स्वामी जी के प्रेरक विचार

By: Jan 7th, 2017 12:20 am

* स्वयं पर विश्वास करना और सत्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है।

* लक्ष्य को ही अपना जीवन समझो। हर समय उसका चिंतन करो, उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो।

* अपने सामने एक ही साध्य रखना चाहिए। उस साध्य के सिद्ध होने तक दूसरी किसी बात की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। रात-दिन, सपने तक में-उसी की धुन रहे, तभी सफलता मिलती है।

* भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं।

* इस संसार में भूलों का गर्द-गुबार उठेगा ही। जो इतने नाजुक हैं कि इस गर्द-गुबार को सहन नहीं कर सकते, वे पंक्ति के बाहर निकलकर खड़े हो जाएं।

* अशुभ की जड़ इस भ्रम में है कि हम देहमात्र हैं। यदि कोई मूलभूत पाप है तो वह यही है।

* मन लाड़ले बच्चे के समान है। जैसे लाड़ला बच्चा सदैव अतृप्त रहता है, उसी तरह हमारा मन भी अतृप्त रहता है। अतएव मन का लाड़ कम करके उसे दबाकर रखना चाहिए।

* न तो कष्टों को निमंत्रण दो और न उसमें भागो। जो आता है, उसे झेलो। किसी चीज से प्रभावित न होना ही मुक्ति है।

* विचार ही हमारे मुख्य प्रेरणा स्रोत होते हैं। मस्तिष्क को उच्चतम विचारों से भर दो। प्रतिदिन उनका श्रवण करो, प्रति मास उनका चिंतन करो।

* जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं, उसे ईश्वर मंे विश्वास नहीं हो सकता।

* जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।

* स्वतंत्र होने का साहस करो। जहां तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।

* सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो।

* विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हंै, क्योंकि उनमे समय पर साहस का संचार नही हो पाता। वे भयभीत हो उठते है।


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