धर्मशाला की दहूंदी कूहल अब कचरा

By: May 20th, 2017 12:01 am

धर्मशाला —  स्मार्ट सिटी धर्मशाला  की ऐतिहासिक दूहंदी कूहल खेतों की सिंचाई कर लोगों के पेट पालने वाली अब अपने खुद के वजूद को तलाश रही है। पुराने समय से सिंचाई का मुख्य साधन रही दूहंदी कूहल वर्तमान समय में अपनी खस्ता हालत पर आंसू बहा रही है। इससे बड़ोल, दाड़ी, सकोह, चेलियां सहित विभिन्न गांव सिंचाई सुविधा के लिए तरस रहे हैं। दूहंदी कूहल का पानी प्रमुखता से सिंचाई के प्रयोग में लाया जाता रहा है। खनियारा के मांझी चलने वाली कूहल कंड़ी, दाड़नू, अपर दाड़ी, दाड़ी, बड़ोल व झिकली बड़ोल होते हुए सकोह तक पहुंचती है। सकोह में कूहल के दो हिस्से होकर एक चरान में गिरता है और दूसरा हिस्सा कुनाल पत्थरी मंदिर के साथ बहती नागनी खड्ड में पहुंचता है। सबसे पहले दुहंदी कूहल का पानी बड़ोल, दाड़ी, स्टेडियम के साथ लगते दयाला, गुलेरी, सकोह जटेहड़ और पजलेहड़ आदि क्षेत्रों के किसानों की खेती की सिंचाई में उपयोग में लाया जाता है। धर्मशाला शहर को नगर निगम का दर्जा मिलने से पहले यह ऐतिहासिक कूहल विभिन्न पंचायतों के अंतर्गत आती थी। जिसमें अलग-अलग पंचायत के बजट व कार्यों के प्रस्ताव में अंतर होने के कारण कूहल का विकास नहीं हो पाया हो लेकिन अब यह कूहल शुरू से लेकर अंत तक नगर निगम धर्मशाला के अंतर्गत है।

किसान व स्थानीय लोग ही करते हैं सफाई

दूहंदी कूहल की साफ-सफाई की जिम्मेदारी सकोह के किसानों और निवासियों की ही रही है। पूर्व के समय में भी साफ-सफाई का जिम्मा स्थानीय लोग ही संभालते  रहे हैं।कूहल की देखभाल के लिए चौकीदार कौहली सकोह वासियों द्वारा नियुक्त किया जाता रहा है। कौहली कूहल की सफाई के लिए आवाज देकर क्षेत्रवासियों को सूचित करता है, और अगली सुबह सभी क्षेत्रवासियों को कूहल की सफाई करने को जाने का संदेश पहुंचाता है। कौहली को जिमीदारों की फसल में से घर-घर आकर हिस्सा (खवाड़ा) इकट्ठा करना पड़ता है।

बढ़ती आबादी के साथ बढ़ी गंदगी

कूहल का पानी 1975 तक पीने के प्रयोग में लाया जाता था, लेकिन उसके बाद आबादी बढ़ती गई और कूहल में गंदगी बढ़ती गई। वर्तमान में दूहंदी के ऊपर दाड़ी क्षेत्र में कुछेक घरों के निर्माण से इस कूहल को अड़रग्राउंड कर दिया गया है।  शहरी आजीविका मिशन के तहत शहरी एरिया में चलाई जा रही लक्ष्य योजना के तहत हाल ही में दूहंदी कूहल की सफाई की गई, लेकिन यह सफाई मात्र कूहल के ऊपर व आसपास उगी झांडि़यों की ही की गई।

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