हैंडबाल को हाथोंहाथ लेता हिमाचल

By: May 19th, 2017 12:02 am

भूपिंदर सिंहभूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

देखते हैं हिमाचल हैंडबाल को प्रशासन तथा प्रशिक्षण की यह जोड़ी कितनी ऊंचाई तक ले जाती है, जहां इस वर्फ के प्रदेश की संतानें अधिक से अधिक बार तिरंगे को ऊपर उठाने में अपना योगदान देती हैं। खिलाड़ी तो प्रतिभा ही दिखा सकते हैं, पर बाकी इंतजाम तो शासन प्रशासन को ही करने हैं…

1982 एशियाई खेलों की तैयारी पूरे देश में 1980 से ही शुरू हो गई थी। देश में उस समय अधिकतर राज्य के पास अपनी कोई खेल नीति भी नहीं थी। विभिन्न खेलों के राज्य खेल संघों का गठन भी नहीं हुआ था। इसी वर्ष हिमाचल में राज्य हैंडबाल संघ का गठन ऊना के एसके पराशर के प्रयत्नों से हुआ और इस संघ के पहले सचिव भी पराशर ही बने। एसएस सिद्धू को पहला प्रधान बनने का गौरव मिला। 1982 एशियाई खेलों के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में अधिकतर खिलाड़ी बास्केटबाल तथा वालीबाल से नई चली खेल हैंडबाल में आए थे। हिमाचल में भी बास्केटबाल के कई खिलाड़ी हैंडबाल में चले गए थे। फिर बाद में हैंडबाल को किशोर अवस्था से ही खिलाडि़यों में लोकप्रिय बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य हैंडबाल संघ के दूसरे सचिव नंद किशोर शर्मा ने काफी कार्य किया। श्री शर्मा ने तत्कालीन प्रशिक्षकों के साथ तालमेल कर हैंडबाल को काफी लोकप्रिय बनाया। 1991 में पहली बार अजनेश चौहान तथा अतुल सोनी ने कनिष्ठ एशियाई हैंडबाल में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अजनेश लगभग एक दर्जन बार भारत का प्रतिनिधत्व करने में कामयाब रहा। यह भारत का कप्तान भी रहा। इसी दौर में ललित शर्मा, सुदर्शन तथा प्रवेश मौंटी ने भी राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों में जगह पाई। इसके बाद हर्ष त्रिपाठी, संजय कौशल तथा हामिद खान ने भी राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों में हिस्सा लिया। हामिद खान ने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। श्याम लाल कौंडल भी एक दशक तक राज्य हैंडबाल संघ के सचिव रहे।

2010 में सोलन के ललित शर्मा ने यूथ राष्ट्रमंडल हैंडबाल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधत्व किया तथा 2011 में बिलासपुर की स्नेहलता ने एशियन बीच हैंडबाल प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। खेल कोटे से राजनीति शास्त्र की प्रवक्ता लगी इस खिलाड़ी ने हिमाचल हैंडबाल प्रशिक्षण कार्यक्रम को एक नई दिशा प्रदान कर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली लड़कियों से उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाना जारी रखा है। इस कार्य में स्नेहलता के पति पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सचिन चौधरी भी सहयोग दे रहे हैं। सचिन चौधरी वैसे तो गैर हिमाचली हैं, मगर रेलवे की नौकरी के लिए शिमला में नियुक्त हैं। इस समय स्नेहलता अपनी पाठशाला के साथ ही अपनी निजी भूमि पर मैदान बनाकर हिमाचली खिलाडि़यों को सवेरे-शाम प्रशिक्षण दे रही हैं। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की बदौलत 2012 में हिमाचल की लड़कियों ने राष्ट्रीय सब-जूनियर हैंडबाल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। अधिकतर लड़कियां स्नेहलता के शिविर से आई थीं। 2013 में राष्ट्रीय स्कूली अंडर-17 लड़कियों की हैंडबाल प्रतियोगिता भी हिमाचल ने जीती। 2014 में फिर इन्हीं लड़कियों ने राष्ट्रीय स्कूली अंडर-19 वर्ष आयु वर्ग की प्रतियोगिता में हिमाचल को स्वर्ण पदक दिलाया। 2016 में अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालय  हैंडबाल प्रतियोगिता में कांस्य पदक हिमाचल ने जीता है। अधिकतर खिलाड़ी स्नेहलता के प्रशिक्षण शिविर से हैं। वर्ष 2015 में मेनिका, निधि, बबीता, निधि तथा दीक्षा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसी वर्ष बांग्लादेश  में आयोजित अंतरराष्ट्रीय एशियन हैंडबाल फेडरेशन कप में बबीता, मेनिका तथा निधि ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता।

इस प्रतियोगिता की दूसरी कड़ी जो अप्रैल, 2017 में थाईलैंड में आयोजित हुई, इसमें मेनिका ने कप्तान तथा निधि ने खिलाड़ी के रूप में भाग लेकर भारत को कांस्य पदक दिलाया है। जिला ऊना से भी हैंडबाल के अच्छे खिलाड़ी हर वर्ष आते हैं। बिलासपुर के बाद हिमाचल में ऊना ही एकमात्र ऐसा जिला है, जहां निचले स्तर पर थोड़ा बहुत काम हो रहा है। एसके पराशर ने जहां हिमाचल हैंडबाल संघ की नींव डाली थी, वहीं पर नंद किशोर शर्मा ने इसके प्रचार-प्रसार के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम को आगे ले जाने में स्नेहलता हिमाचली प्रशिक्षकों के लिए एक उदाहरण हैं। वह स्कूली समय मे जहां ईनामदारी के साथ राजनीति शास्त्र पढ़ा रही हैं, वहीं वह सवेरे-शाम हिमाचल को गौरव दिलाने वाले उत्कृष्ट  खिलाड़ी भी दे रही हैं। हिमाचल के वेतनभोगी प्रशिक्षकों को स्नेह से पे्ररणा लेनी चाहिए। जो हैंडबाल प्रशिक्षण के लिए ही हजारों रुपए प्रतिमाह वेतन पाते हैं। इस समय बिलासपुर सदर के विधायक बंबर ठाकुर राज्य हैंडवाल संघ के प्रधान हैं तथा डा. प्रवेश शर्मा मौंटी इसके सचिव हैं। मौंटी स्वयं भी हैंडबाल के बहुत अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। स्नेहलता इसकी शिष्य रही हैं। जब वह राजकीय महाविद्यालय घुमारवीं में पढ़ती थी, उस समय डा. प्रवेश वहां शारीरिक शिक्षा के प्राध्यापक थे। देखते हैं हिमाचल हैंडबाल को प्रशासन तथा प्रशिक्षण की यह जोड़ी कितनी ऊंचाई तक ले जाती है, जहां इस वर्फ के प्रदेश की संतानें अधिक से अधिक बार तिरंगे को ऊपर उठाने में अपना योगदान देती हैं। खिलाड़ी तो प्रतिभा ही दिखा सकते हैं, पर बाकी इंतजाम तो शासन प्रशासन को ही करने हैं। हिमाचल को यदि खेलों में आगे ले जाना है, तो उसमें खिलाडि़यों के साथ-साथ प्रशिक्षक, प्रशासन और सरकार को अपनी-अपनी भूमिका तय करते हुए उसे निभाना होगा।

ई-मेलः penaltycorner007@rediffmail.com

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