महाभारत काल में सात गणराज्यों का संघ था त्रिगर्त

By: Apr 12th, 2017 12:05 am

यद्यपि त्रिगर्त क्षेत्र की सीमा के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, परंतु इतना स्पष्ट है कि पौराणिक संदर्भों के अनुसार त्रिगर्त पहाड़ी क्षेत्र रहा है। महाभारत में ‘संसप्तक-गण त्रिगर्त’ के  अनुसार लगता है कि महाभारत काल में त्रिगर्त सात गणराज्यों का संघ था…    

प्रागैतिहासिक हिमाचल

गणराज्य व्यवस्था ः भारतीय जीवन में गण का युग बहुत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है जनजातीय समाज की आरंभिक-व्यवस्था जन-प्रतिनिधियों की सभा पर आधारित थी। सभ्यता के आरंभिक चरणों में समाज के प्रतिनिधि अपने विकास के लिए कार्य निश्चित और निष्पण करते थे। ज्यों-ज्यों समाज विकास की यात्रा पर अग्रसर हुआ, प्रतिनिधियों की सभाएं बनीं और यही सभा गणराज्य के रूप में विकसित हुई। गणों के विकास में निश्चित रूप से सदियां-सहस्राब्दियां लगी होंगी। भारतीय इतिहास में ईसा पूर्व पांचवीं और छठी शताब्दी गणतंत्रात्मक या प्रजातंत्रात्मक शासन व विकास के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसी संस्थाएं विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम और उत्तर- पूर्व भारत में अधिक गठित थीं। इनमें से उत्तर-पूर्व के संगठन शीघ्र ही मगध साम्राज्य के अधीन विलीन हो गए थे, परंतु उत्तर-पश्चिम भारत की प्रजातंत्र संगठन बहुत देर तक स्थापित रहे। यद्यपि मौर्य साम्राज्य के दौरान उन्हें अस्थायी रूप से बहुत बड़ा धक्का लगा था, परंतु मौर्य साम्राज्य के पतन पर उन्होंने पुनः राजनीतिक शक्ति और महत्ता गठित की। उल्लेखनीय है कि यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर को जिन शक्तियों से लोहा लेना पड़ा था, उनमें से कुछेक राजसत्ताओं को छोड़कर शेष सभी गणतंत्रात्मक शक्तियां थीं। वर्तमान हिमाचल प्रदेश क्षेत्र से संबंधित प्राचीन गणतंत्रात्मक शक्तियों का सबसे पुराना विस्तृत उल्लेख पाणिनी की अष्टाध्यायी में मिलता है, जिसका समय ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी आंका गया है। इसमें त्रिगर्त, मंडमति (वर्तमान मंडी), कालकूट (कालका) और कुलूत (कुल्लू) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अष्टाध्यायी के 5.3.116 में पाणिनी ने त्रिगर्त क्षेत्र को ‘त्रिगर्तषष्ठा’ के रूप में दर्शाया है अर्थात छह गणों का संघ। त्रिगर्त से अभिप्राय वह पर्वतीय क्षेत्र है, जो हिमाचल प्रदेश को तीन महान नदियों अर्थात रावी, ब्यास और सतलुज द्वारा घिरा हुआ है। त्रिगर्तषष्ठा में निम्नलिखित छह गण सम्मिलित माने जाते हैं- कौण्डोपर्थ, दांडकी, क्रौष्टकी, जालमानी, ब्रह्मगुप्त को वर्तमान भरमौर (जिला चंबा) माना है। पाणिनी ने इन्हें ‘आयुद्धजीवी संघ’ कहा है। अर्थात ऐसे संघ जो युद्ध-विद्या में पारंगत थे और युद्ध पर निर्भर करते थे। त्रिगर्त का केंद्र स्थान बीच की नदी ब्यास का मुख्य क्षेत्र कुलूत या उलूत (कुल्लू) था, जिसकी राजधानी नग्गर में थी और यह ‘कत्रयादी गण’ में था। यद्यपि त्रिगर्त क्षेत्र की सीमा के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, परंतु इतना स्पष्ट है कि पौराणिक संदर्भों के अनुसार त्रिगर्त पहाड़ी क्षेत्र रहा है। महाभारत में ‘संसप्तक-गण त्रिगर्त’ के  अनुसार लगता है कि महाभारत काल में त्रिगर्त सात गणराज्यों का संघ था।

 


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