सिद्धियों-मातृकाओं का पूजन जरूरी है
उपरोक्त प्रक्रिया से स्नानादि कराकर अभिषेक करें एवं पुनः आचमन कराने के पश्चात वस्त्र तथा उत्तरीय अर्पित करें। तदोपरांत पुनः आचमन कराकर निम्नलिखित श्लोकों के साथ अलंकार एवं आभूषण अर्पित करें :
रत्नकंकण वैदूर्य मुक्ता हारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो।।
-गतांक से आगे…
शुद्धोदक स्नानम
मंदाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम।।
उपरोक्त प्रक्रिया से स्नानादि कराकर अभिषेक करें एवं पुनः आचमन कराने के पश्चात वस्त्र तथा उत्तरीय अर्पित करें। तदोपरांत पुनः आचमन कराकर निम्नलिखित श्लोकों के साथ अलंकार एवं आभूषण अर्पित करें :
रत्नकंकण वैदूर्य मुक्ता हारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो।।
इसके पश्चात मूल मंत्र का उच्चारण कर, उसके अंत में ‘एष गंधो नमः’ बोलकर कनिष्ठिका और अंगुष्ठ को मिलाकर गंधमुद्रा बनाते हुए गंध अर्पित करें। तदनंतर अनेक प्रकार के परिमल सौभाग्य द्रव्य अर्पित कर, अक्षत भी अर्पण करें। फिर अंगुष्ठ एवं अनामिका से पुष्पमुद्रा बनाकर, मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए अंत में ‘एतानि पुष्पाणि वौष्ट्’ बोलकर ताजा, खिले हुए पुष्प अर्पित करें।
षडंगपूजन
साधक को चाहिए कि वह सर्वप्रथम श्रीयंत्र के आग्नेय आदि कोणों में निम्न षडंगपूजन का विधान करें :
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः हृदयाय नमः (आग्नेय)।
ओउम ह्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा (ईशाने)।
कएईल ह्रीं शिखायै वषट् (नैऋर्त्ये)।
हसकहल ह्रीं कवचाय हुम (वायव्ये)।
सकल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट् (अग्रे)।
सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट् (दिक्षु)।
आवरण पूजा
आवरण पूजा की प्रक्रिया निम्मलिखित है :
प्रथमावरण : साधक सबसे पहले निम्नलिखित मंत्र से देवी का ध्यान करें :
तप्तहेमसमानाभा पाशां कुशधराः शुभा।
साधकेभ्यः प्रयच्छंति रत्नोधं सिद्धयस्सदा।।
भूपुर की पहली रेखा में पूर्वादि दिशाओं में निम्नलिखित मंत्रों द्वारा अणिमादि दस सिद्धियों का पूजन करें :
ह्रीं श्रीं अणिमा सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (पूर्वे)।
ह्रीं श्रीं महिमा सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (आग्नेय)।
ह्रीं श्रीं लघिमा सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (दक्षिणे)।
ह्रीं श्रीं ईशिता सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (नैऋर्त्ये)।
ह्रीं श्रीं वशिता सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (पश्चिमे)।
ह्रीं श्रीं प्राकाम्या सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (वायव्ये)।
ह्रीं श्रीं भुक्ति सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (उत्तरे)।
ह्रीं श्रीं इच्छा सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (ईशान्ये)।
ह्रीं श्रीं प्राप्ति सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (ऊर्ध्वभागे)।
ह्रीं श्रीं सर्वकामा सिद्धि श्रीपादुकां पूजयामि (अधोभागे)।
भूपुर की दूसरी रेखा में पश्चिम आदि दिशाओं में निम्नलिखित मंत्रों द्वारा ब्राह्मी आदि आठ मातृकाओं का पूजन करें :
ह्रीं श्रीं ब्राह्मी मातृका श्रीपादुकां पूजयामि (पश्चिमे)।
ह्रीं श्रीं माहेश्वरी मातृका श्रीपादुकां पूजयामि (वायव्ये)।
ह्रीं श्रीं कौमारी मातृका श्रीपादुकां पूजयामि (उत्तरे)।
-क्रमशः
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