बीपीएल उपभोक्ता अधिक दूरी से आते हैं, भीड़ में परेशान होते हैं, खाली भी लौटना पड़ जाता है और सामान का बोझ उठाकर जाना या सस्ते अनाज से अधिक खर्च किसी वाहन द्वारा सामान ले जाने में करना पड़ता है। अतः बीपीएल बहुल क्षेत्रों में अलग डिपो खोलना तर्क एवं न्यायसंगत होगा। एपीएल उपभोक्ताओं के लिए भी उनकी निर्धारित संख्या से अधिक बढ़ जाने पर अलग डिपो खोल देना चाहिए।

तीसरा सुझाव है वरिष्ठ नागरिकों को अर्थात बुजुर्गों के लिए प्राथमिकता के आधार पर राशन दिया जाना चाहिए। पूरे देश-प्रदेश में डाकघरों, बैंकों, अस्पतालों, बिजली, पानी, टेलीफोन बिल जमा करवाने हेतु अलग पंक्ति, खिड़की या काउंटर रखे जा रहे हैं, परंतु खेद का विषय है कि डिपुओं में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। ऐसा होना चाहिए कि यथाशीघ्र सभी डिपुओं में निर्देश जारी किए जाएं कि वरिष्ठ नागरिकों यानी बूढ़े-बुजुर्गों को राशन प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा। चौथा सुझाव राशन तोलने वाले व्यक्तियों को उचित मानदेय देने के बारे में है। डिपोधारकों को मानदेय व कमीशन का प्रावधान है, अच्छा है, परंतु सुबह से शाम तक तोलने व रख-रखाव करने वाले को मात्र बहुत कम पैसे सभा द्वारा दिए जाते हैं। उन्हें भी सरकारी दैनिकभोगियों के मुताबिक उचित राशि देना न्यायसंगत होगा, अन्यथा शोषण ही है। अगर इन सुझावों में सार्थकता मिले तो यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए। अन्यथा सरकारी डिपुओं के स्थान पर हर गांव-पंचायत-कस्बे में उचित मूल्य की दुकानें इच्छुक व्यक्तियों को खोलने की पेशकश करके सस्ता अनाज, दालें, चीनी, तेल इत्यादि निर्धारित मूल्य पर बेची जाएं व सामान की मात्रा भी निर्धारित की जाए। इससे नकद पैसे देकर आवश्यकतानुसार उपभोक्ता खरीद कर सकेंगे।


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