प्रदेश में नहीं होता थैलेसीमिया का टेस्ट.

By: Apr 17th, 2017 12:01 am

सरकारी अस्पतालों में मशीनें न होने से परेशानी, पीजीआई जाने को मजबूर मरीज

शिमला –  प्रदेश सरकार की ओर से स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी कई बीमारियों के टेस्ट तक की सुविधा प्रदेश में नहीं है। अगर किसी को थैलेसीमिया का टेस्ट कराना हो तो उसे सीधे पीजीआई जाना पड़ता है। अभी तक प्रदेश के किसी भी अस्पताल में थैलेसीमिया के टेस्ट की मशीन नहीं लग पाई है। हैरानी की बात है कि आईजीएमसी जो प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है, वहां भी यह टेस्ट नहीं होता। इतना ही नहीं, प्रदेश में थैलेसीमिया के कितने रोगी हैं, इसका विभाग के पास अभी तक कोई डाटा ही नहीं है। न तो विभाग के पास ऐसा कोई रिकार्ड है कि कितने लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं और न ही अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले मरीजों का ही कोई निश्चित आंकड़ा तैयार किया गया है। हालांकि थैलेसीमिया के तहत विभाग की ओर से एक रिपोर्ट अब तैयार की गई है, जो एनएचएम के मिशन निदेशक को सौंप दी गई है, लेकिन यह प्रारंभिक रिपोर्ट है। उधर, यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। यदि अभिभावक में से एक में ही माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है, तब भी बच्चे को यह रोग होने की 25 प्रतिशत संभावना है। इसलिए  विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों को जांच कराने की सलाह चिकित्सकों की ओर से दी जाती है। इस रोग का फिलहाल कोई इलाज नहीं है।

क्या है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया एक माता-पिता से बच्चों में आने वाली आनुवांशिक बीमारी है, जो कि एक पैदायशी रक्त विचार है। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। इसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। सामान्य तौर पर खून में लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र 120 होती है, लेकिन थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र कम होकर करीब 20 दिन ही रह जाती है। इसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है। हीमोग्लोबिन कम होने के कारण शरीर दुर्बल हो जाता है और हमेशा किसी न किसी रोग से पीडि़त रहता है। हीमोग्लोबिन दो तरह के प्रोटीन से बनता है, अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलेसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती हैं।


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