पत्थर की विरोधाभासी ताकतें

By: Apr 4th, 2017 12:02 am

कश्मीर को हिंदोस्तान ने क्या कुछ नहीं दिया, लेकिन आज भी औसत कश्मीरी खुद को भारत का हिस्सा मानता ही नहीं। जब भी कोई मुद्दा उठता है, तो उसकी पृष्ठभूमि कश्मीर के भारतीय गणतंत्र में विलय तक खंगाली जाती है। कश्मीरी आवाम में वे मुसलमान शामिल हैं, जो आराम से घाटी के इलाकों में रहते हैं। एक ओर पाकिस्तान का पैसा इस्तेमाल करते हैं, आतंकियों की ढाल और पनाहगाह बनते हैं, तो दूसरी ओर भारत की मोदी सरकार द्वारा दिया 80,000 करोड़ रुपए का पैकेज उन्हें कबूल है। जब श्रीनगर बाढ़ के प्रलय में डूबा था, तब भारतीय सेना के ही जांबाज जवानों ने असंख्य जानें बचाई थीं। जाति, धर्म, नस्ल का कोई भेदभाव नहीं किया गया। हर डूबने या बहने वाला नागरिक हिंदोस्तानी था। तब भारतीय सैनिक ‘देवदूत’ साबित हुए थे, जिन्हें अब ‘खलनायक’ करार देते हुए भाड़े के पत्थरबाज उन पर हमले करते हैं। इस दौरान एक खबर सार्वजनिक हुई है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर के हालात बिगाड़ने के मद्देनजर 1000 करोड़ रुपए का बजट तय कर रखा है। कश्मीर में पत्थरबाज वाकई भाड़े पर काम कर रहे हैं। एक स्टिंग आपरेशन ने खुलासा किया है कि पत्थरबाजों को सेना, सुरक्षा बल, पुलिस और विधायकों पर हमले के लिए 5-7 हजार रुपए मिल जाते हैं। जूते, कपड़े बगैरह का खर्च अलग है। वे पेट्रोल बम बनाते हैं, जो 500-700 रुपए प्रति बम बिक जाते हैं। औसतन पत्थरबाज 11-12 हजार रुपए माहवार कमा लेता है। हिमालय की कोख में बनी इस सबसे लंबी सुरंग का ‘पत्थर’ से एक गहरा नाता रहा है। कश्मीर के 2500 से ज्यादा नौजवान रात-दिन पत्थर काटते और तराशते रहे, लिहाजा इस सुरंग के निर्माण में उन कश्मीरी युवाओं के पसीने की महक भी महसूस की जा सकती है। पत्थर की ताकत को परिभाषित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी यह कहना नहीं चूके कि एक तरफ भटके हुए नौजवान पत्थरबाजी करने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ कश्मीर के ही नौजवान पत्थर काट-काट कर कश्मीर का भाग्य बनाने में लगे हैं। प्रधानमंत्री ने कश्मीरी नौजवानों के लिए सिर्फ ‘दो रास्तों’ का उल्लेख किया-टूरिज्म और टेरेरिज्म। यानी पर्यटन और आतंकवाद! पिछले 40 सालों में घाटी में खून का खेल जारी रहा है। लहूलुहान हुई है, तो कश्मीर घाटी! अपने लाल खोए हैं, तो कश्मीर घाटी ने…आखिर टेरेरिज्म के खेल से फायदा किसका हुआ? यदि ये 40 साल टूरिज्म में खपाए होते, तो आज दुनिया कश्मीर के चरणों में होती और कश्मीरियों की आमदनी शेष भारतीयों से भी कहीं ज्यादा होती! लिहाजा यह सुरंग प्रधानमंत्री मोदी के संदेश का आधार भी है। प्रधानमंत्री का मानना है कि यह सिर्फ सबसे लंबी सुरंग ही नहीं, बल्कि कश्मीर घाटी की भाग्य-रेखा भी है। अभी ऐसी ही 9 सुरंगें और बनाई जाएंगी। यह रास्तों का नहीं, दिलों का नेटवर्क बनने वाला है। इसके जरिए प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर के नौजवानों को देश की मुख्यधारा के साथ जोड़ना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने मोबाइल के जरिए जनता को भी उद्घाटन में भागीदार बनाया। जनसभा के मंच से ‘भारत माता की जय’ के नारे लगे, तो मौजूद भीड़ ‘मोदी, मोदी, मोदी..’ के नारे लगाने लगी। प्रधानमंत्री ने विकास के पत्थर और साजिश के पत्थर का फर्क साफ कर दिया। बोले-‘यह सुरंग जम्मू-कश्मीर के लिए विकास की एक लंबी छलांग है।’ अब किसानों को अपनी फसल मंडी और बाजार तक लाने के लिए कुदरत से नहीं लड़ना पड़ेगा। किसान अपने फल, फूल और फसल को आराम से, सुरक्षित तौर पर दिल्ली तक ला सकेंगे। प्रधानमंत्री मोदी सुरंग में ही कुछ कदम पैदल चले और फिर रुककर फोटो खिंचवाया। खुली जीप में गवर्नर एनएन वोहरा के साथ सुरंग का जायजा लिया। अब प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के नौजवान भारत सरकार की रोजगार, शिक्षा और विकास संबंधी योजनाओं से जुड़ें। उसी से वे ‘नया कश्मीर, नया भारत’ बनाने में योगदान दे सकेंगे।


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