सांवलिया सेठ मंदिर

By: May 20th, 2017 12:07 am

सांवलिया सेठ मंदिरभगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से बताया जाता है। किंवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह पूजा किया करती थीं। मीरा बाई संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थीं। ऐसी ही एक दयाराम नामक संत की जमात थी, जिनके पास ये मूर्तियां थी। एक बार जब औरंगजेब की मुगल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी, तो मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। तब संत दयाराम जी ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर छिपा दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया। कालांतर में सन् 1840 में  मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुजर नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां  जमीन में दबी हुई हैं। जब उस जगह पर खुदाई की गई और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं, तो सभी मूर्तियां  बहुत ही मनोहारी थी।  देखते ही देखते यहखबर सब तरफ  फैल गई और आसपास के लोग प्राकट्य स्थल पर पंहुचने लगे। फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम में लाया गया, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है।  मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई की जगह स्थापित किया गया, इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुजर द्वारा मंडफिया ग्राम लाई गई, जिसे उन्होंने अपने घर के परिंडे में स्थापित करके पूजा आरंभ कर दी। चौथी मूर्ति निकालते समय खंडित हो गई, जिसे वापस उसी जगह रख दिया गया। कालांतर में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए। तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैल गई। आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्री कृष्ण ने वह रूप धारण किया था। व्यापार जगत में उनकी ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं। लाखों दर्शनार्थी प्रतिवर्ष सांवलिया जी आते हैं। ऐसा माना जाता है कि सांवलिया जी यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी करते हैं। सांवलिया जी के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। कई दर्शनार्थी दूर- दूर से यहां दर्शन करने को आते है। यहां आने वाला प्रतिवर्ष का चढ़ावा लाखो में होता है। मंदिर में स्थित भगवान की मूर्ति बहुत मनोहारी लगती है।

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