आजादी के कुछ फीके एहसास

By: Aug 17th, 2017 12:05 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

पीके खुराना लेखकहम जो आजादी चाहते हैं, वह ऐसी होनी चाहिए कि हमें अपने साधारण कामों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें, बल्कि तकनीक के सहारे वे काम संबंधित विभागों द्वारा खुद-ब-खुद हो जाएं। नागरिकों के सुझाव और शिकायतें ऑनलाइन दर्ज हो सकें। शिकायतों के समाधान की निश्चित प्रक्रिया हो, शासन-प्रशासन में जनता की भागीदारी हो। सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए नशाखोरी को बढ़ावा न देती हो, अपराधों पर अंकुश हो, पुलिसकर्मी संवेदी और जनता के सहायक हों…

इसी सप्ताह हमने स्वतंत्रता दिवस मनाया। जगह-जगह तिरंगे को सलामी दी गई और उत्साहपूर्वक बधाई संदेशों का आदान-प्रदान हुआ। बधाई संदेशों के आदान-प्रदान में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका रही। इस अवसर पर हमने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के भाषण भी सुने। प्रधानमंत्री के प्रभावशाली भाषण में सरकार की उपलब्धियों का लंबा विवरण था। बहुत से सवालों के जवाब दिए गए, लेकिन साथ ही बहुत से सवालों के जवाब बाकी भी रह गए।

गोरखपुर अस्पताल में थोक में बच्चों की मौत ने जहां देश भर को हिला डाला, वहीं यह तथ्य भी सामने आया कि वहां हर साल अगस्त में बच्चे दम तोड़ देते हैं। आदित्य नाथ योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हाल ही में बने हैं, लेकिन इससे पहले वह पांच बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। दो दशक से भी ज्यादा लंबे समय तक गोरखपुर से सांसद रहने के बावजूद उन्हें इस तथ्य की जानकारी न होना यही सिद्ध करता है कि हमारे चुने हुए प्रतिनिधि जनता की असल समस्याओं से कितने अनजान हैं। महज तीन-चार दिनों में ही मस्तिष्क ज्वर यानी सैफेलाइटिस से 60 से अधिक लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो गए। लगभग चार दशकों से जारी इस हादसे से यह भी स्पष्ट है कि पूर्ववर्ती सरकारों, प्रशासन और अस्पताल प्रशासन का रवैया कितना असंवेदनशील रहा है। सरकारी डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में नांवा कूट रहे हैं और बच्चे मर रहे हैं।

भिन्न-भिन्न हादसों के रूप में हमें अब यह देखना होगा कि आजादी के असली मायने क्या हैं। सुखी, समृद्ध, शिक्षित, सुरक्षित और स्वस्थ भारत की परिकल्पना के बिना हर आजादी अधूरी है। इसलिए हमें देश की असल समस्याओं और उनके सही निदान पर फोकस करना होगा। कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी, बढ़ती जनसंख्या, भ्रष्टाचार, सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं, धार्मिक असिष्हणुता, दंगे, अपराध, नशीले पदार्थ, तस्करी, आतंकवाद, प्रशासनिक असंवेदनशीलता आदि कितनी ही समस्याएं हैं, जिनका निदान होना बाकी है। मुश्किलें और चुनौतियां तो हैं ही, नीतियों को लेकर कोई सुसंगत दिशा नहीं है। राज्यों और केंद्र में समन्वय नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि नीति नियंताओं की ओर से जनता की असल समस्याओं को समझने का प्रयत्न बहुत हद तक किताबी होता है और कई बार तो ऐसा लगता है मानो उन्हें नीति निर्धारण का कोई प्रशिक्षण ही नहीं है। हमारे जनप्रतिनिधियों पर तो यह खास तौर से लागू होता है। भावुक भाषण देना, हवाई बातें करना, सपने दिखाना और जाति, संप्रदाय या क्षेत्र के नाम पर भड़का कर या डरा कर वोट बैंक का जुगाड़ करना इनका पसंदीदा शगल है और इसी के दम पर वे चुनाव जीतते आ रहे हैं। इसलिए उन्हें विकास के बारे में जानने-समझने की आवश्यकता ही नहीं रहती। सुविधाओं से महरूम अस्पताल, स्कूल और कालेज, बिगड़ैल सरकारी कर्मचारी, भ्रष्टाचार आदि हमारे बड़े सिरदर्द हैं और इन समस्याओं की ओर ध्यान देने और इनके समाधान ढूंढने के बजाय, मुद्दों को परे धकेल कर भावनाएं भड़काने वाले कामों से चुनाव जीतने की फिराक में लगे जनप्रतिनिधि समाज का भला नहीं कर सकते, चाहे वे किसी भी दल, क्षेत्र या प्रदेश के हों। डर की दुकानें चलाने वाले ये राजनेता हमारे देश की असली समस्या हैं। शेष सारी समस्याएं इनके कारण हैं।

सरकार के पास न तो रोजगार हैं और न ही वह ऐसी नीतियां बना रही है कि निजी कंपनियों के रोजगार सृजन के अवसर बढ़ सकें। नए रोजगार जो भी पैदा हो रहे हैं, वे उद्यमियों के कारण हैं, सरकार के कारण नहीं। हमारी शिक्षण संस्थाओं, खासकर के स्कूली शिक्षा का हाल बहुत खस्ता है। पर्याप्त स्कूल नहीं हैं, स्कूलों में सुविधाएं नहीं हैं, अध्यापक नहीं हैं, पुस्तकों का अभाव है और बच्चों को पढ़ाने का ढंग नीरस और अप्रासंगिक है। ज्यादातर मामलों में हमारी शिक्षा पद्धति जीवन में हमारे किसी काम नहीं आती और पढ़ाई खत्म करके असली जिंदगी में प्रवेश लगभग हनुमान छलांग जैसा काम होता है।

सफाई व्यवस्था, पेयजल, चिकित्सा सुविधा, शिक्षा, परिवहन, अनाज का भंडारण, रोजगार सृजन, सुरक्षा आदि मूल मुद्दों पर ध्यान देने की बजाय हम गोरक्षा जैसे मुद्दों पर बहस में उलझे हैं। मुहावरेदार शब्दावली और आकर्षक नारों से काम चलता तो अब तक भारत एक विकसित देश होता। इसलिए अब हमें यह समझना होगा कि हमें समस्या की जड़ तक जाकर रोग का निदान करना होगा। हम जो आजादी चाहते हैं, वह ऐसी होनी चाहिए कि हमें अपने साधारण कामों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें, बल्कि तकनीक के सहारे वे काम संबंधित विभागों द्वारा खुद-ब-खुद हो जाएं। नागरिकों के सुझाव और शिकायतें ऑनलाइन दर्ज हो सकें। शिकायतों के समाधान की निश्चित प्रक्रिया हो, शासन-प्रशासन में जनता की भागीदारी हो। शासन व्यवस्था में शक्तियों का तर्कसंगत बंटवारा हो तथा उन पर प्रभावी निगरानी के साधन हों। शिक्षा ऐसी हो जो हमें रटने की नहीं, बल्कि सोचने की शक्ति दे। लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के प्रयास हों, प्रगति के अवसर और आयाम हों। सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए नशाखोरी को बढ़ावा न देती हो, अपराधों पर अंकुश हो, पुलिसकर्मी संवेदी और जनता के सहायक हों ताकि पुलिस के पास जाने में आम आदमी डरे नहीं। ग्राहकों का सही दाम पर उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध हों। देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है कि चुनाव सुधार सही मंशा से लागू किए जाएं और राजनीतिक दलों के लिए कठोर आचार संहिता हो, ताकि वे समाज में बंटवारे के माध्यम से चुनाव जीतने के बजाय विकास की अपनी नीतियों के कारण चुनाव जीतें।

प्रधानमंत्री एक तरफ भारत जोड़ो की बात करते हैं, आस्था के नाम पर हिंसा की निंदा करते हैं, पाकिस्तान को छप्पन इंच का सीना दिखाते हैं। ऐसे नए भारत की बात करते हैं जहां लोग तंत्र को चलाएं बजाय इसके कि तंत्र लोगों को चलाए। मन को लुभाने वाले नए-नए नारे देते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि उन्होंने अब तक जो नारे दिए हैं, उनकी असल हालत क्या है? व्यवहार में वे कितनी कारगर हैं और लोगों को उनसे कितना लाभ मिला है? वे भी अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह नौकरशाही द्वारा दिए गए आंकड़े देखकर खुश हो रहे हैं। वे केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में कोआपरेटिव-कंपीटीटिव फेडरलिज्म की चर्चा करते हैं, लेकिन विपक्ष की सरकारों वाले राज्यों के साथ केंद्र के संबंध बहुत खराब हैं और टैक्स-टेरर व अन्य सभी साधनों से प्रधानमंत्री विपक्षी नेताओं, आलोचकों और असहमति जताने वाले लोगों को डराने में मशगूल हैं, लेकिन भाजपा शासित प्रदेशों में व्यापमं जैसा बड़ा घोटाला हो, तो भी कोई कार्रवाई नहीं होती।

लब्बोलुबाब यह कि हम ऐसी आजादी के तलबगार हैं जहां राजनेताओं और नौकरशाही का राज न हो, जनता की सुनवाई हो और जनता का राज हो, तभी हमारा लोकतंत्र सच्चे अर्थों में लोकतंत्र बन पाएगा।

ई-मेल : indiatotal.features@gmail.com

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App