ठेका जिगर जला रहा

By: Apr 25th, 2017 12:05 am

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर)

दो दिन से जुटती नहीं, दो रोटी, दो जून,

ठेका जिगर जला रहा, चूस रहा नित खून।

चूल्हा ठंडा है पड़ा, घर में लग गई आग,

बोतल में है विष भरा, मूर्ख अब तो जाग।

पत्नी कुटती, पिट रही, बच्चे हैं लाचार,

बसी गृहस्थी टूटती, बिखर रहा परिवार।

बेच लिए जेवर, लगा टकराने नित जाम,

अम्मा-बापू लाढ़ का भुगत रहे अंजाम।

ठेका है यह क्लेश का, झगड़े का व्यापार,

मामूली सी बात पर, खंजर दिया उतार।

मुख्य स्रोत है आय का, चीख रही सरकार,

सेहत से ही कर रहे, जाननायक व्यापार।

दो दिन से बेहोश था, सोया था लमलेट,

अब हिलता डुलता नहीं, फूल गया है पेट।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App